India China Conflict: भारत के उभार से परेशान चीन
सीमा संघर्ष के बारे में अधिक से अधिक जानकारी साझा करनी चाहिए। ताली बजाने के लिए दो हाथों की जरूरत होती है।
पिछले नौ दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में यथास्थिति को बदलने के लिए चीनी घुसपैठ जून, 2020 में गलवां घाटी में हुई घुसपैठ की पुनरावृत्ति लगती है, सिर्फ अंतर इतना है कि इस बार दोनों पक्षों के कुछ सैनिक घायल हुए हैं। जाहिर है, हम नाराज हैं और गुस्से से उबल रहे हैं। हमेशा की तरह, इस घटना के बाद टिप्पणियों की झड़ी लग गई है कि चीन ने ऐसा क्यों किया। चीन से निपटने के तरीके के बारे में कई तरह के सलाह भी दिए जा रहे हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ लोगों से ऐसी अवांछित सलाह मिलने का जिक्र किया था। मीडिया में स्वघोषित सामरिक विचारकों, नागरिकों एवं सेना द्वारा व्यापक रूप से यही कहा जा रहा है कि चीनी नेतृत्व ने बढ़ती आंतरिक उथल-पुथल से ध्यान हटाने के लिए यांग्त्से में घुसपैठ को अंजाम दिया है।
गौरतलब है कि शून्य कोविड नीति के खिलाफ चीन की जनता ने नाराज होकर व्यापक रूप से प्रदर्शन किया, जिनमें से कुछ ने शी जिनपिंग को पद छोड़ने के लिए भी कहा। विडंबना यह है कि जब दुनिया में कोविड संक्रमण लगभग खत्म हो गया है, तब उस चीन में यह बढ़ रहा है, जो कुछ समय पहले दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में महामारी से बेहतर तरीके से निपटने का दावा कर रहा था। लगभग दो दशकों से जीडीपी में दोहरे अंकों की वृद्धि देखने वाली चीनी अर्थव्यवस्था ट्रंप के शुल्क युद्ध से हिल गई थी, जिसे कोविड ने और तबाह कर दिया। कहा जा रहा है कि इस साल उसकी आर्थिक विकास दर गिरकर 2.5 फीसदी या इससे भी कम रह गई है।
इस बात पर व्यापक सहमति है कि यांग्त्से की घटना को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। यह वस्तुत: देपसांग, पैंगोंग, दोकलाम और अन्य जगहों पर चीनी घुसपैठ की निरंतरता का ही ताजा उदाहरण है। लंबे समय से चीन का यह लक्ष्य है कि पूरे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हलचल बनाए रखी जाए, ताकि परेशान भारत अपनी सीमा की सुरक्षा में ही फंसा रहे। शी जिनपिंग की रणनीति यही है, जिसके प्रति हमें सतर्क रहना चाहिए और अपनी सुरक्षा में ढील नहीं देनी चाहिए। हमें न तो चीन पर भरोसा करना चाहिए और न ही उसके नेताओं द्वारा शांतिपूर्ण संबंधों और सहयोग के बारे में कभी-कभार दिए जाने वाले बयानों से प्रभावित होना चाहिए। सीधी-सी बात है कि चीन भारत के उभार का विरोध करता है!
