भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर के साथ एंट्री या किसी भी देश को वीटो पावर नहीं दिये जाने की मांग करनी चाहिए
भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर के साथ एंट्री
के वी रमेश |
जिस तरह से माता-पिता एक रोते हुए बच्चे को चुप कराने के लिए टॉफी की पेशकश करते हैं वैसे ही अक्सर पी-5 के सदस्य उन उभरते हुए देशों को शांत कराते हैं जो पुराने घिसे-पिटे पुरातन गुट को लेकर शिकायत करते हैं कि सुरक्षा परिषद (UN Security Council) गिनती के कुछ देशों का एक संगठन है जिसके पुनर्गठन की जरूरत है. लेकिन इस पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती. वर्तमान स्थायी सदस्यों के लिए दुनिया 1945 के वक्त में ही रुक कर रह गई है.
शीत युद्ध तीन दशक पहले समाप्त हो चुका है. दुनिया पहले से कहीं अधिक बहु-ध्रुवीय हो चुकी है. भारत समेत आधा दर्जन राष्ट्र ऐसे हैं जिनका अब विश्व की घटनाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है.
किसी के पास कोई समाधान नहीं
न तो अमेरिका और न ही चीन आज दुनिया पर हावी होने का दावा कर सकता है. यूक्रेन संघर्ष ने स्थायी पांच सदस्यों की शक्ति की सीमाओं को उजागर कर दिया है. अमेरिका अब भी प्रमुख वैश्विक शक्ति है और उसके सहयोगियों को चीन समर्थित रूस ने चुनौती दी है और यूक्रेन युद्ध के कारण हो रही समस्याओं को हल करने का किसी के पास कोई समाधान नहीं है.
दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं बर्बाद हो रही हैं. मुद्रास्फीति या मुद्रास्फीति के कारण आई मंदी उन्हें धीरे-धीरे खोखला रही है. यूरोप में युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति लाइनों में बड़ी रुकावट आ गई है जिससे जरूरी चीजों की कीमतों में इतनी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है कि उद्योगों को कच्चा माल नहीं मिल रहा है और आम उपभोक्ता बुनियादी चीजें से भी वंचित है जिस कारण भूख और बेरोजगारी नंगा नाच कर रही हैं.
एक बड़ी वैश्विक त्रासदी के समय आज संयुक्त राष्ट्र कोई निर्णय नहीं ले पा रहा है. दरअसल, इसमें शामिल बड़े पांच देश ही उसे निर्णय लेने से रोक रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र का मजाक बैठक करने वालों, खाना खाने वालों और धोखा देने वालों बोल कर उड़ाया जा रहा है. ऐसा लगता है कि एक अंधा, बूढ़ा हाथी किसी घने जंगली झाड़ी में फंस गया हो.
प्रश्न पूछने पर कोई जवाब नहीं
सुरक्षा परिषद निर्णायक नहीं हो सकती क्योंकि इसे हमेशा गतिरोध वाली स्थिति में रखा जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र स्कूल शुरू होने से पहले छात्रों की सुबह की प्रार्थना सभा की तरह होते हैं. पवित्र प्रार्थना तो की जाती है मगर उस पर किसी को विश्वास नहीं होता. प्रश्न पूछने पर कोई जवाब भी नहीं देता.
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय छह के मुताबिक यूएनएससी का काम अंतरराष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्वक हल करना है. यह अध्याय परिषद को विवादों, मध्यस्थता या दूसरे शांतिपूर्ण तरीकों से समाधान तलाशने का अधिकार देता है.
अगर यह काम नहीं करता तो अध्याय सात सुरक्षा परिषद को "अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने या बहाल करने के लिए" प्रतिबंध लगाने या अधिकारों का प्रयोग करने का भी अधिकार देता है. बल से संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप में पीसकीपिंग यानी शांति स्थापना मिशन शामिल हैं जिसमें सदस्य राज्यों के सैनिक या अर्धसैनिक बलों का इस्तेमाल होता है. वर्तमान में परिषद एक दर्जन शांति मिशन चला रहा है.
