पर्वतमाला परियोजना के तहत कैसे देगी भारत सरकार पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा और विकास को धार

कोरोना महामारी के दौरान चीन ने जिस लालच भरी नजरों से लद्दाख के कई क्षेत्रों

Update: 2022-02-04 14:09 GMT
विवेक ओझा । भारत सरकार ने भारतमाला और सागरमाला के बाद अब पर्वतमाला प्रोजेक्ट के जरिये भारत के पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा और विकास को नई ऊर्जा देने का निर्णय किया है। राष्ट्रीय राजमार्गों, सामरिक सड़कों के निर्माण, बंदरगाह और तटीय क्षेत्र की सुरक्षा को गति देने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के पर्वतीय क्षेत्रों खासकर सीमांत गांवों के समावेशी विकास के लिए पर्वतमाला प्रोजेक्ट के जरिये एक मजबूत ब्लू प्रिंट तैयार किया गया है। चूंकि भारत के पर्वतीय राज्य और सीमांत गांव राष्ट्रीय सुरक्षा में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, इसलिए इन क्षेत्रों में देश की सुरक्षा और विकास से जुड़ी रणनीति और विजन का साफ होना जरूरी है।
कोरोना महामारी के दौरान चीन ने जिस लालच भरी नजरों से लद्दाख के कई क्षेत्रों, गलवन घाटी, दौलत बेग ओल्डी, सिक्किम के नकूला सेक्टर, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, मुनस्यारी, चमोली और उत्तरकाशी जिलों को देखा, उसके बाद भारत सरकार द्वारा इन पर्वतीय क्षेत्रों में जिस उच्च स्तरीय सुरक्षा अवसंरचनाओं का विकास तीव्र गति से किया गया, उससे सीमा क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए एक आक्रामक विजन की तस्वीर सामने आई। संक्षेप में कहें तो कोविड महामारी के दौरान पर्वतीय क्षेत्रों के विकास और सुरक्षा की रणनीति को अब मोदी सरकार ने पर्वतमाला प्रोजेक्ट के जरिये साकार करने की ठानी है जिसे सभी पर्वतीय राज्यों के सहयोग से ही पूरा किया जा सकता है।
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा रणनीति में अहमियत को चीन के सैन्य विशेषज्ञों के वक्तव्य के जरिये जाना जा सकता है। वर्ष 2020 में जब कोरोना महामारी की शुरुआत हो चुकी थी, ऐसे समय में चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए सैन्य साजो-सामान बनाने से जुड़े एक मिलिट्री एक्सपर्ट ने कहा था कि ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों के लिए भारत के पास विश्व के सबसे ज्यादा अनुभवी सैनिक हैं और पर्वतीय इलाकों में तैनाती के लिए हर भारतीय सैनिक के पास पर्वतारोहण का 'अनिवार्य स्किलÓ है। वहीं 'माडर्न वीपनरी मैग्जिनÓ के सीनियर एडिटर हुआंग गुओझी ने भी कहा था, 'वर्तमान में मैदानी और पर्वतीय इलाकों में दुनिया की सबसे ज्यादा अनुभवी सेना अमेरिका, रूस या यूरोपीय महाशक्ति के पास नहीं, बल्कि यह भारत के पास है।Ó
पर्वतमाला का उद्देश्य : पर्यटन भारत जैसे विकासशील देश के जीडीपी ग्रोथ का एक महत्वपूर्ण आधार है और इसी बात को ध्यान में रखकर 2022-23 के बजट के तहत केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के बजट में 18.42 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है और इसके लिए 2400 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। पर्यटन क्षेत्र को गति देने की ही खास योजना पर्वतमाला है। महामारी के बीच पर्यटन को रफ्तार देने के लिए यह योजना लाभकारी सिद्ध होगी। खास बात यह है कि महिला पर्यटकों की सुरक्षा पर भी 5.27 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोडऩे में मदद मिलेगी। इसी उद्देश्य से पहाड़ी राज्यों को केंद्रीय बजट 2022-23 में आठ रोपवे की सौगात मिली है। इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पूर्वोत्तर के कुछ राज्य शामिल हैं। राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम के तहत पर्वतमाला को पीपीपी मोड से चलाया जाएगा। इसी साल यानी 2022-23 में इन पहाड़ी राज्यों में 60 किमी लंबे आठ रोपवे परियोजनाओं को शुरू किया जाना है। पर्वतीय राज्यों में सड़क निर्माण काफी कठिन होता है। ऐसे में रोपवे से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इससे रोजगार के मौके भी उपलब्ध होंगे। इन रोपवे परियोजनाओं को आधुनिक तकनीक से तैयार किया जाएगा, ताकि सुरक्षा भी बनी रहे।