यह एक खुला रहस्य है कि अमेरिका के साथ हमारी बढ़ती नजदीकी चीन की चिंता का कारण है। भारत-अमेरिका संबंधों में गर्माहट चीन-अमेरिकी संबंधों में तनाव के सीधे अनुपात में है! अमेरिका, भारत और अन्य देशों द्वारा बार-बार दिए गए स्पष्टीकरण के बावजूद चीन हिंद-प्रशांत, क्वाड और ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका का समूह) को चीन विरोधी पहल के रूप में देखता है। इस पृष्ठभूमि में पिछले महीने उत्तराखंड में भारत-अमेरिका संयुक्त सैन्य अभ्यास सांड को लाल कपड़ा दिखाने के जैसा था। चीन ने यह दावा करते हुए इसका विरोध किया था कि यह अभ्यास भारत-चीन के बीच मौजूदा शांति समझौते का उल्लंघन है। यांग्त्से में घुसपैठ भारत के लिए चीन की चेतावनी हो सकती है कि अमेरिका के साथ उसकी निकटता उसे क्षेत्रीय दावों को रोकने और सीमा पर संकट पैदा करने से नहीं रोक पाएगी।
तवांग का राजनीतिक और धार्मिक, दोनों महत्व है, जिसका इस्तेमाल चीन अपने दावे पर जोर देने के लिए करना चाहता है। ऐसे समय में जब अगले दलाई लामा के बारे में अटकलें शुरू हो गई हैं, तब यह धार्मिक और राजनीतिक संदर्भ काफी महत्व रखता है। यह संभावना भी जताई जा रही है कि हमारे बुनियादी ढांचे के निर्माण, खासकर काराकोरम राजमार्ग तक ले जा सकने वाली लिंक रोड ने चीन को गलवां घाटी में आक्रमण के लिए प्रेरित किया हो। बेशक, भारत ने पिछले तीस वर्षों की तुलना में पिछले दस वर्ष में काफी बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है। लेकिन टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित उपग्रह छवियों से संकेत मिलता है कि चीन ने एलएसी के पास बेहतर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है, कई गांव बसाए हैं और एलएसी के किनारे और यहां तक कि ल्हासा में भी ड्रोन और लड़ाकू जेट विमान तैनात किए हैं। ऐसे में, जाहिर है, चीन के पास शिकायत करने का कोई वैध आधार नहीं है।
तथ्य यह है कि फरवरी, 2020 से, जब कोविड ने दुनिया में तबाही फैलाई, मोदी का कद तेजी से बढ़ा है। कोविड की दूसरी भयानक लहर के बावजूद, मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े कोविड नियंत्रण अभियान का नेतृत्व किया; भारतीयों को कोविड टीकाकरण की दो अरब से अधिक खुराक लगवाना और 160 से अधिक देशों को टीके की पेशकश करना एक बड़ा काम है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना की गई। मेलिंडा गेट्स का मानना है कि दुनिया भारत के मॉडल से सीख सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था भी पटरी पर लौट आई है। आभासी शिखर सम्मेलन, डिजिटल परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन के विमर्श में मोदी सबसे आगे रहे हैं। उन्होंने पुतिन को खुले तौर पर कहा कि यह युद्ध का युग नहीं है और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की सोच का विरोध करते हुए उन्होंने बातचीत व कूटनीति की वापसी की वकालत की। इस प्रकार मोदी वैश्विक दक्षिण की आवाज के रूप में उभर रहे हैं। जी-20 और एससीओ की अध्यक्षता के कारण वह आने वाले महीनों/वर्षों में दुनिया के एक प्रमुख नेता बने रहेंगे। क्या यांग्त्से या इसी तरह की अन्य घुसपैठ भारत का कद घटा सकती है?
अलबत्ता हमें अपना घर भी ठीक रखना चाहिए। हमने हुआवेई के 5जी सहित 3,000 चीनी ऐप को प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन गलवां घाटी के संघर्ष के बाद चीन से हमारा आयात बढ़ा है। 2,000 से अधिक चीनी कंपनियां भारत में काम करती हैं और 3,000 से अधिक चीनी विभिन्न कंपनियों के बोर्ड निदेशक के रूप में जमे हैं! लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने ठीक ही कहा है कि सरकार पर लगातार सार्वजनिक हमले और उस पर कमजोरी का आरोप लगाने से कोई फायदा नहीं होता। लेकिन राष्ट्रीय एकता और सर्वसम्मति बनाने के लिए सरकार को भी विपक्षी दलों तक पहुंचना चाहिए और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाले बिना सीमा संघर्ष के बारे में अधिक से अधिक जानकारी साझा करनी चाहिए। ताली बजाने के लिए दो हाथों की जरूरत होती है।
सोर्स: अमर उजाला