छोटे दलों के साथ सपा गठबंधन का असर; क्या उत्तरप्रदेश दो ध्रुवीय चुनाव की ओर बढ़ रहा है
यूपी विधानसभा चुनाव एक तरफ भाजपा व सहयोगियों और दूसरी ओर सपा व उसके सहयोगियों के बीच दो-ध्रुवीय मुकाबले की ओर बढ़ रहा है
संजय कुमार। यूपी विधानसभा चुनाव एक तरफ भाजपा व सहयोगियों और दूसरी ओर सपा व उसके सहयोगियों के बीच दो-ध्रुवीय मुकाबले की ओर बढ़ रहा है। योगी और मोदी विरोधी मतदाता सपा गठबंधन के साथ जा सकता है, क्योंकि यह महागठबंधन भाजपा के लिए एकमात्र चुनौती हो सकती है। ऐसे में दो अन्य दल कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी स्वाभाविक रूप से हाशिए पर चले जाएंगे, केवल उनके मूल समर्थक ही उन्हें वोट देंगे। जिनकी संख्या अब बहुत अधिक नहीं हैं। इन दोनों पार्टियों में से कोई भी गंभीर प्रतिस्पर्धा में नहीं है।
भाजपा को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा से किसान खुश होंगे और इससे भाजपा जाट मतदाताओं के बीच अपना खोया जनाधार वापस पाने में सक्षम हो सकती है। लेकिन पश्चिमी उत्तरप्रदेश में ऐसा होता नहीं दिख रहा। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में जाट वोट बड़ी भूमिका निभाते हैं। किसान आज भी उतने ही गुस्से में हैं, जितने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा से पहले थे।
किसानों की नाखुशी पश्चिमी यूपी के निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की संभावनाओं को निश्चित रूप से प्रभावित करेगी, लेकिन फिर भी भाजपा अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे दिख रही है। क्योंकि विपक्ष बंटा हुआ है। लेकिन सपा के छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन से भाजपा विरोधी वोटों को मजबूती मिल सकती है।
राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ सपा के गठबंधन से जाट वोटों का एकीकरण होने में मदद मिलेगी। जाटों ने पहले बड़ी संख्या में रालोद के लिए मतदान नहीं किया है। हाल के चुनावों में भाजपा ने बड़ी संख्या में जाट वोटों को आकर्षित किया है, लेकिन भाजपा के प्रति उनकी नाखुशी अब उन्हें भाजपा के खिलाफ कर सकती है और वो किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाली आरएलडी के साथ खड़े हो सकते हैं।
आप ने यूपी में चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन दिल्ली से बाहर के राज्यों में उसकी लोकप्रियता है। यूपी उनमें से एक है, हालांकि यह बड़े पैमाने पर नहीं है। आप के साथ गठबंधन से सपा के पक्ष में कुछ शहरी वोट जुटाने में मदद मिलेगी। ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन से सपा को राजभर ओबीसी जाति के वोटों को एकजुट करने में मदद मिल सकती है। गौरतलब है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय के मतदाता लगभग 20 विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं।
इन पर ओम प्रकाश राजभर का प्रभाव है। राजभर समुदाय के वोटों में बदलाव से भाजपा का समर्थन कमजोर हो सकता है, जिन्होंने पिछले चुनाव में बड़ी संख्या में भाजपा को वोट दिया था। सपा ने कृष्णा पटेल के अपना दल (कामेरवाड़ी) के साथ भी गठबंधन किया है, जो अनुप्रिया पटेल की अपना दल से अलग पार्टी है।
इस नई पार्टी के पास भले ही बहुत बड़ा जनाधार न हो, लेकिन मध्य यूपी के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में मौजूद कुर्मी मतदाताओं के बीच इसकी कुछ लोकप्रियता है। केशव देव मौर्य के महान दल के साथ सपा का गठबंधन भी इस गठबंधन को कुशवाहा ओबीसी जाति के वोटों को एकिकृत करने में मदद करेगा।
ये सभी गठबंधन सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के पक्ष में ओबीसी वोटों को एकिकृत करने जा रहे हैं। कम से कम कागजों पर तो कांग्रेस और बसपा के बिना भी यह गठबंधन बड़ा नजर आता है। सपा का गठबंधन के लिए कांग्रेस और बसपा से संपर्क न करना अच्छी रणनीति हो सकती है, क्योंकि भाजपा के खिलाफ संभावित सर्वदलीय गठबंधन इसके खिलाफ भी वोटों का ध्रुवीकरण कर सकता है। फिलहाल छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ सपा का गठबंधन एक अच्छी रणनीति प्रतीत होती है, लेकिन केवल परिणाम ही बताएगा कि यह रणनीति काम करती है या विफल।