अब वहां मेरा कोई नहीं
इमारत की तीसरी मंजिल पर रहने वाला वह खुशमिजाज आदमी अचानक एक रोज घर छोड़ कर चला गया। जाते वक्त उसने किसी को बताया नहीं। चारों मंजिल के किराएदार अगले दिन सुबह उसके इस तरह घर छोड़ कर चले जाने की खबर सुन कर भौंचक्के रह गए।
जाबिर हुसेन: इमारत की तीसरी मंजिल पर रहने वाला वह खुशमिजाज आदमी अचानक एक रोज घर छोड़ कर चला गया। जाते वक्त उसने किसी को बताया नहीं। चारों मंजिल के किराएदार अगले दिन सुबह उसके इस तरह घर छोड़ कर चले जाने की खबर सुन कर भौंचक्के रह गए।
उस दिन दस बजे टाइपिस्ट ने आकर पत्र पेटिका का ताला खोला और डाक, पत्र-पत्रिकाएं निकालीं तो उसे बिना डाकघर की मुहर का एक लिफाफा मिला। लिफाफे के एक किनारे पर उस तीसरी मंजिल वाले किराएदार का नाम लिखा था, जो अचानक घर छोड़ कर चला गया था। जिस तरह का वाकया सामने आ चुका था, उसके मद्देनजर स्वाभाविक ही मैंने सबसे पहले उसी लिफाफे को खोला।
लिफाफे के अंदर एक सफेद कागज के टुकड़े पर लिखा था- 'अभी-अभी मुझे महसूस हुआ, जैसे मेरी मां मुझे घबराई हुई आवाज में पुकार रही है। मैं जा रहा हूं। कब वापस आऊंगा, नहीं मालूम। आऊंगा भी या नहीं, पता नहीं। सब कुछ अंधेरे के सुपुर्द है।'
मुझे याद आया कि उसने एक दिन बताया था, उसकी मां को गुजरे बीस साल हो गए हैं। इस घटना के बाद महीनों तीसरी मंजिल पर रहने वाले उस किराएदार की कोई खबर नहीं आई। मकान मालिक अक्सर मेरे यहां आकर उसकी बाबत दरियाफ्त करता। मेरी खामोशी पर वह किसी कदर उदास हो जाता। एक दिन मकान मालिक कहने लगा कि अब शायद वह कभी लौट कर नहीं आए। पता नहीं, कहां गुम हो गया। दफ्तर वालों को भी उसकी कोई खबर नहीं। मकान खाली पड़ा है। उसके सामान, किताबें आदि सब यों ही पड़े हैं। क्या करें, यह नहीं समझ आता!
शायद वह मेरी राय जानना चाहता था। मैं उसे क्या जवाब देता! मैं बस इतना कह सका कि 'कुछ दिन और देख लीजिए। शायद लौट आए या उसकी कोई खबर ही आ जाए।' मेरी इस औपचारिक-सी बात सुन कर मकान मालिक उदास मन के साथ खामोश चला गया। लेकिन उसके बाद उसने भी इंतजार करना ही मुनासिब समझा।
फिर अचानक एक रात तीसरी मंजिल के उस फ्लैट के एक कमरे में रोशनी जलती दिखाई दी। मेरी आंखें हैरत से फटी रह गईं। मैं भागते कदमों से गार्ड-पोस्ट की तरफ गया। गार्ड अपनी जगह बदस्तूर तैनात था। उसकी उंगलियों में सिगरेट दबी थी। मैंने पूछा कि तीसरी मंजिल के किराएदार की कोई खबर है क्या? गार्ड ने सिर हिला कर 'ना' में जवाब दिया।
मैंने कहा कि फिर फ्लैट के उस कमरे में रोशनी कैसे जल रही है? गार्ड ने अपनी पोस्ट से बाहर आकर तीसरी मंजिल की तरफ देखा। कमरे में तेज रोशनी जलती देख उसे भी हैरत हुई। उसने कहा कि मैंने तो किसी को सोसाइटी में आते नहीं देखा। फिर ये रोशनी कैसी!
मैं आश्चर्य में डूबा अपने फ्लैट में आ गया। अगले दिन सुबह मैंने बाहर परिसर में जाकर ऊपर की मंजिल की तरफ देखा। कमरे की सारी खिड़कियां खुली थीं। अगले ही पल मेरे कदम सीढ़ी की ओर बढ़ गए। दरवाजे के पास आकर मैंने उसके दरवाजे की घंटी बजाई। कुछ पल बाद हल्की आवाज के साथ दरवाजा खुला। तीसरी मंजिल का वह किराएदार सामने खड़ा था। उसके चेहरे पर अजीब-सी वीरानी छाई थी। मैंने कहा- 'कब आए? इतने दिन कहां रहे? किसी को बताया क्यों नहीं?' मैंने सवालों की झड़ी लगा दी।
वह थोड़ी देर खामोश खड़ा रहा। फिर इशारे से कमरे में भीतर आने को कहा। महीनों बंद रहने के कारण फ्लैट में हर तरफ बेतरतीबी छाई थी। उसने सिर्फ अपने कमरे का कचरा किसी तरह साफ करके रहने लायक बना लिया था। लेकिन बेंत वाली कुर्सी पर अब भी धूल की गहरी परत जमी थी। काफी देर तक वह खामोश, गुमसुम बैठा रहा। मैंने ज्यादा टोकना मुनासिब नहीं समझा। फिर वह आहिस्ता से उठ कर दो ग्लास पानी ले आया। मैंने पूछा- 'घर पर सब कुछ खैरियत से है न।'
उसने कहा 'हां, सिर्फ मां गुजर गईं।' मैंने कहा कि तुमने बताया था कि वे तो बीस बरस पहले ही..! उसने जवाब दिया- 'हां, लेकिन तब वे मेरी यादों में हर लम्हा जिंदा थीं। इधर उन्होंने एक रात मुझे शिद्दत से याद करते हुए आवाज दी। मैं बेचैन होकर आधी रात को अपने गांव चला गया। वहां पहुंच कर मैंने देखा कि मेरे भाइयों ने घर का बंटवारा कर दिया है। बड़े भाई ने घर के उस हिस्से पर जबर्दस्ती कब्जा जमा लिया था, जिसमें मेरी मां आखिरी वक्त तक रहती आई थीं।
अब वहां मेरी मां के नाम की कोई शय (चीज) बाकी नहीं रही। जाने से पहले न जाने वे मुझसे क्या कहना चाहती थीं। अब मैं हमेशा-हमेशा के लिए अपने घर और अपने गांव से भी रुखसत हो गया हूं। मेरे घर के बाहर भाइयों ने अपने-अपने नाम की तख्तियां लगा दी हैं। इतने दिन मैं गांव के शिवालय में रहा। पंडित जी ने मेरे लिए दाना-पानी का इंतजाम किया। अब गांव में मेरा कोई नहीं।'