परियोजना की आवश्यकता : भारत चीन के साथ 3,488 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। जिन भारतीय राज्यों की सीमा चीन से लगती है वे सभी पर्वतीय राज्य हैं। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक जम्मू कश्मीर चीन से 1597 किमी, हिमाचल प्रदेश से 200 किमी, उत्तराखंड से 345 किमी, सिक्किम से 220 किमी और अरुणाचल प्रदेश से 1126 किमी लंबी सीमा साझा होती है। भारत के इन पर्वतीय राज्यों में चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करने के चलते कई तरीके की सुरक्षा और उससे जुड़ी कई अन्य चुनौतियां हैं। इन पांच पर्वतीय राज्यों के सीमा पर स्थित गांवों में अक्सर चीन द्वारा अतिक्रमण की घटनाएं सामने आई हैं।
दरअसल आजादी के 74 वर्षों में सीमांत गांवों अथवा भारत के अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर स्थित संवेदनशील क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की मुख्यधारा में नहीं आ पाए थे। इस देश में आदिवासी अथवा जनजातीय क्षेत्रों नक्सल और माओवाद प्रभावित क्षेत्रों के समावेशी विकास पर भी काफी देर बाद ही बल दिया जाना शुरू हुआ। इसके चलते भारत के कुछ पड़ोसी देशों खासकर चीन और पाकिस्तान के भारत विरोधी मंसूबे मजबूत हुए और कालांतर में इन देशों ने नेपाल और बांग्लादेश में स्थित भारत विरोधी तत्वों से गठजोड़ करके भारत के सीमा क्षेत्रों को असुरक्षित करने के प्रयास में जुट गए।
सुरक्षा अवसंरचना पर काम : चाहे भारत द्वारा श्योक नदी से दौलत बेग ओल्डी तक 235 किमी लंबे अति सामरिक महत्व के सड़क का निर्माण हो, सिक्किम में भारत चीन सीमा से मात्र 60 किमी दूर स्थित सामरिक महत्व वाले पाकयोंग हवाई अड्डे का उद्घाटन हो, भारतीय वायु सेना द्वारा यहां पर अपने सबसे विशालकाय विमान एएन-32 उतारने की घटना हो, पर्वतीय क्षेत्रों में नौसेना के टोही विमान डोर्नियर की भी उपस्थिति हो, चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर प्रतिसंतुलित करने हेतु भारतीय सेना द्वारा डोकलाम प्रकरण के बाद बार्डर रोड आर्गेनाईजेशन के साथ मिलकर तीन नई सड़कों के निर्माण का कार्य हो, तवांग और बूमला सेक्टर्स के पास सेला दर्रे के पास भारत एक महत्वाकांक्षी सुरंग निर्माण को भी अंजाम दे रहा है। सेला दर्रे के पास 317 किमी लंबे बालीपाड़ा-चारद्वार-तवांग एक्सिस पर भारत दो सैन्य महत्व की दो सुरंगे भी बना रहा है। इसमें से एक टू लेन टनल 13 हजार फीट से भी अधिक ऊंचाई पर और दूसरा सबसे लंबा टनल है। अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी कामेंग जिले में भारत ने अपने सुरक्षा अवसंरचना के विकास को तेजी दी है। भारत द्वारा सामरिक स्थलों पर पुलों, हवाई पट्टियों के निर्माण कार्य में सक्रियता दिखाना और भारत चीन सीमा पर निगरानी चौकसी के लिए गश्तें बढ़ाने की रणनीति ने चीन को एकतरफा आक्रोश में आने को विवश किया है। चीन यह मानता है कि इससे इस क्षेत्र में भारत द्वारा यथास्थिति को बदला जा रहा है, पर इस क्षेत्र में विवाद का कारण तो चीन की हिमालय क्षेत्र के मानचित्र को बदल देने की जिद है। डोकलाम संकट के दौरान तिब्बती निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री लोबसंग सांगे ने चीन की गैर आधिकारिक नीति फाइव फिंगर पालिसी को चीन की इस विस्तारवादी नीति का प्रमुख कारण माना था। इस नीति के तहत चीन का यह मानना रहा है कि तिब्बत उसकी हथेली है और अरुणाचल प्रदेश, भूटान, सिक्किम, नेपाल और लद्दाख के हिस्से उसके फिंगर हैं। इसलिए इन क्षेत्रों पर कब्जा करने की उसकी चाहत नई नही है, वर्ष 1962 में भी ऐसे प्रयास किए गए थे।