वीटो पावर ने शक्ति को कमजोर किया
यूएनएससी के स्थायी सदस्यों के वीटो पावर ने संयुक्त राष्ट्र के विश्व में हो रहे संघर्ष को खत्म करने वाली शक्ति को कमजोर कर दिया है. शीत युद्ध के दौरान भी संयुक्त राष्ट्र एक या दूसरे विरोधी गुटों के वीटो के उपयोग के कारण संघर्षों को रोकने में असमर्थ था.
संयुक्त राष्ट्र में तुरंत परिवर्तन या स्थानान्तरण की जरूरत है. सुरक्षा परिषद एक पुरातात्विक युग के जानवर जैसा हो गया है. वह शीत युद्ध का प्राणी है, अतीत का एक अवशेष है जिसे दयापूर्वक या बिना दया दिखाए खत्म कर देना चाहिए.
जरा इसकी कल्पना कीजिए. लिचेंस्टीन और 2,53,163 ग्राम पंचायतों वाले भारत, दोनों को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक-एक वोट हासिल है जबकि भारत का एक ग्राम पंचायत ही छोटे से लिचेंस्टीन की आबादी के बराबर है.
सुरक्षा परिषद में चीन की जनसंख्या 140 करोड़ के करीब है. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस की कुल आबादी 51 करोड़ है. 138 करोड़ की आबादी वाले भारत के पास कोई स्थायी सीट नहीं है. भारत को दो साल की अस्थायी महाद्वीपीय कोटा सीट के लिए छोटे देशों के साथ चुनाव लड़ना पड़ता है, वह भी बिना वीटो पावर के. अब किसी भी कोण से देखने पर क्या इसका कोई मतलब है? कभी किसी ने सोचा कि बड़े आकार के कारण ही भारत को एक बार स्थायी सदस्य बना कर वीटो पावर दिया जाए.
सुरक्षा परिषद में भारत को शामिल करने की मांग
विश्व बैंक के मुताबिक भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. यह पी-5 सदस्य फ्रांस से आगे है और रूस ग्यारहवें स्थान पर आता है. भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है. एसआईपीआरआई के मुताबिक भारत रक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला तीसरा बड़ा देश है.
पी-5 राज्यों ने भारत को सुरक्षा परिषद में शामिल करने को लेकर अस्पष्ट रूप से कभी-कभी बात की है, भले ही वह वीटो शक्ति के बिना हो. वैसे यह प्रस्ताव खुद को ही खारिज कर देता है. सुरक्षा परिषद को आज के संदर्भ में प्रासंगिक और प्रभावी होने के लिए समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिनिधित्व देना होगा और आज की वास्तविकता वह नहीं है जो पी-5 सोचता है.
किसी भी मामले में यह तथ्य कि सुरक्षा परिषद में सदस्यों की दो श्रेणियां हो सकती हैं – वह जिनके पास वीटो पावर है और वह जिनके पास नहीं हैं खुद ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है जो "मौलिक मानवाधिकारों में पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकारों में विश्वास के साथ बड़े और छोटे राष्ट्रों में भी मौलिक मानवाधिकारों की बात करता है…
सुरक्षा परिषद में भारत को वीटो पावर के बिना एक सदस्य के रूप में रखना अन्याय है. सुरक्षा परिषद में कई देश जनसंख्या और यहां तक की जीडीपी में भारत से कम होते हुए भी वीटो पावर रखते हैं.
अगर परिषद में भारत, जर्मनी, जापान, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को वीटो पावर के बिना पर्मानेंट सदस्य की हैसियत हासिल होती है तब पी-5 को भी सही मायने में सभी देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन बनने का अपना विशेषाधिकार खो देना चाहिए.
1 दिसंबर को बाली में शिखर सम्मेलन में इंडोनेशिया की जी -20 की अध्यक्षता के अंत में भारत को यह घोषणा करनी चाहिए कि कम से कम पांच सदस्यों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए. वहां पर मौजूद पी-5 देशों से भारत को सार्वजनिक प्रतिबद्धता की मांग करनी चाहिए. अगर फिर भारत के साथ कोई छल होता है तो उसे यह घोषित करना चाहिए कि वह सांकेतिक विरोध करते हुए सीमित समय के लिए विश्व निकाय में अपनी भागीदारी को निलंबित कर रहा है.