By: divyahimachal
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस जारी है। यह प्रस्ताव मणिपुर हिंसा, हत्याओं और महिलाओं के यौन शोषण पर केंद्रित रहना चाहिए था, क्योंकि इस मुद्दे पर ही खासकर राज्यसभा बाधित रही थी। नतीजतन संसद सत्र में नाममात्र का ही काम हो सका। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर को लेकर लंबी खामोशी की मुद्रा में रहे हैं और सदन से लगातार गैर-हाजिर रहे हैं, लिहाजा उन्हें बोलने को बाध्य करने के मद्देनजर अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा। प्रस्ताव पर चर्चा के पहले दिन, करीब 6 घंटे की बहस के दौरान भी, प्रधानमंत्री अनुपस्थित रहे। वह अपने कार्यालय में बैठ कर सांसदों के वक्तव्य सुन रहे होंगे! वैसे यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है कि वह सदन में कब आएं अथवा बिल्कुल न आएं या किसी भी विषय पर हस्तक्षेप करें। बेशक प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार तो अपरिमित हैं। सवाल विशेषाधिकार का नहीं है। कितने विशेषाधिकारों की चर्चा की जाए, सवाल यह है कि प्रधानमंत्री भी प्राथमिक तौर पर लोकसभा सांसद हैं। कमोबेश अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदन में उनकी उपस्थिति अपेक्षित है। हम लोकतांत्रिक नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों के आधार पर यह अपेक्षा कर रहे हैं, क्योंकि चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति के सवाल प्रसंगवश उठाए जाते रहे हैं। प्रधानमंत्री भी संसद से गुरुतर और महान नहीं हो सकते। बहरहाल प्रस्ताव पर बहस की शुरुआत कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने की। अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी उन्होंने ही दिया था। उनका वक्तव्य कुल 35 मिनट का था।
चूंकि वह असम से सांसद हैं, लिहाजा मणिपुर पर वह करीब 22 मिनट तक बोले। उन्होंने वही सवाल उठाए, जो कांग्रेस की ओर से उठाए जाते रहे हैं। सत्ता-पक्ष की ओर से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने चर्चा का आगाज किया, लेकिन मणिपुर की हिंसा, जातीय तनाव और टकराव तथा विस्थापन के अहम पहलुओं पर वह कुछ नहीं बोले। उन्होंने मणिपुर से जुड़े अपने मामा जी का एक निजी प्रसंग जरूर सुनाया। अलबत्ता वह सोनिया-राहुल गांधी पर ही तंज कसते रहे। उन्होंने ‘गरीब के बेटे’ और ओबीसी के खिलाफ अविश्वास करार दिया और 2024 में 400 सीटों के जनादेश के साथ लौटने का दावा किया। पूर्वोत्तर के अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद एवं केंद्रीय मंत्री किरन रिजीजू ने ‘मणिपुर’ शब्द 11 बार बोला, लेकिन महिलाओं पर यौन हमलों का जिक्र एक बार भी नहीं किया। वह यह गिनाते रहे कि कितने उग्रवादी संगठन खत्म हो चुके हैं और कितने उग्रवादियों ने आत्म-समर्पण किया है। यह गिनती कई बार दोहराई जा चुकी है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के पूर्वोत्तर पर दिए गए निर्देश का उल्लेख किया कि 5 कैबिनेट मंत्री और 7 केंद्रीय राज्यमंत्री हरेक 15 दिन के अंतराल पर पूर्वोत्तर राज्य का दौरा करते हैं। एक और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे और सिरसा (हरियाणा) की भाजपा सांसद सुनीता दुग्गल ने मणिपुर का शब्द तक नहीं बोला। राणे महाराष्ट्र पर बोले, जिसका संदर्भ तक नहीं था। विपक्ष में सपा सांसद डिम्पल यादव और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने महंगाई, बेरोजगारी, किसानी पर ही फोकस रखा। अलबत्ता मणिपुर को लेकर मोदी सरकार पर कुछ सवाल जरूर उठाए। ऐसा लगता रहा मानो मणिपुर का उल्लेख प्रसंगवश करना है! मणिपुर के नाम पर 2024 के लिए ताकत का प्रदर्शन करना है! बहस के पहले दिन कुल 18 सांसदों ने वक्तव्य दिए।
शिवसेना के सांसद श्रीकांत शिंदे मणिपुर के हालात और शर्मनाक चीरहरण कांड पर एक बार भी नहीं बोले, लेकिन सदन में ‘हनुमान चालीसा’ जरूर सुनाई। तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने भी प्रधानमंत्री के, खासकर अमरीकी राष्ट्रपति बाइडेन के निजी रात्रि-भोज, विदेशी प्रवास पर टिप्पणी करते हुए सवाल किया कि क्या वह ‘घुमंतू राजदूत’ हैं? सांसदों का मणिपुर सरोकार ऐसा रहा। वहां अब भी मार-काट जारी है। करीब 65,000 लोग विस्थापित हो चुके हैं। करीब 5000 हिंसक घटनाएं हुई हैं। पुलिस से छीन कर करीब 6000 आधुनिक हथियार और कारतूस उग्रवादियों के हाथों में हैं। आगजनी हुई है और बहुत कुछ जला कर राख कर दिया गया है। ऐसे जलते हुए मुद्दे पर सांसदों की संजीदगी अपेक्षित थी। बहरहाल अब देखते हैं कि जवाब में प्रधानमंत्री क्या बोलते हैं? दूसरी ओर बुधवार को दिल सेवा बिल राज्यसभा में भी पारित हो गया। इससे एनडीए की एकता प्रमाणित होती है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के एकजुट हो जाने के बावजूद विपक्ष इस बिल को नहीं रोक पाया। इस बिल के पक्ष में 131 व विरोध में 102 मत पड़े। अब यह बिल राष्ट्रपति के पास जाएगा और उनके औपचारिक हस्ताक्षर हो जाने के बाद यह कानून बन जाएगा। इसके जरिए दिल्ली के मुख्यमंत्री के सीमित अधिकार रखे गए हैं।