भारत की आबादी में कामकाजी आयु (15 से 59 साल तक) के लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है. हम जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति में हैं यानी कमाने वालों की संख्या आश्रितों- बच्चों एवं वरिष्ठ नागरिकों- से अधिक है. देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 साल से कम है. लेकिन यह स्थिति कुछ दशकों में ही बदल जायेगी. सीबीआरइ साउथ एशिया प्राइवेट लिमिटेड की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, पर भारत में इसकी दर अधिक है. वर्ष 2050 तक दुनिया में बुजुर्गों की कुल जनसंख्या का 17 प्रतिशत तक हिस्सा भारत में होगा. आकलनों के मुताबिक, अभी भारत में 15 करोड़ वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष या उससे अधिक आयु के) हैं. यह संख्या अगले 10-12 वर्षों में 23 करोड़ होने का अनुमान है.
पिछले वर्ष सितंबर में इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के सहयोग से तैयार रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने रेखांकित किया था कि 2050 तक देश के 20 फीसदी से अधिक आबादी की उम्र 60 साल से ज्यादा होगी तथा इस सदी के अंत तक उनकी संख्या बच्चों (14 साल या उससे कम आयु) से अधिक हो जायेगी. वर्ष 2050 में बुजुर्गों की संख्या लगभग 35 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया है. पिछले कई वर्षों से देश में एक ओर जन्म दर में कमी आ रही है, तो दूसरी ओर बेहतर खान-पान एवं चिकित्सा सुविधाओं के कारण जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हो रही है. साथ ही, वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए विशेष संसाधन और व्यवस्था की आवश्यकता बढ़ रही है. सीबीआरइ के अनुसार, बुजुर्गों के लिए बनाये गये आवासों में अभी लगभग 10 लाख लोग रह रहे हैं.
यह संख्या अगले एक दशक में 25 लाख होने का अनुमान है. बुजुर्गों की देखभाल का एक बड़ा बाजार भारत में स्थापित हो सकता है. यह बाजार अभी प्रारंभिक स्थिति में है. इसके विस्तार से न केवल वरिष्ठ नागरिकों के लिए बेहतर जीवन मिल सकेगा, बल्कि रोजगार और आमदनी के नये अवसर भी पैदा किये जा सकते हैं. इस संबंध में आवश्यक कौशल और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने पर अभी से ध्यान दिया जाना चाहिए. बुजुर्गों के निवास की अधिकांश व्यवस्था दक्षिण भारतीय राज्यों में है और वहीं इसके बढ़ोतरी की दर भी अधिक है. वहां के अनुभवों से देश के अन्य हिस्सों में ऐसी सुविधाएं स्थापित की जा सकती हैं. दुर्भाग्य की बात है कि 40 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग अत्यंत निर्धन वर्ग से आते हैं. लगभग 19 फीसदी वरिष्ठ नागरिकों के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है. सरकारी कल्याण योजनाओं के विस्तार के साथ-साथ कॉरपोरेट जगत को भी बुजुर्गों पर अधिक ध्यान देना चाहिए.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय