कैसे एक 24 साल की लड़की की हिम्मत ने ऑस्ट्रेलियाई संसद के महान मर्दों की महानता की कलई खोल दी
ऑस्ट्रेलियाई संसद के महान मर्दों की महानता की कलई खोल दी
मनीषा पांडेय।
ऑस्ट्रलिया से ये रिपोर्ट आई है, जो आज मेलबर्न समेत दुनिया के तमाम बड़े अखबारों के प्रिंट एडीशंस की हेडलाइन है. 456 पन्नों की ये रिपोर्ट कह रही है कि ऑस्ट्रेलिया की संसद में काम करने वाला हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी रूप में सेक्सुअल हैरेसमेंट यानि यौन हिंसा का शिकार हुआ है. 1000 महिलाओं और पुरुषों से बात करके यह रिपोर्ट तैयार की गई है. सुरक्षा कारणों से और निजी इच्छा का सम्मान करते हुए रिपोर्ट में कई लोगों का नाम और पहचान उजागर नहीं किए गए हैं. लेकिन इस रिपोर्ट में दिए गए तथ्य, आंकड़े और जानकारी से ऑस्ट्रेलिया की संसद को गहरा धक्का जरूर लगा है.
हालांकि ये धक्का सिर्फ उन्हीं लोगों को लगा है, जो शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन धंसाए सोचते हैं कि आसपास सब ठीक है, कोई खतरा नहीं.
इस रिपोर्ट के तथ्यों पर विस्तार से बात करने से पहले चलते हैं उस कहानी की ओर, जिसने इस रिपोर्ट की जमीन तैयार की.
आज की तरह 15 मार्च, 2021 को दुनिया भर के अखबारों में ये खबर छपी कि मेलबर्न समेत ऑस्ट्रेलिया के 12 शहरों में दसियों हजार औरतों ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया. उन औरतों ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और उनके हाथों में बैनर था, जिस पर लिखा था- "इनफ इज इनफ." (बहुत हो गया, अब और नहीं.)
इस विरोध प्रदर्शन की भी वजह थी. तीन साल पहले मीटू मूवमेंट की शुरुआत के साथ ही ऑस्ट्रेलिया की औरतें लगातार सरकार से ये मांग कर रही थीं कि वो वर्कप्लेस पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए, लेकिन सरकार के लिए ये कोई जरूरी मुद्दा नहीं था. लेकिन तभी एक ऐसी कहानी सामने आई, जिसने देश की बाकी महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाने और उसे सुनिश्चित करने वाले संस्थान के बुनियादी चरित्र को ही सवालों के घेरे में ला खड़ा किया.
15 फरवरी 2021 को लिबरल पार्टी की एक जूनियर कर्मचारी ब्रिटनी हिंगिस ने दो मीडिया समूहों को दिए इंटरव्यू में ये आरोप लगाया कि 22 मार्च, 2019 को एक पुरुष सहकर्मी ने तत्कालीन रक्षा उद्योग मंत्री सीनेटर लिंडा केरेन रेनॉल्ड्स के दफ्तर में उनके साथ रेप किया. उस वक्त वो 24 साल की थीं. ऑफिस की एक पार्टी के बाद वह उस सहकर्मी के साथ ऑफिस की कार में निकलीं, जो दोनों को उनके घर छोड़ने वाली थी. लेकिन उन्हें घर छोड़ने के बजाय आरोपी उन्हें संसद भवन की मिनिस्टीरियल विंग में लिंडा के दफ्तर में ले गया और वहां उसके साथ रेप किया. ब्रिटनी ने सुबह खुद को उस दफ्तर में नग्न अवस्था में पाया.
