अनुचित बयान

जनतंत्र में जनता जो प्रतिनिधि चुनती है, वे वास्तव में जनता के सेवक होते हैं, उसके आका नहीं। वे जो भी जनकल्याण हेतु व्यवस्था करते हैं वह उनका कर्तव्य होता है

Update: 2022-08-06 05:32 GMT

Written by जनसत्ता: जनतंत्र में जनता जो प्रतिनिधि चुनती है, वे वास्तव में जनता के सेवक होते हैं, उसके आका नहीं। वे जो भी जनकल्याण हेतु व्यवस्था करते हैं वह उनका कर्तव्य होता है, अहसान नहीं। संसद में मंहगाई पर चर्चा के दौरान भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने बड़े गर्व से कहा कि उनकी सरकार अस्सी करोड़ गरीबों को मुफ्त खाना खिलाती है (उन्होंने फ्री फंड शब्दों का प्रयोग किया)।

पार्टी का जनता पर अहसान लादते हुए उन्होंने इस सत्कार्य के लिए सरकार को बधाई का हकदार माना। प्रधानमंत्री से लेकर सारे मंत्री और भाजपा सांसद/ विधायक सदन तथा विभिन्न मंचों में इस कार्य को अहसान के रूप में जताते रहते हैं। यह एक प्रकार से साधनहीन जनता का घोर अपमान है। ऐसा कह कर दुबेजी जनता को मुफ्तखोर तथा सरकार के टुकड़ों पर पलने वाली बता रहे हैं।

प्रश्न है कि मुफ्तखोर कौन? जरूरतमंद साधनहीन गरीब देशवासी या करदाताओं के पैसे से कई प्रकार की सुविधाओं का उचित/ अनुचित लाभ उठाने वाले सांसद? सत्ताधारी पार्टी के सदस्य कर्तव्य एवं दायित्व के निर्वहन को अहसान बताना बंद करें। जनता आपको सेवा का मूल्य देती है, इसलिए प्रदत्त सुविधाओं के लिए 'मुफ्त' फ्री फंड आदि फूहड़ शब्दों का प्रयोग बंद करें।


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