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने पूर्वी लद्दाख में उमलिंगला दर्रे के पास 19,300 फीट से अधिक की ऊंचाई पर मोटर वाहन चलने योग्य सड़क का निर्माण कर विश्व में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। उमलिंगला दर्रे से होकर गुजरने वाली 52 किमी लंबी यह सड़क तारकोल से बनाई गई है। उमलिंगला पास अब एक ब्लैक टाप सड़क से जुड़ गया है। पूर्वी लद्दाख में इस सड़क के निर्माण से क्षेत्र के चुमार सेक्टर के सभी महत्वपूर्ण कस्बे आपस में जुड़ जाएंगे। चिशुमले और देमचोक के लेह से सीधे आवागमन का वैकल्पिक मार्ग का विकल्प उपलब्ध कराने के कारण इस सड़क का स्थानीय लोगों के लिए काफी महत्व है। इसकी मदद से सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और लद्दाख में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा % हाल के समय में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की सुरक्षा पलायन करने वाले सीमांत गांव को फिर से बसाने, इस क्षेत्र में पर्यटन को मजबूत धार देकर रोजगार सृजन करने के प्रयास तेज हुए हैं। उत्तराखंड के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के पर्वतीय जिलों में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों पर विशेष तौर से फोकस करने की रणनीति बनाई है। धामी सरकार की पर्वतीय क्षेत्रों के विकास से जुड़ी रणनीति में सीमांत गांवों से पलायन को रोकने और पलायन से खाली हो चुके गावों में ग्रामीणों को पुन: बसाने पर स्लोवेनिया की तरह जोर दिया गया है। गौरतलब है कि स्लोवेनिया अपने कुल राजस्व का 30 प्रतिशत पर्यटन से ही प्राप्त करता है। धामी सरकार ने उत्तरकाशी स्थित गरतांग गली का जीर्णोद्धार कर उसे उत्तराखंड के पर्यटन की मुख्य धारा से जोड़ दिया है। यह लकड़ी का पुल भारत और तिब्बत के बीच का व्यापार मार्ग था। नामधारी (भोटिया जनजाति) समुदाय जो इस व्यापार का मुख्य संवाहक था, उसके प्रयासों को प्रतिष्ठित किया गया है। वहीं चीन से लगे उत्तराखंड के नेलांग घाटी के विकास के लिए ऐसी नीति बनाई गई है जिससे इनर लाइन परमिट जैसे प्रविधान पर्यटन और विकास के मार्ग में बाधा न बन सकें। पर्वतमाला प्रोजेक्ट से रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ, चमोली जिले में गोविंदघाट- घांघरिया समेत उत्तराखंड में 27 प्रोजेक्टों के धरातल पर उतरने की आस भी बढ़ी है। इससे पहाड़ी राज्यों में परिवहन के आधुनिक साधनों की व्यवस्था की जाएगी। इसमें बार्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर विशेष फोकस किया गया है। देश की उत्तरी सीमा से लगते गांवों के विकास के लिए वाइब्रेंट विलेज योजना से उत्तराखंड के पांच जिलों में सीमांत पर स्थित 1107 गांवों को इसका लाभ मिल सकता है।
कोरोना के बाद महानगरों में रहे रहे प्रवासियों ने गांवों की ओर रिवर्स पलायन किया। लाखों की संख्या में प्रवासी गांवों को लौटे। इस योजना से ऐसे सभी लोगों को जोडऩे का प्रयास किया जाएगा ताकि पर्वतीय क्षेत्र के विकास के साथ ही इन्हें रोजगार भी उपलब्ध कराया जा सके।

( लेखक आंतरिक सुरक्षा मामलों के जानकार हैं)
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