ब्रिटनी ने ये सारी बाद मंत्री और सांसद लिंडा केरेन रेनॉल्ड्स को बताई. चार दिन बाद उस व्यक्ति को नौकरी से निकाल भी दिया गया, लेकिन इस निकाले जाने की जो बजह बताई गई, वो सिक्योरिटी ब्रीच थी. पार्लियामेंट के ऑफिस में आधी रात में घुसना न कि उसकी आपराधिक हरकत और ब्रिटनी हिंगिस के साथ किया गया रेप. सांसद का कहना था कि यह मामला बहुत संवेदनशील है और चुनाव का वक्त है. ऐसे नाजुक समय में ये स्टोरी पब्लिक होने से चुनाव में नुकसान हो सकता है. ब्रिटनी का भी दूसरे विभाग में तबादला कर दिया गया. ब्रिटनी ने पुलिस में रिपोर्ट भी की, लेकिन फिर दबाव पड़ने पर अपनी रिपोर्ट वापस ले ली क्योंकि उसे डर था कि इस पुलिस कंम्प्लेन की वजह से उसकी नौकरी जा सकती है.
फिलहाल उस घटना के दो साल बाद फरवरी, 2021 में ब्रिटनी ने चुप्पी तोड़ने और इस बारे में पब्लिकली खुलकर बात करने का फैसला किया. और पता है, उस बोलने का नतीजा क्या हुआ. चार और महिलाएं सामने आईं और उन्होंने भी कहा कि वो उसी व्यक्ति के हाथों उसी पार्लियामेंट ऑफिस के अंदर रेप का शिकार हो चुकी हैं.
ये घटना तो परेशान करने वाली थी ही, लेकिन उससे ज्यादा चौंकाने वाली खबर दूसरी थी. ब्रिटनी हिंगिस ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि न सिर्फ सांसद लिंडा बल्कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन भी इस घटना से वाकिफ थे और उन सबने मिलकर मामले को दबाने की कोशिश की. मुझ पर दबाव बनाया गया कि मैं पुलिस रिपोर्ट वापस ले लूं वरना मेरा कॅरियर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा.
एक ब्रिटनी हिंगिस के सार्वजनिक तौर पर खुलकर सामने आने का नतीजा ये हुआ कि और भी महिलाएं बाहर आकर अपनी कहानी सुनाने लगीं. पार्लियामेंट दफ्तर में काम कर रहे कई लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें संसद के भीतर हो रही इन घटनाओं की जानकारी थी.
स्कॉट मॉरिसन की छवि इतनी खराब हो गई थी और उन पर इतना दबाव था कि उनके पास ब्रिटनी हिंगिस के रेप समेत समेत महिलाओं द्वारा लगाए जा रहे सभी आरोपों की जांच के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा. दसियों हजार औरतों ने सड़कों पर उतरकर पूरे ऑस्ट्रेलिया की सड़कों को जाम कर दिया. दुनिया भर के अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा. तकरीबन उसी समय ऑस्ट्रेलिया के अटॉर्नी जनरल क्रिस्टिन पॉटर पर भी आरोप लगा कि उसने अपनी जवानी के दिनों में एक 16 साल की लड़की के साथ रेप किया था, जिसने बाद मे आत्महत्या कर ली.
आखिरकार स्कॉट मॉरिसन ने जांच के आदेश दिए क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई और रास्ता बचा नहीं था.
उसी जांच की रिपोर्ट 7 महीने बाद आई है, जो कह रही है कि ऑस्ट्रेलिया की संसद का माहौल इतना खराब है कि वहां हर तीसरा व्यक्ति अपने सीनियर के हाथों किसी न किसी रूप में यौन हिंसा का शिकार हुआ है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया की संसद में बतौर स्टाफ जूनियर और सीनियर पदों पर काम करने वाली 40 फीसदी महिलाएं अपने सीनियर पुरुष कर्मचारियों, सांसदों और मंत्रियों के हाथों यौन हिंसा का शिकार हुई. साथ ही 26 फीसदी पुरुषों को भी यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. जो लोग एलजीबीटीक्यू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, उनके साथ यौन हिंसा की घटनाएं ज्यादा हुई, बनिस्बतन उन लोगों के जो हेट्रोसक्सुअल हैं. 53 फीसदी होमोसेक्सुअल्स और 31 फीसदी हेट्रोसेक्सुअल लोगों के साथ यौन हिंसा की घटनाएं हुईं.
