सुधरती अर्थव्यवस्था, बेलगाम महंगाई

भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व कोरोना वायरस के चलते काफी मुश्किल संकट से गुजरा

Update: 2021-02-28 12:25 GMT

भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व कोरोना वायरस के चलते काफी मुश्किल संकट से गुजरा। कोरोना वैक्सीन आ जाने के बावजूद देश के अधिकांश लोगों ने मान लिया कि अभी भी उन्हें इसी हाल में जीना है और पहले वाला डर अब नहीं रहा। यद्यपि कोरोना के नए वेरिएंट के मरीज बढ़ रहे हैं लेकिन लोगों की दिनचर्या सामान्य हो चुकी है। सभी दुकानों, होटल, रेस्टोरेंट, मॉल और बाजारों में भीड़ पहले की ही तरह है। इसी बीच अच्छी खबर यह है कि देश की अर्थव्यवस्था वृद्धि के रास्ते पर आ गई है। कृषि, सेना और निर्माण क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन के कारण चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही अक्तूबर-दिसम्बर में सकल घरेलू उत्पाद में 0.4 फीसद की वृद्धि हुई है। इससे पहले कोरोना वायरस महामारी और उसकी रोकथाम के लिए लागू ​की गई पूर्णबंदी के बीच लगातार दो तिमाहियों में अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस तिमाही में कृषि क्षेत्र में 3.9 फीसदी और विनिर्माण क्षेत्र में 1.6 फीसदी की वृद्धि हुई है। निर्माण क्षेत्र में 6.2 फीसदी जबकि बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगी सेवाओं में 7.3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।


चालू वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में स्थिर मूल्य (2011-12) पर जीडीपी 36.22 लाख करोड़ रही जो इससे पूर्व वित्त वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में 36.08 लाख करोड़ थी। जीडीपी में 0.4 फीसदी की बढ़ौतरी इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था महामारी के पूर्व स्तर पर आ गई है और पुनरुद्धार का ग्राफ आने वाले समय में तेजी से उठेगा। यद्यपि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अग्रिम अनुमान में 2020-21 में जीडीपी में ओवरआल 8 फीसदी की गिरावट का अनुमान जताया गया है।

दूसरी ओर चिंता की सबसे बड़ी वजह बढ़ रही महंगाई और बेरोजगारी बन गई है। महामारी के दौर में जहां साधारण लोगों से उनके रोजगार छिन गए वहीं डिग्री धारकों को भी हाथ बांधे बैठे रहना पड़ रहा है। सरकारी नौकरियों के लिए निकलने वाली वैकेंसी भी नाममात्र आ रही हैं। अब तो अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने के लिए धन के निरंतर प्रवाह की जरूरत है। सरकार के सामने धन जुटाना बहुत बड़ी चुनौती है। सरकार का मानना है कि उसके पास पैसे नहीं हैं क्योंकि कोरोना काल में काफी धन खर्च किया जा चुका है। पैट्रोल-डीजल की कीमतें आम आदमी की कमर तोड़ रही हैं। रसोई गैस की कीमतों में बढ़ौतरी ने रसोई में पकने वाले खाने तक को चिंता का मामला बना दिया है। कोरोना काल में ट्रेनें भी ठप्प रहीं, रेलवे को बहुत नुक्सान हुआ। अब छोटी दूरी की ट्रेन सेवाओं के किराए में बढ़ौतरी कर दी गई है। चिंता गहरा रही है कि अगर महंगाई इसी तरह बेलगाम रही तो कुछ समय बाद आम लोगों के सामने गुजारा करने के कितने दिन बचेंगे। तेल-डीजल के दामों में बढ़ौतरी का असर सभी वस्तुओं पर पड़ता है। दरअसल वस्तुओं की आपूर्ति आमतौर पर डीजल चालित वाहनों पर निर्भर करती है क्योंकि ढुलाई का खर्च बढ़ता है, जिसके असर से खुदरा वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।

भारत के साधारण परिवारों में छोटे स्तर पर की जाने वाली घरेलू बचतों की प्रवृति के चलते लोगों ने कोरोना काल में लगभग एक साल तक अकाल का सामना किया, जैसे-तैसे समय निकाल लिया, लेकिन अगर यही स्थिति की निरंतरता बनी रही तो बहुत दिनों तक लोग खुद को सम्भाल नहीं पाएंगे। महंगाई का सबसे बड़ा असर निम्न, मध्यम और कमजोर वर्गों पर पड़ रहा है।

अगर अर्थव्यवस्था को बैंकिंग क्षेत्र के नजरिये से देखें तो सामने चुनौतियां ही चुनौतियां नजर आएंगी। कोरोना काल में विभिन्न ऋणों पर मोरेटोरियम दिया गया। ब्याज को भी ​निलम्बित रखा गया। उसका असर बैंकों की बैलेंस शीट पर दिखाई देने लगा है। बैंकिंग इंडस्ट्री इस बात को लेकर चिंतित है कि पिछले 6 महीनों से कोई भी खाता एनपीए घोषित नहीं किया गया। अब जब आकलन किया जाएगा तो न सिर्फ बैंकों का एनपीए बढ़ जाएगा बल्कि उनका मुनाफा भी काफी कम हो जाएगा। बैंकिंग व्यवस्था में व्यापक सुधारों की जरूरत है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कहा है कि अर्थव्यवस्था विकास के अहम मोड़ पर है। उन्होंने यह भी कहा है कि पैट्रोल-डीजल की कीमतों को कम करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को समन्वित प्रयास करने चाहिएं। कुछ राज्यों ने तेल पर वैट की दरें कम की हैं। मांग तब बढ़ेगी जब लोगों की जेब में कुछ बचत होगी और वह बाजार में खरीददारी करने जाएगा। मांग बढ़ेगी तो उद्योग गतिशील होंगे। लेकिन लगता है कि गतिशील होने में कुछ समय लग सकता है, मौजूदा रुझान भविष्य के लिए आश्वस्त तो करते ही हैं।


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