बैंकिंग व्यवस्था पर भरोसा बढ़ा
बैंकिंग क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग क्षेत्र, अर्थव्यवस्था का संकेतक होने के नाते मैक्रो आर्थिक तंत्र का प्रतिबिंब है।
आदित्य नारायण चोपड़ा: बैंकिंग क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग क्षेत्र, अर्थव्यवस्था का संकेतक होने के नाते मैक्रो आर्थिक तंत्र का प्रतिबिंब है। भारत में बैंकिंग क्षेत्र की संरचना किसी देश की बैंकिग प्रणाली की तरह देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बैंकिंग प्रणाली में केंद्रीय बैंक से लेकर सभी बैंकिंग संस्थान शामिल हैं जो कृषि, उद्योगों, व्यापार, आवास आदि जैसे विकासत्मक क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में बैंकों के बड़े घोटाले सामने आए। बैंकों से करोड़ों का ऋण लेकर घी पीने वाले देश से फरार हो गए। कुछ बैंकों के अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाले उजागर हुए, फलस्वरूप बैंकों का एनपीए बढ़ता ही गया। पीएनबी घोटाले में नीरव मोदी और मेहुल चौकसी 11,400 करोड़ का घोटाला कर विदेश भाग गए। देश छोड़कर भाग चुके शराब कारोबारी विजय माल्या ने देश के 13 बैंकों को 9,432 करोड़ का चूना लगाया। इसके अलावा आईसीआईसीआई बैंक घोटाले, इलाहाबाद बैंक घोटाला, रोटोमेक पेन घोटाला, आरपी इन्फोसिस्टम बैंक घोटाला और इसके बाद यस बैंक और महाराष्ट्र के कई सरकारी बैंकों के घोटाले उजागर हुए। बैंकों को ज्यादा नुक्सान होने से हर उस व्यक्ति पर फर्क पड़ता है जिसकी बैंकों में राशि पड़ी होती है। इन सब घोटालों की वजह से लोगों का बैंकिंग सिस्टम पर से भरोसा उठा। जब भी बैंक डूबे सबसे ज्यादा प्रभाव उन लोगों पर पड़ा जिनकी जीवन भर के खून-पसीने की कमाई उनमें जमा थी। नौकरी पेशा और मध्यम निम्न आय वर्ग के लोगों का तो जीवन ही संकट में पड़ जाता था। बैंक डूबने की खबरों के बाद रिजर्व बैंक जब सख्त कदम उठाता है तो एटीएम पर अपनी पूंजी निकलवाने के लिए लोगों की लम्बी कतारें लग जाती हैं। फिर भी लोग अपना धन नहीं निकाल पाते। जिन घरों में शादियां होने वाली होती हैं व बीमारी की अवस्था में उन्हें पैसों की जरूरत होती है, वे मारे-मारे फिरते हैं। हमने कई परिवारों को तिल-तिल मरते देखा है। बैंक डूबने पर खाताधारक को केवल एक लाख रुपए मिलते थे, उसे हासिल करने के लिए भी लोगों को बैंकों और सरकारी कंपनियों के धक्के खाने पड़ते थे। लोगों की हमेशा मांग रही कि बैंक डूबने की सारी जिम्मेदारी प्रबंधन और नियामक की होती है इसलिए इसका खामियाजा जनता क्यों भुगते। इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों के लिए अनेक कदम उठाए। बैंकों का एनपीए कम करने के लिए कड़े कदम उठाए। घाटे वाले बैंकों का विलय लाभ हासिल करने वाले बैंकों में किया गया। सबसे महत्वपूर्ण कदम यह उठाया गया कि बैंक डूबने पर खाताधारक को एक लाख की बजाय 5 लाख रुपए मिलेगा। हालांकि लोग इससे भी संतष्ट नहीं क्योंकि सेवानिवृत्त हो चुके लोगों ने अपनी भविष्यनिधि का पूरा पैसा बैंकों में रखा हुआ है और जो ब्याज मिलता है उससे ही वे अपना खर्च चलाते हैं। फिर भी पांच लाख की राशि मिलना एक बड़ी राहत है। वरिष्ठ नागरिकों की शिकायत है कि बैंकों द्वारा ब्याज दरें घटाए जाने से उन्हें बचत का कुछ खास नहीं मिलता।विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम डिपाजिटर्स फर्स्ट में पांच लाख रुपए तक समयबद्ध जमा राशि बीमा भुगतान गारंटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि अब किसी बैंक के डूबने की स्थिति में खाताधारक को कुल जमा राशि की तुलना में पांच लाख रुपए तक दिया जाएगा। जिसे डिपाजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी कार्पोरेशन द्वारा बैंक डूबने के 90 दिन के भीतर खाताधारक को लौटाया जाएगा। सरकार ने वर्ष 2021 के बजट में इस प्रस्ताव की घोषणा की थी और अगस्त में इस संबंध में विधेयक भी पारित कराया जा चुका है। यह मोदी सरकार की अच्छी पहल है क्योंकि खाताधारकों को कुल रकम में से कम से कम पांच लाख तो मिल ही जाएंगे। इस योजना के तहत 90 से 98 फीसदी खाताधारक सुरक्षित हो चुके हैं। अब तक देश में कुल 17 बैंक अपने खाताधारकों को पैसे लौटाने में विफल रहे थे। अच्छी बात यह है कि लोगों को पैसा तीन माह के भीतर देने की गारंटी दी गई है। सरकार का कहना है कि अब तक इस मद में खाताधारकों को 1300 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। इस योजना के तहत सभी सहकारी बैंकों को भी शामिल किया गया है। योजना में बीमे के अंतर्गत जमा खाते, फिक्स्ड डिपोजिट, चालू खाते हैं और रैकरिंक डिपोजिट भी शामिल है। भारत में बचत की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा है। लोग बैंकों में अपनी जीवन भर की कमाई तभी रखेंगे जब उन्हें इस बात का एहसास होगा कि उनकी पूंजी सुरक्षित है। लोग बैंकों की तरफ तभी आकर्षित होंगे जब उन्हें जमा पूंजी पर उतना ब्याज मिल जाए जिससे वो अपना रोजमर्रा का खर्च चला सकें। मोदी सरकार की पहल से बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा बढ़ेगा और वो अपनी पूंजी को सुरक्षित समझेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि बैंकों के सिस्टम में पहले से कहीं अधिक पारदर्शिता आई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी बैंकों की कार्यप्रणाली पर पैनी नजर रख रहा है। जन-धन खाते खुलने के बाद सरकारी योजनाओं की राशि सीधे उनके बैंक खातों में पहुँच जाती है। मुद्रा योजनाओं का लाभ भी महिलाओं को ज्यादा मिल रहा है। 1991 के आर्थिक सुधारों के तीस साल बाद बैंकिंग व्यवस्था में काफी सुधार हुए हैं फिर भी अभी भी सुधारों की जरूरत है।