बुरा जो देखन मैं चला
आज के मशीनी और भागमभाग वाले समय में दिमाग में हमेशा उलझनें भरी रहती हैं। मन हर समय किसी न किसी समस्या में उलझा ही रहता है। एक समस्या सुलझती नहीं कि दूसरी मानसिक संताप देने को तैयार खड़ी रहती है।
मोहन वर्मा; आज के मशीनी और भागमभाग वाले समय में दिमाग में हमेशा उलझनें भरी रहती हैं। मन हर समय किसी न किसी समस्या में उलझा ही रहता है। एक समस्या सुलझती नहीं कि दूसरी मानसिक संताप देने को तैयार खड़ी रहती है। कई बार ये उलझनें और समस्याएं परिस्थितिजन्य होती हैं, तो कई बार अपनों और परायों द्वारा पैदा किए हालात में कुछ इस तरह सामने आती हैं कि व्यक्ति बेबस हो जाता है। सारे रास्ते बंद नजर आते हैं। निराशा और असहायता के हालात और गुस्से में खुद पर काबू करना मुश्किल हो जाता है।
इस तरह के हालात में उलझे व्यक्ति आए दिन शारीरिक या मानसिक अस्वस्थता के शिकार हमारे आसपास देखे जा सकते हैं। जो ऐसी स्थितियों के प्रति सतर्क रहते और उनसे बाहर आने की कोशिश करते हैं, वे तो कई बार बाहर संभल जाते हैं, सकारात्मक ऊर्जा के साथ फिर से नए रास्ते पर अगे बढ़ चलते हैं, मगर अधिकांश या तो इनके मकड़जाल में उलझ कर जीवन भर संघर्ष करते रहते हैं या फिर अवसादग्रस्त होकर सुध-बुध खो बैठते हैं।
गीता में कहा गया है, दुखदायी और सुखदायी परिस्थितियों का आना कर्मजन्य है। अच्छी या बुरी हर तरह की स्थिति में कहीं न कहीं व्यक्ति की अपनी भूमिका होती है, जिसे आमतौर पर व्यक्ति स्वीकार नहीं करता और इसे या उसे दोषी मान कर खुद को पाक-साफ और निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास करता है। कैसी भी परिस्थिति हो, नकारात्मकता से सिर्फ सकारात्मक सोच और प्रयास ही हमें उबार सकते हंै।
उलझनों और मानसिक संताप से जूझता व्यक्ति कई बार बाबाओं, तांत्रिकों और ज्योतिषियों के पास जाकर धन और समय बर्बाद करता है या फिर कभी सत्संग पंडालों, धर्म स्थलों में हालात से उबारने की फरियाद करता नजर आता है। मगर अपने भीतर झांकने की कोशिश नहीं करता। भीतर झांके तो पता चले कि- बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय/ जो दिल खोजा आपना मुझ सा बुरा न कोय।
सकारात्मक सोच के साथ अगर उन व्यक्तियों, परिस्थितियों के बारे में विचार किया जाए जो हमें बेचैन किए दे रहे हैं और साफ मन से स्थितियों का विश्लेषण कर रास्ता खोजने की कोशिश की जाए, तो बड़ी से बड़ी मुश्किल से बाहर आना कोई कठिन बात नहीं है। अगर रखना है मन साफ, तो करें दूसरों को माफ। यही एकमात्र फार्मूला है, जो हमें तनावमुक्त रख सकता है। यह काम थोड़ा मुश्किल जरूर है, मगर असंभव जरा भी नहीं।
हम दूसरों के व्यवहार से, बात से, आहत होकर जब नाराज होकर बैठ जाते हैं तो हमारी सोच एकतरफा होती है। हम उस व्यक्ति के बारे में सिर्फ नकारात्मक बातें ही सोचते रहते हैं। उसमें केवल बुराइां ही देखने लगते हैं। मगर स्थितियों का दूसरा पक्ष भी देखा जाना और उसमें अपनी भूमिका को परखना जरूरी है।
दूसरों के प्रति नाराजगी, गुस्सा और नफरत के पीछे वर्तमान में किए गए व्यवहार के साथ पहले कभी कहीं किया गया व्यवहार शामिल होता है, जो सब कुछ भूलने की कोशिश में बार-बार सामने आ खड़ी होती है और व्यक्ति को रोकती है। मगर दिल-दिमाग में नफरत और गुस्से का बोझ लेकर जो तनाव व्यक्ति सिर पर लिए घूमता है, उससे दूसरे का नहीं, बल्कि खुद अपना नुकसान ही ज्यादा होता है, जो अहंकार उसे समझने नहीं देता।
बहती नदी की बनिस्बत रुकी हुई नदियों या पोखर में ज्यादा गंदगी मिलती है। दिल-दिमाग में ठहरे हुए पोखर की तरह अनचाहा कुछ भी जमा न होने दें। बहती नदी के पानी की तरह साफ मन और दिमाग के लिए गुस्सा, नफरत, ईर्ष्या का कचरा उसमें न आने दें। किसी ने अगर बुरा भी किया है, तो उसे माफ करें और चाहें तो अपना रास्ता बदल लें। बीती बुरी बातों का कचरा साथ लेकर न चलें।
कहते हैं, कुदरत ने हमें सर्वश्रेष्ठ मनुष्य का जीवन दिया है, सोचने-समझने की क्षमता दी है। अपना और सबका बेहतर करने के अवसर मुहैया किया है, तो फिर मकड़जाल में उलझ कर, शांतिपूर्ण तरीके से बेहतर जीवन जीने के उद्देश्य से क्यों भटकना। मानसिक अशांति से घर-परिवार, नौकरी, व्यवसाय भी दांव पर लगता है। यह समझना भी जरूरी है। समय रहते सकारात्मकता के साथ इन सबसे बाहर निकलें।
हो सकता है, कइयों को ये विचार रास न आएं या मुश्किल लगें, मगर कभी ठंडे गिमाग से सोचें कि गुस्सा, नफरत, ईर्ष्या का हासिल क्या? समझें कि इसे साथ ढोते हुए घात-प्रतिघात, बदले की भावना से नुकसान किसका ज्यादा हो रहा है। रात-दिन इन सबके बारे में सोचते हुए क्या व्यक्ति खुद का नुकसान नहीं कर रहा? परिस्थितिजन्य उलझनें, गुस्सा, नफरत व्यक्ति को भटकाने के लिए हैं। सकारात्मकता के साथ इनका मुकाबला करके सबको माफ करना खुद के दिल और दिमाग को साफ रखने का एकमात्र विकल्प है।