मणिपुर चुनाव में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से बीजेपी को गिफ्ट में सरकार देने की तैयारी में है?
मणिपुर चुनाव में कांग्रेस पार्टी
अजय झा
अगले दो महीनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के साथ मणिपुर में भी विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) होने वाले हैं. मणिपुर (Manipur) का नाम अलग से लेने का कारण यह है कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह मणिपुर के बारे में भारत के अन्य हिस्सों में लोगों को या तो इसके बारे में जानकारी नहीं है या फिर दिलचस्पी नहीं है. मणिपुर के बारे में आम जानकारी इतनी ही है कि मणिपुरी डांस शैली पूरे भारत में काफी प्रचलित है और मणिपुर ने खेल जगत में, खासकर मुक्केबाजी और भारोत्तोलन में भारत को मैरी कॉम (Mary Kom) जैसे चैंपियन खिलाड़ी दिए हैं. मणिपुर के बारे में लोग यह भी जानते हैं कि सिक्किम और त्रिपुरा के अलावा मणिपुर भी पूर्वोत्तर में एक हिन्दू बहुल राज्य है. मीडिया में मणिपुर के बारे में ख़बरें कम ही आती हैं. अन्य चार राज्यों की तुलना में मणिपुर में चुनाव की चर्चा मीडिया में कम होती है और चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी प्रदेश में कम ही होते हैं.
पर आज मणिपुर मीडिया में चर्चा का विषय है. कारण है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) का कल मणिपुर का दौरा. जहां उन्होंने प्रदेश में कई केंद्रीय परियोजनाओं की घोषणा की. चूंकि प्रदेश में चुनाव है, मोदी की एक रैली भी हुई जहां उन्होंने दावा किया कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्होंने केंद्र सरकार को मणिपुर के द्वार पर ला खड़ा किया और पिछले पांच वर्षों में डबल इंजन सरकार की उपलब्धियों को भी गिनवाया. अभी तक मिली जानकारी के अनुसार मणिपुर में एक बार फिर से बीजेपी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनने की प्रबल सम्भावना है.
मणिपुर में भी गोवा की तर्ज पर बीजेपी की सरकार बनी थी
पिछला चुनाव मणिपुर की इतिहास में खास है, क्योंकि पहली बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी थी. पर चुनाव से ज्यादा रोचक था प्रदेश में चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार का बनना. 2017 के चुनाव में गोवा की ही तरह मणिपुर में भी त्रिशंकु विधानसभा का चयन हुआ था, दोनों प्रदेशों मे कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर सामने आई थी पर सरकार बनाने में बीजेपी कामयाब रही. केंद्र में बीजेपी की सरकार होने का फायदा मिला. दोनों प्रदेशों में बीजेपी द्वारा नियुक्त राज्यपाल थे– गोवा में मृदुला सिन्हा और मणिपुर में नजमा हेपतुल्ला. दोनों राज्यपालों ने कांग्रेस पार्टी के दावे को ख़ारिज कर दिया और बीजेपी के दावे को स्वीकार करके बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रण दे दिया. पर दोष राज्यपालों को नहीं दिया जा सकता. कांग्रेस पार्टी ने दावा तो पेश किया पर बहुमत के दावे का प्रमाण नहीं दिया.
आइए एक नजर डालते हैं कि 2017 के चुनाव में क्या हुआ. मणिपुर विधानसभा के 60 सीटों के लिए चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस पार्टी जिसकी लगातार 15 वर्षों से सरकार थी, बहुमत से तीन सीट कम यानि 28 सीटें ही जीत पायी. बीजेपी ने पहली बार मणिपुर विधानसभा में अपना खाता खोला और 21 सीटें जीतने में सफल रही. पर इससे पहले कि कांग्रेस पार्टी तीन विधायकों का समर्थन जुटा पाती, बीजेपी को नागा पीपुल्स पार्टी और नेशनल पीपुल्स पार्टी, जिसके चार-चार विधायक थे, ने बीजेपी को समर्थन दे दिया. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने एकलौते आज़ाद उम्मीदवार को किडनैप कर के जबरदस्ती उसका समर्थन ले लिया, लोक जनशक्ति पार्टी के इकलौते विधायक ने भी बीजेपी को समर्थन दिया.
