कृषि कानून विरोधी आंदोलन के बहाने किसान नेताओं ने पकड़ी सियासी पगडंडी, बंगाल में ममता को दिया खुलकर समर्थन

कोई भी आंदोलन हो, उसकी आड़ में अराजकता स्वीकार्य नहीं।

Update: 2021-03-15 01:48 GMT

चंद किसान संगठनों की ओर से जारी कृषि कानून विरोधी आंदोलन जिस तरह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा, वह केवल किसान नेताओं की जिद को ही जाहिर नहीं करता, बल्कि यह भी बताता है कि वे किस तरह किसानों के साथ छल करने में लगे हुए हैं। जो किसान नेता यह बहाना बनाने में लगे हुए थे कि उनका राजनीतिक दलों से कोई लेना-देना नहीं, वे इन दिनों बंगाल के दौरे पर हैं और ममता बनर्जी को जिताने की अपील करने में लगे हुए हैं। उनकी इस पैंतरेबाजी से उन्हेंं खुलकर समर्थन देने वाले वाम दल भी असहज हैं। यह तो समझ आता है कि किसान नेता चुनाव वाले राज्यों में पहुंचकर भाजपा को हराने की अपील करें, लेकिन किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि आखिर वे बंगाल पहुंचकर उस ममता सरकार की पैरवी कैसे कर सकते हैं, जिसने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से अपने राज्य के किसानों को किसान सम्मान निधि से वंचित कर रखा है? साफ है कि इन किसान नेताओं को आम किसानों के हितों की कहीं कोई परवाह नहीं। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि वे उस नियम का विरोध करने के लिए आगे आ गए हैं, जिसके तहत केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि सरकारी खरीद वाले अनाज का पैसा सीधे किसानों के खाते में जाएगा। यह व्यवस्था किसानों को बिचौलियों और विशेष रूप से आढ़तियों की मनमानी से बचाने के लिए की गई है, लेकिन हैरानी की बात है कि किसान नेताओं को यह रास नहीं आ रहा है। आश्चर्यजनक रूप से पंजाब सरकार भी इस व्यवस्था से कुपित है।

किसान नेता किस तरह अपने आंदोलन के नाम पर किसानों को गुमराह कर उन्हेंं बदनाम करने का काम कर रहे हैं, इसका पता उनकी ओर से दिल्ली सीमा पर सड़कों पर पक्के मकान बनाने से चलता है। यह अंधेरगर्दी और अराजकता के अलावा और कुछ नहीं। इस अराजकता पर इसलिए अंकुश लगाया जाना चाहिए, क्योंकि दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों को प्रतिदिन घोर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अब जब यह स्पष्ट है कि किसान नेता मनमानी पर आमादा हैं, तब फिर इसका कोई औचित्य नहीं कि आम लोगों को जानबूझकर तंग करने वाली उनकी हरकतों की अनदेखी की जाए। इसमें कोई हर्ज नहीं कि किसान नेता अपने आंदोलन को राजनीतिक शक्ल देकर इस या उस दल के साथ खड़े हो जाएं, लेकिन उन्हेंं आम जनता को परेशान करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। सड़कों को घेरने और टोल नाकों पर कब्जा करने की हरकतें कानून एवं व्यवस्था का उपहास ही उड़ा रही हैं। कोई भी आंदोलन हो, उसकी आड़ में अराजकता स्वीकार्य नहीं।


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