अमेरिका के अलास्का राज्य के एंकरेज शहर में हुई सीधी वार्ता ने अमेरिका और चीन के मतभेदों को खोल कर सामने ला दिया। इससे यह संकेत मिला कि चीन अब दब कर अमेरिकी टिप्पणियां सुनने को तैयार नहीं है। हाल की स्थिति को देखते हुए एंकरेज में विवाद का पूर्व अनुमान तो था, लेकिन जिस तरह की आक्रामकता दिखी, उसकी अपेक्षा नहीं थी।
इसका नतीजा यह हो सकता है कि दोनों पक्षों में अब कुछ समय तक बातचीत ना हो। बल्कि ये आशंका अब गहरा गई है कि टकराव लंबा चला तो दुनिया के दो खेमों में बंट सकती है। बैठक की शुरुआत में जिस तरह की तू तू- मैं मैं देखने को मिली, वह भविष्य के लिए खराब संकेत है। इसका परिणाम यह होगा कि चीन अपनी उस तरह की गतिविधियां और तेज कर देगा, जिन पर हाल के महीनों में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को एतराज रहा है। उधर अमेरिका चीन विरोधी गठबंधन को मजबूत करने में अपनी ताकत झोंक देगा।
दोनों पक्षों में तकनीक की होड़ और तीखी हो जाएगी। इसका परिणाम पूरी दुनिया को भुगतना होगा। यह साफ है कि चीन के उच्च राजनयिकों को अलास्का बुलाने और अमेरिका से चीन के जारी तनाव पर सीधे बात करने का जो बाइडेन प्रशासन का दांव उलटा पड़ गया। ऐसा होने की आशंका अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की जापान यात्रा के दौरान ही पैदा हो गई थी, जब दोनों देशों ने तीन के खिलाफ बेहद तीखा बयान जारी किया था।
मुद्दा यह है कि बातचीत से ठीक पहले अमेरिका ने तनाव का माहौल क्यों बनाया? जो बात सीधी बातचीत में बंद कमरे के भीतर चीनी नेताओं से कही जा सकती थी, उसे बातचीत शुरू होने से पहले ही मीडिया के सामने ब्लिंकेन ने कहने का क्यों फैसला किया।
क्या ऐसा अमेरिकी जनता को संदेश देने के लिए किया गया, जहां दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच चीन के विरोध की होड़ लगी हुई है? नतीजा हुआ कि चीनी प्रतिनिधियों ने भी खूब खरी-खोटी सुना दी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने अमेरिका को अपनी समस्याओं पर ध्यान देने की सलाह दे दी और यह भी कह डाला कि अमेरिका दुनिया का नेता नहीं है। अब इसका अमेरिका में क्या संदेश जाएगा, समझा जा सकता है। तो कुल मिलाकर बात पटरी से उतर गई है। भविष्य कयासों के हवाले हो गया है।