सिर्फ लक्कड़वाला और तेंदुलकर कमेटियों के आंकड़े और आकलन ही उपलब्ध हैं। वे भी पुराने हो चुके हैं। लक्कड़वाला कमेटी का निष्कर्ष था कि देश की 28.30 फीसदी आबादी गरीबी-रेखा के नीचे जीने को अभिशप्त है। 2016 के सरकारी 'आर्थिक सर्वेक्षण' में छपा था कि देश के 17 राज्यों में औसतन सालाना आमदनी 20,000 रुपए थी। यानी 1700 रुपए माहवार से भी कम….! भारत सरकार का दावा है कि 2019 में 10-11 फीसदी आबादी ही गरीबी-रेखा से नीचे रह गई थी, लेकिन किसान और खेतिहर मजदूर की औसत आय मात्र 27 रुपए रोजाना थी। क्या ऐसे 'अन्नदाता' गरीबी-रेखा के नीचे नहीं माने जाएंगे? गौरतलब है कि हम फिलहाल गरीबी-रेखा के नीचे वालों की बात कर रहे हैं। गरीब उस आबादी से अलग है और ऐसी जनसंख्या चिंताजनक है। कोरोना काल के साल में भी करीब 23 करोड़ लोग गरीबी-रेखा के नीचे चले गए थे। उनमें से कितने अभी तक उबर पाए हैं, इसका डाटा भी सरकार ने उपलब्ध नहीं कराया है। सरकार ने इतना जरूर खुलासा किया है कि 2013-19 के दौरान कमोबेश किसान की आय में 10 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। किसान की औसत आय फिलहाल 10,218 रुपए है। उसमें भी 4063 रुपए मजदूरी से मिलते हैं, जबकि फसल उत्पादन से 3798 रुपए ही मिल पाते हैं।
पशुपालन से भी औसतन 1582 रुपए मिल जाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में किसान की आय दोगुनी करने की घोषणा की थी। आय की बढ़ोतरी के मुताबिक, किसान की आय 21,500 रुपए होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया जा सका है। दरअसल किसान और मजदूर हमारी व्यवस्था की सबसे कमजोर आर्थिक इकाइयां हैं, लिहाजा हम किसान के जरिए अपनी गरीबी को समझने की कोशिश कर रहे हैं। किसान तो मजदूर से भी बदतर है, क्योंकि मनरेगा में 200 रुपए की न्यूनतम दिहाड़ी मिल जाती है। हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में यह दिहाड़ी 300 रुपए से ज्यादा है। किसान 27 रुपए ही रोजाना कमा पाता है, लिहाजा जरा सोचिए कि गरीबी में भारत विश्व में कहां मौजूद है? अभी तो हमने गरीब तबके पर मुद्रास्फीति के असर का आकलन नहीं किया है। शुक्र है कि बीते एक लंबे अंतराल से सरकारें गरीबों को मुफ्त अनाज, खाद्य तेल, चीनी, दाल आदि मुहैया करा रही हैं। उसके बावजूद देश भुखमरी के संदर्भ में 102वें स्थान पर है। यानी भुखमरी के हालात बने हैं। हालांकि हम ऐसा नहीं मानते। दुनिया में विकसित देश किसानों को लाखों की सबसिडी देते हैं, नतीजतन किसान और कृषि जिंदा हैं। बाजार के सुधारों से किसानों की गरीबी में कभी सुधार नहीं हुआ। यह अमरीका, कनाडा, स्पेन, जापान के उदाहरणों से समझा जा सकता है, लेकिन भारत में किसानों को सिर्फ 15,000 रुपए की सबसिडी मुहैया कराई जाती है। चीन भी सबसिडी के मामले में दुनिया का दूसरे स्थान का देश बन चुका है। बहरहाल कुछ बिंदु होंगे, जो हमसे छूट गए होंगे, लेकिन भारत में गरीबी की औसत स्थिति यही है। संभव है कि सरकार की नींद खुले और वह अरबपतियों के अलावा गरीबों की भी सुध ले।