मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को बचाए रखना है तो हल्के लक्षण वाले मरीजों को अस्पतालों में दाखिला देने से बचना होगा

देश में कोरोना (Corona) संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में भी मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरों के अस्पतालों में कुछ ही दिनों में मरीजों में काफी इजाफा हो गया है

Update: 2022-01-06 11:01 GMT

पंकज कुमार  देश में कोरोना (Corona) संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में भी मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरों के अस्पतालों में कुछ ही दिनों में मरीजों में काफी इजाफा हो गया है. हालांकि भर्ती मरीजों में से अधिकतर हल्के लक्षण वाले हैं. इस बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि अगर बिना लक्षण या हल्के लक्षण वाले रोगी भी अस्पतालों में भर्ती होने लगे तो क्या इससे स्वास्थ्य ढांचे पर बिना वजह का दबाव नहीं पड़ेगा.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. नीरज निश्चल (Dr Niraj Nischal) ने बताया कि कोरोना के बढ़ते मामलों की बढ़ी वजह ओमिक्रॉन (Omicron) है. इस वेरिएंट के अधिकतर संक्रमितों में हल्के लक्षण मिल रहे हैं. यह वेरिएंट फेफड़ों के ऊतकों को अन्य वेरिएंट की तुलना में करीब 10 गुना कम प्रभावित करता है. डॉ. के मुताबिक, कोरोना होने के बाद अस्पतालों में जाने की बजाय पहले अपने स्वास्थ्य को देखना जरूरी है. अगर संक्रमण के हल्के लक्षण हैं या कोई लक्षण नहीं है तो होम आइसोलोशन में इलाज़ कराने पर ध्यान देने की जरूरत है. ऐसा करने से अस्पतालों में बिना वजह कि भीड़ नहीं होगी और स्थिति नियंत्रण में रहेगी.
क्रिटिकल मरीजों को ही अस्पताल जाना चाहिए
डॉ. नीरज का कहना है कि भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में ओमिक्रॉन का बढ़ना खतरनाक हो सकता है. अगर यह सभी इलाकों में फैल गया तो उन लोगों को बीमार कर सकता है जो पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं. इस स्थिति में अगर एक फीसदी मरीजों को भी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा तो परेशानी बढ़ सकती है. इसलिए लोगों को कोविड से बचाव के नियमों का पालन करना होगा. साथ ही इस बात पर ध्यान देना होगा कि जरूरतमंद मरीजों को अस्पतालों में इलाज मिल सके. इसलिए बिना वजह अस्पतालों की तरफ दौड़ना ठीक नहीं है.
सफदरजंग अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉक्टर जुगल किशोर का कहना है कि आने वाले दिनों में कोरोना एक बड़ी आबादी को संक्रमित कर सकता है. हम देख रहे हैं कि इस समय अधिकतर संक्रमितों में फ्लू जैसे लक्षण मिल रहे हैं. इसलिए रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर बिना वजह अस्पताल जाने की जरूरत नहीं है. अगर घर में ही आइसोलेशन में रहने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है तो यह इलाज का एक बेहतर तरीका है. लेकिन आंकड़ों से पता चल रहा है कि कुछ मरीज खांसी-जुकाम होने पर भी अस्पतालों में भर्ती हो रहें हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए.
पीएसआरआई अस्पताल के डॉक्टर सुमेत शाह का कहना है कि हमें अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों के लिए नया प्रोटोकॉल बनाने की जरूरत है. जिन संक्रमितों को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत नहीं है. उन्हें घर पर इलाज कराना चाहिए. क्योंकि कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. अगर ऐसे में हल्के लक्षण वाले मरीज भी अस्पतालों में जाने लगे तो स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा सकती है. ऐसे में हम वही गलती करेंगे जो दूसरी लहर के दौरान हुई थी. इसलिए यह जरूरी है कि अगर किसी को खांसी-जुकाम जैसे लक्षण हैं तो वह घबराएं नहीं. खुद को घर पर आइसोलेट कर लें. दो बातों का ध्यान रखें. अगर छाती में दर्द या जकड़न महसूस हो रही है और सांस लेने में परेशानी है तो डॉक्टर से संपर्क करें. घर पर रहकर शरीर में ऑक्सीजन का स्तर जांचते रहें. बिना वजह कोई दवा न लें और रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर पैनिक में न आएं
