पंजाब का घमासान काफी समय से चल रहा है, जिसको पार्टी अनदेखी करती रही. पर हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब का संज्ञान लिया और अब नेतृत्व के ऊपर चल रहे विवाद को सुलझाने की कोशिश करती दिख रही है. पंजाब का विवाद सिर्फ इतना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले पूर्व अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर और बीजेपी में नेता नवजोत सिंह सिद्धू को गांधी परिवार पार्टी में ले कर आई. राहुल गांधी उस समय पार्टी अध्यक्ष होते थे. उन्होंने ने सिद्धू से क्या वादा किया था उस बारे में सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है. राहुल गांधी के फैसले से कैप्टन अमरिंदर सिंह खुश नहीं थे, पर चुनाव जीतने के बाद उन्हें सिद्धू को अपने मंत्रीमंडल में शामिल करना पड़ा.
क्या सिद्धू को उपमुख्यमंत्री पद का वादा देकर मना लिया गया है?
समस्या यह थी कि सिद्धू अमरिंदर सिंह को अपना नेता माने को तैयार नहीं थे. सिद्धू सिर्फ गांधी परिवार को ही नेता मानते थे. अमरिंदर सिंह ने सिद्धू से उनका पसंदीदा मंत्रालय छीन लिया जिसके विरोध में 2019 में सिद्धू ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. पर जैसे ही अगला चुनाव नज़दीक आने लगा, सिद्धू ने अमरिंदर सिंह पर हमला करना शुरू कर दिया. पहले पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने दोनों में सुलह कराने की असफल कोशिश की, फिर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में एक तीन-सदस्यीय कमिटी का गठन किया. कमिटी ने हर संभव कोशिश की और अमरिंदर सिंह और सिद्धू समेत पार्टी के सभी बड़े नेताओं से बात की, पर समस्या सुलझाने में असफल रही.
कहा गया कि सोनिया गांधी 10 जुलाई तक पंजाब पर अपना फैसला सुनाएंगी. पर लगता है कि मामला काफी पेचीदा है, और मजबूरीवश प्रियंका और राहुल गांधी को ना चाह कर भी सामने आना पड़ा. कल पहले प्रियंका सिद्धू से अपने घर पर मिलीं, फिर प्रियंका बड़े भाई राहुल से मिलने गयीं, प्रियंका दोबारा सिद्धू से मिलीं और उसके बाद सिद्धू की राहुल गांधी से मुलाकात हुई. माना जा रहा है कि गांधी परिवार सिद्धू को उपमुख्यमंत्री बनाने पर सहमत हो गया है, पर अमरिंदर सिंह इसके विरोध में हैं. उनका कहना है कि जहां सिद्धू को अनुशासनहीनता के लिए लिए दंड दिया जाना चाहिए था पार्टी उन्हें पुरुस्कृत करना चाहती है, जो उन्हें मंजूर नहीं है.
राहुल गांधी किस हैसियत से पार्टी के फैसले ले रहे हैं?
अगर अमरिंदर सिंह की चले तो वह सिद्धू को कांग्रेस पार्टी से निलंबित कर दें, पर गांधी परिवार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती, वह भी जबकि चुनाव नजदीक आता जा रहा है. गांधी परिवार का डर स्वाभाविक है कि कहीं सिद्धू-अमरिंदर सिंह विवाद के कारण पार्टी पंजाब में चुनाव हार ना जाए. यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कौन और कैसे अमरिंदर सिंह को सिद्धू को उपमुख्यमंत्री बनाने का आदेश देता है, और क्या वह उसे मानेंगे भी?
इस प्रकरण से जो सबसे बड़ा सवाल उठता है कि राहुल गांधी किस हैसियत से पंजाब कांग्रेस के नेताओं से मिल रहे हैं और अब फैसला भी लेने वाले हैं. राहुल गांधी ने पिछले लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बाद 2019 में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. सोनिया गांधी पिछले लगभग दो सालों से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं. प्रियंका गांधी पार्टी की महासचिव हैं. हालांकि उनके पास उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी है, पर पंजाब में उनकी दखलंदाजी गैर कानूनी नहीं कही जा सकती क्योंकि उनके पास पार्टी का महत्वपूर्ण पद है. पर राहुल गांधी तो अब मात्र पार्टी के सांसद और कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य हैं. उनके पास कोई पद भी नहीं है. क्या पार्टी का कोई और सांसद या वर्किंग कमिटी का सदस्य इस तरफ मीटिंग कर सकता है और पार्टी के बारे में ऐसा कोई महत्वपूर्ण निर्णय ले सकता है?
कांग्रेस में बिना पद के फैसले लेने वालों का इतिहास रहा है
राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी में फिलहाल एक Extra Constitutional Authority हैं. बिना किसी पद के ही उन्होंने यह फैसला ले लिया था कि पश्चिम बंगाल चुनाव में कांग्रेस पार्टी वामदलों की सहयोगी दल के रूप में चुनाव लड़ेगी. पार्टी को मजबूरीवश उनका फैसला मानना पड़ा और नतीजा रहा पश्चिम बंगाल में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पायी.
राहुल गांधी पहले Extra Constitutional Authority नहीं है जो बिना पद और बिना उत्तरदायित्व के पार्टी चलाते हैं. उनके चाचा संजय गांधी का इंदिरा गांधी के समय में पार्टी पर पूरा कंट्रोल होता था और वह सरकार के कामकाज में भी खुल कर हस्तक्षेप करते थे. कुछ ऐसा ही तेवर सोनिया गांधी का भी दिखता था जबकि केंद्र में 2004 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष थीं पर देश के प्रधानमंत्री को वह आदेश देती थीं. सरकार का कोई भी फैसला बिना उनकी इजाजत के नहीं लिया जा सकता था. विपक्ष ने सोनिया गांधी को उन दिनों 'सुपर पीएम' कहना शुरू कर दिया था.
क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह गांधी परिवार का फैसला मानेंगे?
अगर बिना पद और बिना उत्तरदायित्व के राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के बड़े-बड़े फैसले ले रहे हैं तो गलती उनकी नहीं है, बल्कि गलती उनकी है जिन्होंने या तो सिखाया नहीं कि कांग्रेस पार्टी उनके खानदान की जागीर नहीं है, पार्टी का एक संविधान है जिसके दायरे में ही सभी सदस्यों को रहना पड़ता है, या फिर गलती उनके सलाहकारों की है जो शायद उन्हें यह सलाह देते होंगे कि जब तक फैसला गांधी परिवार ले रहा है, तब तक वह संवैधानिक माना जाएगा. देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी द्वारा पंजाब के बारे में लिया गया असंवैधानिक फैसला क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह को मान्य होगा? वैसे कांग्रेस पार्टी के हित में यही रहेगा कि पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव जल्दी से जल्दी हो जाए, ताकि राहुल गांधी के फैसलों को असंवैधानिक ना कहा जा सके. करोना महामारी के नाम पर कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी चुनाव टलता जा रहा है, पर अब तो करोना का प्रकोप भी कम हो गया है.