नीयत का खोटा 'इमरान खान'
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमन्त्री इमरान खान को उनके देश के चुनाव आयोग ने जिस तरह अगले पांच वर्ष के लिए किसी सार्वजनिक पद पर रहने या चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया है
आदित्य नारायण चोपड़ा: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमन्त्री इमरान खान को उनके देश के चुनाव आयोग ने जिस तरह अगले पांच वर्ष के लिए किसी सार्वजनिक पद पर रहने या चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिया है उससे इस देश की राजनीति के चरित्र का मूल्यांकन आसानी से किया जा सकता है। इमरान खान पर यह आरोप सिद्ध हुआ है कि वह 'नीयत से भी बेईमान' हैं। उनकी राजनैतिक बेईमानी तो पूरी दुनिया पर तब जाहिर हुई थी जब पाकिस्तान राष्ट्रीय एसेम्बली में उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ का बहुमत समाप्त हो गया था और उन्होंने बजाये एसेम्बली में अपना बहुमत सिद्ध करने के इस मसले को सड़कों पर पटक दिया था तथा एसेम्बली के अध्यक्ष की मार्फत पूरे सदन को किसी सर्कस में तब्दील करके रख दिया था। उस समय पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने दखल देकर इसकी राष्ट्रीय एसेम्बली की इज्जत को किसी तरह संभालने की कोशिश की थी और सदन में शक्ति परीक्षण कराये जाने का आदेश दिया था। वैसे तो पाकिस्तान का लोकतन्त्र बहुत ही 'खस्ता' और अधकचरा माना जाता है परन्तु इसके बावजूद इसकी न्याय प्रणाली ने इसका 'वकार' कायम रखने की गरज से रात को अपनी अदालत लगाकर जम्हूरियत के हक में फैसला दिया था। तब कहीं जाकर पाकिस्तान में विपक्षी पार्टी मुस्लिम लीग को अपनी हुकूमत बनाने का जायज अवसर मिला था और श्री शहबाज शरीफ ने प्रधानमन्त्री पद की कुर्सी संभाली थी। मगर इमरान खान की बेइमानी किस कदर इस मुल्क की जहनियत में बेईमानी भरने पर आमादा थी इसका पता तब चला जब इमरान खान के कुर्सी से हटने के बाद इस हकीकत का इल्म हुआ कि गद्दी पर रहते हुए हुजूर ने गैर मुल्कों से मिले उन कीमती तोहफों की ही तिजारत कर डाली जो वजीरेआजम उन्हें दिये गये थे। ये सभी तोहफे इमरान खान की जाती मिल्कियत या व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं थे बल्कि उनके ओहदे का एहतराम थे। वजीरेआजम के औहदे पर रहते हुए उन्होंने जिस तरह इन तोहफों की खरीद-फरोख्त की वह पाकिस्तान की अवाम की सबसे बड़ी तौहीन थी क्योंकि लोकतन्त्र में किसी भी देश के राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री को मिले विदेशी या स्वदेशी तोहफे सिर्फ अवाम की मिल्कियत ही होते हैं। इमरान खान ने रोलेक्स की बेशकीमती घड़ियां बेचीं और खरीदी उससे यह साबित हो गया कि पाकिस्तान का वजीरेआजम 'सादिके अमीन' नहीं था। पाकिस्तान में जैसा भी टूटा-फूटा संविधान है , उसकी यह पहली शर्त है कि वजीरेआजम के औहदे पर बैठने वाले इंसान को सादिके अमीन होना चाहिए अर्थात उसके आचरण व व्यवहार पर किसी प्रकार का कोई दाग न हो। वह नीयत का साफ हो और उसका अखलाक पाक-साफ हो। वह शक- शुबह से ऊपर हो। मगर इमरान खान ने तो सारी हदें पार कर डाली और अपनी नीयत चन्द करोड़ रुपये के लिए खराब करके वजीरेआजम के औहदे को पामाल कर डाला और मुल्क की 'अमानत में खयानत' करने का पाप किया। वजीरेआजम के औहदे पर रहते हुए कोई इंसान एेसा भी कर सकता है, इससे भारतीयों को आश्चर्य जरूर हो सकता है क्योंकि इस देश में बेशक राजनीतिज्ञों में सियासत को लेकर उठा-पटक खूब होती हो मगर इमरान खान जैसी ओछी हरकत करने के बारे में किसी भी पार्टी का राजनीतिज्ञ सोच भी नहीं सकता है। एेसा केवल 'नाजायज मुल्क पाकिस्तान' में ही हो सकता है जो 75 साल पहले 'किराये की जमीन पर दस लाख लोगों की लाशों के ऊपर तामीर किया गया था'। यह बार-बार लिखने की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवाद की जरखेज जमीन 1980 के बाद से ही बना हुआ है और इसके फौजी हुक्मरान जनरल जिया-उल-हक की जब 1988 में मौत हुई तो तब तक पाकिस्तान दहशतगर्दों की सैरगाह बन चुका था। इसके बाद यह सिलसिला आज तक चल रहा है जिसका सबसे बड़ा खामियाजा भारत को ही उठाना पड़ रहा है क्योंकि पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में घुसपैठ करके अपनी शैतानी हरकतों को अंजाम देते रहते हैं। इन दहशतगर्द तंजीमों को वित्तीय साधन सुलभ कराने का सबसे बड़ा अड्डा भी पाकिस्तान बना जिसकी वजह से इसे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर लगाम लगाने वाली संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्यदल ( फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) ने संदेहास्पद देशों की सूची (ग्रे लिस्ट) में डाल दिया था और ताईद की थी कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों को वित्तीय साधन सुलभ करने के मामलों पर रोक लगाये और कहा निगरानी तन्त्र खड़ा करे व दहशतगर्द तंजीमों के खिलाफ माकूल कार्रवाई करे। संपादकीय :दीपावली व आर्थिक विचारधारादिल से दीये जलाओमोदी का मिशन लाइफदिल्ली की संयुक्त नगर निगमलिज ट्रस : छिन गई कुर्सीखड़गे कांग्रेस के सिपहसालार37 देशों के इस टास्क फोर्स ने पाकिस्तान के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की थीं जिन पर अमल करके वह ग्रे लिस्ट से बाहर निकल सकता है। टास्क फोर्स की अब जाकर राय बनी है कि पाकिस्तान की सरकार इस दिशा में उसके निर्देशों का पालन करती हुई लग रही है इसलिए उसने इसे ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया है। मगर भारत के पास एेसे प्रमाण हैं कि पाकिस्तान अब भी दहशतगर्दों को शह देने की कार्रवाईयों में लिप्त है इसलिए टास्क फोर्स के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बेबाक राय दी है कि पूरी दुनिया को इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि पाकिस्तान अब दहशतगर्द तंजीमों के खिलाफ विश्वसनीय, परीक्षायोग्य व अपरिवर्तनीय कदम उठाते हुए माकूल कार्रवाई करे।