ऑस्ट्रेलिया की संसद में सिर्फ महिला कर्मचारी ही नहीं, महिला सांसदों की स्थितिभी कोई बहुत अच्छी नहीं है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 63 फीसदी महिला सांसद अपने सहयोगी और सहकर्मी मर्द सांसदों के हाथों यौन हिंसा का शिकार हुई हैं.
और भी ज्यादा सदमे में डालने वाली बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया की संसद के भीतर यौन हिंसा का प्रतिशत पूरे देश में होने वाली यौन हिंसा के औसत प्रतिशत से कहीं ज्यादा है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में औसत 39 फीसदी लोग यौन हिंसा का शिकार हुए हैं.
आज इस रिपोर्ट के रूप में एक ऐसा सच हमारे सामने है, जिससे महज 10 महीने पहले तक ऑस्ट्रेलियाई संसद के भीतर बैठा हर मर्द और हर औरत सार्वजनिक तौर पर इनकार करते ही नजर आते. यूके में भी महिलाएं लंबे समय से इस चीज की मांग कर रही हैं कि वर्कप्लेस को ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट कानून बनाए.
जिन देशों में कोई ब्रिटनी हिंगिस अभी तक सामने नहीं आई है और जिन देशों की संसदों और महान संस्थाओं के वर्कप्लेस कल्चर को लेकर अभी तक हमारे पास कोई रिपोर्ट नहीं है, उस देश के लोग अपनी महानता पर सिर्फ तभी तक गर्व कर सकते हैं, जब तक कि कोई ब्रिटनी हिंगिस वहां भी सामने आकर अपनी कहानी न सुनाए और लाखों की संख्या में औरतें सड़कों पर उतरकर सरकार को खुद अपने ऊपर जांच कमेटी बिठाने के लिए मजबूर न कर दें.
आखिरकार अमेरिका की ससंद में एक "पुसी ग्रैबर" चार साल तक बैठा ही रहा और लगता नहीं कि इस बात से सांसदों की चमड़ी पर ज्यादा कुछ असर पड़ा था. रोजर एलिस जैसा आदमी, जिसने रूपर्ट मर्डोक के फॉक्स टेलीविजन के भीतर बैठकर 20 साल तक सैकड़ों कमजोर और वलनरेबल महिलाओं का यौन शोषण किया, उसे जेल की सलाखों के पीछे डालने की बजाय लाखों मिलियन डॉलर देकर रूपर्ट मर्डोक ने विदा किया और डोनाल्ड ट्रंप ने उसे तुरंत ही अपना मीडिया सलाहकार बना दिया.
देश के सामान्य नागरिकों के लिए सुरक्षा और सहायता मुहैया कराने वाली ताकतवर संस्थाओं की ताकतवर कुर्सी पर बैठे लोगों का ये हाल है.
इसलिए ऑस्ट्रेलियाई संसद के कारनामे बाहर आने का अर्थ ये नहीं है कि दुनिया के बाकी देश दूध के धुले हुए हैं. इसका अर्थ बस इतना ही है कि हर वो ब्रिटनी हिंगिस, जिसके साथ हिंसा हुई और जिसकी आवाज को ताकतवर लोगों ने अपने निजी हितों के लिए दबाने की कोशिश की, उसे सामने आना चाहिए और अपनी कहानी सुनानी चाहिए.
आज से 20 साल पहले कोई ब्रिटनी हिंगिस सच बोलकर गुमनामी में खत्म हो जाती, आज कम से कम लाख चाहकर भी ताकतवर लोग उसकी आवाज को दबा नहीं पाएंगे.
जब लोग पूछते हैं कि मीटू मूवमेंट ने क्या उखाड़ लिया तो भीतर से यही जवाब आता है. मीटू मूवमेंट इतना ही किया कि अब हमारी आवाज को वो दबा नहीं सकते. सीने पर पत्थर रखकर ही सही, सुननी तो पड़ेगी, जांच भी करनी पड़ेगी, रिपोर्ट भी बनानी पड़ेगी और रिपोर्ट सारा सच उगल देगी, जैसे इस रिपोर्ट ने किया है.