भारत, पाक और संयुक्त अमीरात

भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों को सामान्य बनाने में ‘संयुक्त अरब अमीरात’ ने अपनी भूमिका स्वीकार करते हुए कहा कि उसका प्रयास है

Update: 2021-04-17 05:10 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: भारत-पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों को सामान्य बनाने में 'संयुक्त अरब अमीरात' ने अपनी भूमिका स्वीकार करते हुए कहा कि उसका प्रयास है कि दोनों देशों के बीच राजनयिक सम्बन्ध इस स्तर के हो सकें जिससे दोनों के बीच बातचीत हो सके। संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत के सम्बन्ध गर्मजोशी के रहे हैं और पाकिस्तान के साथ भी इसके सम्बन्ध मधुर कहे जाते हैं। अतः एशिया महाद्वीप में शान्ति पूर्ण माहौल बनाने के अमीरात के प्रयासों को प्रशंसा योग्य ही कहा जायेगा। वैसे अमीरात एक मुस्लिम देश है मगर इसका प्रशासन उदारपंथी माना जाता है। इस देश में भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों के प्रवासी नागरिकों की संख्या अच्छी खासी है। लेकिन यह भी कम हैरत की बात नहीं है कि भारत और पाकिस्तान को अपने सम्बन्ध सुधारने के लिए किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की जरूरत पड़ रही है क्योंकि 1947 में भारत को काट कर ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। दोनों देशों की संस्कृति में भी कोई अंतर नहीं है सिवाय इसके कि पाकिस्तान मजहब के नाम पर तामीर किया गया और 1956 के बाद से इसने भारत के साथ दुश्मनी को अपना ईमान इस तरह बनाया कि यह इसके वजूद की शर्त का बनता गया। इसकी असली वजह पाकिस्तान में लोकतन्त्र का खात्मा होना रहा वरना हकीकत यह भी है कि जब अंग्रेजों की चालबाजी से पाकिस्तान वजूद में आ ही गया था तो दोनों मुल्कों के रहनुमा इस बात पर राजी थे कि इनके आपसी सम्बन्ध अमेरिका और कनाडा जैसे होने चाहिएं।

भारत ने शुरू से ही पाकिस्तान के प्रति सदाशयता का रुख रखा मगर इस्लामाबाद में फौजी शासन आने के बाद यहां के हुक्मरानों ने अपने मुल्क की आवाम को विकास व प्रगति से मरहूम रखने के लिए अपने लोगों में मजहबी तास्सुब फैला कर हिन्दोस्तान के साथ दुश्मनी की नीति बनाई और जम्मू-कश्मीर का सब्जबाग दिखाने की रणनीति अपनाई। तब से लेकर अब तक पाकिस्तान बारी-बारी फौजी प्रशासन व अर्ध लोकतन्त्र में जी रहा है मगर भारत के प्रति उसकी नीति में गुणात्मक परिवर्तन इसलिए नहीं आया है क्योंकि यह मजहबी जुनून से बाहर नहीं निकल पा रहा है। दुनिया में यह भी एक मिसाल है कि एक साथ ही आजाद होने वाले दो देश किस प्रकार अपने लोगों के विकास के लिए काम करते हैं। एक तरफ भारत विश्व की छठी आर्थिक शक्ति बनने की प्रक्रिया में है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान 'इंटरनेशनल भिखारी' के तमगे से नवाजा जा रहा है। इसके बावजूद अगर पाकिस्तान को संयुक्त अरब अमीरात के कहने पर अक्ल आ रही है तो भारत उसका स्वागत करता है। अमेरिका में अमीरात के राजदूत 'यूसुफ अल ओताइबा' ने अमेरिका में आयोजित एक विचार संगोष्ठी में आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि उऩका देश दोनों देशों को करीब लाने का प्रयास कर रहा है। क्षेत्रीय शान्ति के लिए यह जरूरी है।

दोनों देश अगर दोस्त न भी बनें तो कम से कम दोनों के बीच सुचारू राजनयिक व वाणिज्यिक सम्बन्ध तो होने चाहिएं। पहले अपुष्ट खबरें आयी थीं कि अमीरात के प्रयासों से पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे पर अपनी हठधर्मिता छोड़ दी है और वह रिश्तों को सुधारने का इच्छुक है। विगत फरवरी महीने में दोनों देशों की फौजों के बीच युद्ध विराम की घोषणा की गई और इसके बाद मार्च महीने में दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच सिन्धु नदी जल बंटवारे पर वार्ता भी हुई । इसी के साथ पाकिस्तान ने घोषणा की कि वह भारत से चीनी व कपास का आयात करेगा। जाहिर है कि यह सब अचानक ही नहीं हुआ है और इसकी तह में पर्दे के पीछे से चलने वाली कूटनीति भी रही है। यह भी माना जा रहा है कि विगत जनवरी महीने में भारत की गुप्तचर संस्था के मुखिया व पाकिस्तान की आईएसआई के प्रमुख के बीच भी किसी तीसरे देश में बातचीत हुई थी और उसके बाद ही फरवरी में युद्ध विराम की घोषणा हुई। परन्तु यह भी तय है कि जम्मू-कश्मीर राज्य के दो हिस्सों में बंट जाने और अनुच्छेद 370 के समाप्त हो जाने के बाद से पाकिस्तान की तथाकथित कश्मीर नीति दम तोड़ गई थी जिसकी वजह से अब वह भारत के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने में ही अपनी भलाई समझ रहा है।

भारत हमेशा पाकिस्तान को एक पड़ोसी की तरह देखता रहा है और उसकी हरचन्द कोशिश रही है कि वह पाकिस्तान को साथ लेकर भारतीय उपमहाद्वीप में विकास की नीतियों को अंजाम दे। मगर पाकिस्तान हमेशा पीठ में छुरा घोंपता रहा और हिन्दोस्तान को अपना दुश्मन मानता रहा। यदि इमरान खान को अब अक्ल आ रही है कि भारत के साथ अच्छे सम्बन्धों से ही उनके देश की दशा सुधर सकती है तो 'अल्लाह ताला' उन्हें बरकत बख्शे। इमरान खान को यह भी हिसाब लगाना चाहिए कि अभी तक पिछले 74 सालों में पाकिस्तान ने भारत के साथ दुश्मनी बांध कर इसके साथ युद्धों पर कितना धन खर्च किया? यदि यही धन पाकिस्तान की अवाम की दशा सुधारने पर खर्च किया गया होता तो आज पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति क्या होती? यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तानी अवाम को अभी तक के पाक हुक्मरानों ने उसके जायज हकों से वंचित रखा है और उसे कंगाल बना कर छोड़ दिया है। जबकि स्वतन्त्र होने पर जो भारत एक सिलाई मशीन और सुई तक का उत्पादन नहीं करता था आज दुनिया की वैज्ञानिक टैक्नोलोजी से लेकर कमप्यूटर टैक्नोलोजी तक में दुनिया का सिरमौर बना हुआ है।


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