इमरान खान रन आउट

सियासत और रणनीति के तमाम दांव-पेंच खेलने के बावजूद इमरान खान को ‘रन आउट’ कर दिया गया

Update: 2022-04-10 19:08 GMT

सियासत और रणनीति के तमाम दांव-पेंच खेलने के बावजूद इमरान खान को 'रन आउट' कर दिया गया। अब वह पाकिस्तान के पूर्व वजीर-ए-आजम होंगे। नेशनल असेंबली, यानी संसद, में नेता प्रतिपक्ष रहे शहबाज शरीफ नए प्रधानमंत्री होंगे। वह पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के छोटे भाई हैं, लिहाजा नई हुकूमत में ऐसी कोशिशें होना तय है, जिनके जरिए नवाज़ लंदन से पाकिस्तान लौट सकें। 'पनामा पेपर्स' में नाम उछलने और बेनामी निवेश के गंभीर आरोप उनके खिलाफ हैं। मामला अदालत के विचाराधीन है। बहरहाल इमरान खान ने हुकूमत बचाए रखने के लिए तमाम 'घोड़े' खोल लिए। फौज से भी गुहार लगाई कि वह हुकूमत अपने अधीन ले ले। यह भी शर्तनुमा गुहार लगाई कि उन्हें या उनके किसी भी वजीर को गिरफ्तार न किया जाए। राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश के तहत उन्होंने एनआरओ के लिए भी गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट को फौज के जरिए सलाह देने की कोशिश की कि अदालत संसद बहाली पर उनकी पार्टी की पुनर्विचार याचिका तुरंत सुन ले। यहां तक पत्ता खेला गया कि शहबाज शरीफ के बजाय किसी और शख्स को प्रधानमंत्री बनाया जाए। दरअसल इमरान खान को क्रिकेट का मुग़ालता था, लिहाजा वह अपने दांव-पेंच चलते रहे। आधी रात के करीब जब हारना अपरिहार्य हो गया, तो वह संसद में गए। सब कुछ तय हो चुका था कि स्पीकर असद कैसर और डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी पाकिस्तान के खिलाफ विदेशी साजि़श का बहाना बनाकर इस्तीफे देंगे, लिहाजा ऐसा ही किया गया।

इमरान खान समेत तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी और सहयोगी दलों के सांसदों ने संसद भी छोड़ दी। हुकूमत वाला पक्ष सन्नाटे में खाली था। अंततः मत-विभाजन कराया गया, तो इमरान खान के खिलाफ 174 वोट पड़े। वे सामान्य बहुमत से दो वोट ज्यादा थे। हालांकि दावा 199 वोट का किया जा रहा था। आधी रात में 12.58 बजे, तकनीकी रूप से 10 अप्रैल को, इमरान का खेल खत्म हो गया और उन्हें 'रन आउट' कर दिया गया। अराजकता और हिंसा फैलाने की नौबत यहां तक आ गई थी कि सेना को सड़कों पर बिछा-सा दिया गया। एयरपोर्ट तक पर 'हाई अलर्ट' घोषित किया गया। संसद भवन, प्रधानमंत्री आवास, सुप्रीम कोर्ट आदि के बाहर सुरक्षा बंदोबस्त बेहद व्यापक और कड़े किए गए। कैदियों वाले वाहन संसद भवन के बाहर तैनात किए गए। इमरान समर्थक जमावड़ा सड़कों पर आंदोलित जरूर हुआ था, लेकिन किसी अनहोनी की ख़बर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और अन्य न्यायाधीशों को रात में ही अदालत आना पड़ा, क्योंकि इमरान खान और उनके सहयोगी नेताओं के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की संभावनाएं पुख्ता होने लगी थीं। शहबाज की छवि एक बेहतर प्रशासक की है। वह कई सालों तक पाकिस्तान पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री रहे हैं। नवाज़ के उलट फौज के साथ उनके बेहतर रिश्ते बताए जाते हैं। मौजूदा घटनाक्रम से भी साफ हो गया है कि फौज ने इमरान का साथ नहीं दिया। यह भी स्पष्ट है कि चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को शहबाज के मुख्यमंत्री काल के दौरान तेजी से निपटाया गया। चीन शहबाज को 'पंजाब स्पीड' कहता रहा है।
यदि शहबाज टिकाऊ प्रधानमंत्री साबित होते हैं, तो पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे पर 'युद्धविराम' के लिए पहल कर सकता है और भारत को मना सकता है। सेना प्रमुख जनरल बाजवा की चाहत यही है कि भारत के साथ कामकाजी रिश्ते कायम किए जाएं। दोनों देश अधिकृत तौर पर कारोबार भी शुरू कर सकें। रूस-चीन के बजाय अमरीका के साथ रणनीतिक संबंध प्रगाढ़ किए जाएं, यह शहबाज शरीफ और उनके गठबंधन की सोच सार्वजनिक की जा चुकी है। विदेशी साजि़श की याचिका इस्लामाबाद हाईकोर्ट में दी गई थी, जिसे सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया गया है। अमरीका की भी निगाहें पाकिस्तान के सियासी माहौल पर टिकी होंगी। बहरहाल पाकिस्तान में सबसे नाजुक और मौजू मुद्दा महंगाई, बेरोज़गारी और आर्थिक हालात का है। पाकिस्तान को पैसा चाहिए। क्या आईएमएफ देगा? क्या चीन अब भी कर्ज़ देता रहेगा? अमरीका का रुख क्या होगा? ये तमाम सवाल चुनौतियों की तरह आने वाले प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सामने होंगे। जो साझा मोर्चा बना है, उसे भी बांध कर रखना है और उसके साथ ही चुनावों में जाने की दरकार होनी चाहिए। बहरहाल एक बार फिर पाकिस्तान का चेहरा बदला है, लेकिन जम्हूरियत अब भी सवालिया है। अब देखना यह है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र का क्या होता है।

केडिट बाय दिव्याहिमाचल

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