2017 से पहले मणिपुर में बीजेपी का कोई आधार नहीं था
तृणमूल कांग्रेस के इकलौते विधायक ने ममता बनर्जी की अनसुनी कर दी और बीजेपी को ना सिर्फ समर्थन दिया बल्कि वह बीजेपी में भी शामिल हो गए और गोवा की ही तरह कांग्रेस के एक नवनिर्वाचित विधायक भी बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी के पास 32 विधायक हो गए और नजमा हेपतुल्ला को बीजेपी नेता एन बीरेन सिंह को सरकार बनाने का न्योता देने में कोई संकोच नहीं हुआ. गोवा की ही तरह बीजेपी मणिपुर में भी कांग्रेस पार्टी में सेंध लगाने में सफल रही और ठीक गोवा की ही तरह कांग्रेस के 13 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, बीजेपी चुनाव के पश्चात पिछले दरवाज़े से बहुमत जुटाने में सफल रही.
यह भी बता दें कि 2017 के चुनाव के पहले बीजेपी का मणिपुर में कोई आधार नहीं था. अक्टूबर 2016 में एन बीरेन सिंह कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए थे और उन्होंने असम में तात्कालिक मंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ मिल कर मणिपुर में बीजेपी को खड़ा करने का काम किया. एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में ही बीजेपी एक बार फिर से मणिपुर चुनाव लड़ने जा रही है.
कांग्रेस के पास मणिपुर में चेहरे की कमी हो गई है
ना सिर्फ गोवा की ही तरह कांग्रेस पार्टी के विधायक बीजेपी में शामिल होते गए और कांग्रेस पार्टी कुछ भी नहीं कर पाई, बल्कि आज जब चुनाव सिर पर हैं, कांग्रेस पार्टी के सामने चुनाव जीतने लायक उम्मीदवारों की भी भारी कमी है. पिछले अगस्त में मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्ददास कोंथौजाम कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह कर बीजेपी में शामिल हो गए. कांग्रेस के पास इसके सिवा और कोई विकल्प नहीं है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह को ही सामने रख कर चुनाव लडे़. इबोबी सिंह ना सिर्फ 73 वर्ष के हो चुके हैं, बल्कि उनका स्वास्थ्य भी अब ठीक नहीं रहता है. ऊपर से उनपर इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट की तरफ से मनी लांड्रिंग का केस भी चल रहा है. पिछले पांच वर्षों से वह जनता में बीच से गायब रहे हैं और अब वह कांग्रेस की कमान संभालेंगे जिससे कांग्रेस पार्टी के जीत की सम्भावना कम हो गयी है.
एक और कारण है जिस वजह से कांग्रेस पार्टी मणिपुर में लचर दिख रही है. पार्टी लगातार 15 वर्षों से सत्ता में रही पर पार्टी आलाकमान ने मणिपुर को अपना कैडर नहीं बनाया और संगठन का ढांचा भी ठीक से नहीं बन पाया. लिहाजा जब कांग्रेस पार्टी के विधायक बीजेपी में शामिल हुए तो उनके साथ कांग्रेस के कार्यकर्ता भी बीजेपी में चले गए और आगामी चुनाव में कांग्रेस पार्टी के पास कार्यकर्ताओं का अकाल पड़ गया है.
अगर आज राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कांग्रेस पार्टी काफी कमजोर दिख रही है तो इसका सबसे बड़ा कारण है कि कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के इर्दगिर्द ही घूमती रही और गांधी परिवार की दिलचस्पी सिर्फ केंद्र की राजनीति तक ही सिमित हो कर रह गयी. मणिपुर में कांग्रेस पार्टी कमजोर होती गई और पार्टी आलाकमान में कानों में जूं तक नहीं रेंगी. मणिपुर में कांग्रेस पार्टी ने पांच वर्ष पूर्व तोहफे में बीजेपी को सरकार दे दिया था और एक बार फिर से वही होने की सम्भावना दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)