क्या कहते हैं अस्पतालों के आंकड़े
दिल्ली के अस्पतालों में पिछले तीन दिन में ही संक्रमितों की संख्या दो गुना से भी ज्यादा बढ़ गई है. राजधानी में दो जनवरी तक अस्पतालों में 307 मरीज भर्ती थे. जिनकी संख्या अब 782 हो गई है, लेकिन इन 782 मरीजों में से 551 रोगी हल्के या बिना लक्षण वाले हैं. यानि, अस्पतालों में भर्ती 70 फीसदी मरीज ऐसे हैं जिनको ऑक्सीजन सपोर्ट की कोई जरूरत नहीं है. चेन्नई की बात करें तो 3 दिसंबर तक अस्पतालों में 507 रोगी भर्ती थे. यह आंकड़ा अब 1,931 तक पहुंच गया है. मुंबई में भी अस्पतालों में पिछले तीन दिन में ही 300 से ज्यादा संक्रमित भर्ती हुए हैं. अहमदाबाद में पिछले 12 दिनों में ही अस्पतालों में 10 गुना मरीज बढ़ गए हैं.
पुणे के नोबल अस्पताल के डॉक्टर अमित द्रविड़ का कहना है कि पिछले दो सप्ताह में उनके अस्पताल में करीब 10 फीसदी मरीज बढ़ गए हैं. इनमें अधिकतर को संक्रमण के मॉडरेट लक्षण हैं. कोलकाता में भी मरीजों की संख्या बढ़ रही है, हालांकि ऑक्सीजन सपोर्ट वाले रोगी काफी सीमित संख्या में हैं. बंगाल में संक्रमितों की संख्या में दस हजार का इजाफा हुआ है, लेकिन अस्पताल में दाखिले में बढ़ोतरी एक फीसदी से भी कम है. राज्य में कुल बेड की संख्या 23 हजार चार सौ 56 है और कुल बेड की संख्या के 2.14 फीसदी मरीज अभी तक अस्पताल में दाखिल हुए हैं. ज़ाहिर है अभी तक 98 फीसदी बेड खाली हैं, लेकिन संक्रमितों की संख्या इस कदर बढ़ती रही तो बेड को लेकर मारामारी की पूरी संभावनाएं हैं.
अस्पतालों में फिलहाल बेड के लिए मारामारी नहीं है
बंगाल में ऐसी स्थिती से निपटने के लिए सेफ होम बनाए जा रहे हैं. सर्विस डॉक्टर फोरम के कोषाध्यक्ष डॉ स्वपन विश्वास के मुताबिक इस बार की लहर में हेल्थ और पैरामेडिकल स्टाफ कहीं ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं, इसलिए सरकार को कोरोना के मामलों पर ध्यान केंद्रित कर गैरजरूरी सेवाएं जैसे ऑपरेशन और सर्जरी टाल देनी चाहिए. बिहार में भी मरीजों के लिए 25 हजार 1 सौ 78 बेड्स उपलब्ध हैं, जिनमें महज 106 मरीज अस्पतालों में भर्ती हैं. सरकार माइल्ड लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन के लिए भेज रही है, जिससे खराब स्थितियों में जरूरतमंद लोगों को अस्पताल की सुविधा मयस्सर हो सके.
पटना एम्स के निदेशक डॉ. प्रभात कुमार के मुताबिक इस बार संक्रमण की रफ्तार तेज है लेकिन वैक्सीनेटेड मरीजों में जल्द सुधार हो रहा है. पटना एम्स में एक हजार बेड्स कोविड मरीजों के लिए उपलब्ध हैं जिनमें महज 50 मरीज अस्पताल में एडमिट हैं. ज़ाहिर है गंभीर मरीजों को ही दाखिला दिया जा रहा है और राज्य में स्थितियों पर पैनी नजर रखी जा रही है. इतना ही नहीं बिहार में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह समेत पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी होम आइसोलेशन में हैं और मामले की गंभीरता को देखते हुए ही लोगों को अस्पताल में एडमिट किया जा रहा है.
सरकार को आने वाले समय में सचेत रहना होगा
पटना विश्वविद्यालय से जेनेटिक्टस में पीएचडी डॉ संजय कुमार कहते हैं ओमिक्रॉन की संक्रमण क्षमता कई गुणा ज्यादा है और बिहार की कुल आबादी का एक फीसदी भी इसकी चपेट में आता है, तो स्थितियां उन लोगों के लिए खासतौर पर भयावह हो सकती हैं जो कोमॉरबिडिटी के शिकार हैं. इसलिए सरकार को इस बात पर विशेष ध्यान रखना होगा कि अस्पताल में दाखिला जरूरतमंदों को ही दिया जाए, अन्यथा कोरोना के पीक पर जाने पर पूरी तरह से स्वास्थ्य व्यवस्था लड़खड़ा सकती है.
उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी फिलहाल बेड्स को लेकर मारामारी नहीं है. लेकिन जिस अनुपात में मरीजों की संख्या बढ़ रही है उससे वहां के स्वास्थ्य विभाग पर खासा दबाव पड़ रहा है. ऐसे में 24 से ज्यादा राज्यों में पांव पसार चुका ओमिक्रॉन आने वाले समय में सरकार से लेकर लोगों तक का कड़ा इम्तिहान लेने जा रहा है.
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