कैसे पंजाब की भगवंत मान सरकार ने हरियाणा में AAP की मुसीबतें बढ़ा दी हैं?
शायद यह मुख्यमंत्री भगवंत मान की अनुभवहीनता ही थी या फिर दूरदर्शिता का आभाव
अजय झा.
एक कहावत है, सोते शेर को मत छेड़ो. अगर वह शेर जाग गया तो नुकसान आपका ही होगा. और अब नुकसान पंजाब (Punjab) की आप सरकार का ही होता दिख रहा है. वह सोता शेर है चंडीगढ़ शहर पर पंजाब और हरियाणा (Haryana) के मालिकाना हक़ का पुराना विवाद. यह मुद्दा दशकों से दबा पड़ा था. पर ना जाने पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार को क्या सूझी कि सूबे में सरकार के गठन के एक पखवाड़े के अंदर ही नवगठित विधानसभा की एक विशेष सत्र बुलाई गयी, जिसमे चंडीगढ़ को पंजाब को देने के मामले में एक प्रस्ताव पारित किया गया. ऐसा भी नहीं था कि यह आप का चुनावी मुद्दा रहा हो, जिसे निभाना या फिर निभाने की कोशिश को जनता के सामने दर्शाना भगवंत मान की सरकार के लिए जरूरी था.
शायद यह मुख्यमंत्री भगवंत मान की अनुभवहीनता ही थी या फिर दूरदर्शिता का आभाव, पर उन्होंने एक सोते शेर को बेवजह जगा दिया और अब इसका खामियाजा आप को पड़ोसी राज्य हरियाणा में भुगतना पड़ सकता है. पंजाब और हरियाणा के बीच चंडीगढ़ शहर का मुद्दा 55 साल पुराना है, तब से ही जबकि 1966 में पंजाब से अलग हरियाणा का पृथक राज्य के रूप में गठन हुआ था. अब चंडीगढ़ कोई जम्मू और कश्मीर तो है नहीं जिसपर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का युद्ध या छद्म युद्ध से भी हल नहीं निकल पाया. बहुतों को शायद पता भी नहीं हो कि पंजाब का तीन टुकड़ों में विभाजन क्यों हुआ था.
दरअसल शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में पंजाब के सिख एक अलग सिख बहुल राज्य चाहते थे और उनकी मांग पर ही पहले 1 नवम्बर 1966 को पंजाब के गैर-पंजाबी भाषी क्षेत्रो को हरियाणा के रूप के एक अलग राज्य का दर्ज़ा प्राप्त हुआ और फिर 26 जनवरी 1971 को पंजाब के पहाड़ी इलाकों का हिमाचल प्रदेश के रूप में अलग राज्य में रूप में गठन हुआ और पंजाब सिख बहुल राज्य बन गया. और जब हरियाणा का गठन हो ही गया तो फिर यह बात समझ से परे है कि क्यों चंडीगढ़ शहर पर दोनों राज्यों के हक़ का विवाद उसी समय नहीं सुलझाया गया. अगर इंदिरा गांधी जिन्दा होती तो शायद वह ही इसका सही जवाब दे सकती थीं.
अब सतलुज-यमुना लिंक (SYL) कनाल का भी मुद्दा उठ गया है
चंडीगढ़ एक केन्द्रशासित प्रदेश बन गया जो पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी बनी. 1966 के बाद कई बार यह विवाद गरमाया पर हल कभी भी नहीं निकल पाया, क्योंकि इसके एवज में हरियाणा को पंजाब से लगभग 400 हिंदीभाषी गांव मिलना था जिसके लिए पंजाब तैयार नहीं हुआ. बहरहाल कारण जो भी रहा हो, चंडीगढ़ का विवाद पुराना है जिस पर पिछले कम से कम तीन दशकों से कोई विवाद नहीं हुआ था. चंडीगढ़ नामक शेर सो गया था, जिसे अब जगाने का काम भगवंत मान की सरकार ने किया है.
जब पंजाब विधानसभा ने विधिवत एक प्रस्ताव पारित किया तो फिर हरियाणा चुप कहां बैठने वाला था. 1 अप्रैल को पंजाब विधानसभा की विशेष बैठक हुई और उसके ठीक पांच दिन बाद हरियाणा विधानसभा की कल विशेष बैठक हुई. जो काम आज तक किसी ने नहीं किया था वह काम आप ने कर दिखाया. हरियाणा की राजनीति में अनेक दल हैं और किसी की एक दूसरे से बनती नहीं है. यहां तक कि कांग्रेस पार्टी भी कई धड़ों में बिखरी पड़ी है. पर जब बात चंडीगढ़ की आई तो सभी दल आपसी मतभेद को भूल कर एक हो गए और कल हुए विधानसभा के विशेष सत्र में ना सिर्फ चंडीगढ़ पर हरियाणा ने भी अपना दावा ठोका, बल्कि पंजाब की मुसीबतें बढ़ाते हुए सतलुज-यमुना लिंक (SYL) कनाल के विषय में भी एक प्रस्ताव पारित किया और मांग की गयी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत SYL कनाल के निर्माण का काम जल्द से जल्द पूरा किया जाए, ताकि हरियाणा को उसके हक़ का पानी मिल सके.
एक सर्वदलीय टीम के गठन के बारे में भी बात हुई जो इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से शीघ्र ही मिलने जाएगा. वहीं धुर विरोधी वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब साथ मिल कर वकीलों से मिलेंगे ताकि सुप्रीम कोर्ट का SYL कनाल के विषय में हरियाणा के हक़ में दिए गए फैसले को लागू करवाया जा सके. अब किसने भगवंत मान को यह सलाह दी थी कि वह चंडीगढ़ विवाद को छेड़ें इसकी जानकारी नहीं है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या आप के सर्वोच्च नेता अरविन्द केजरीवाल की सहमती से यह निर्णय लिया था. और अगर इस मुद्दे पर केजरीवाल की सहमती थी तो सवाल यह है इससे आपको क्या राजनीतिक लाभ मिलने वाला है.
हरियाणा में आप को राजनीतिक तौर पर नुकसान हो सकता है
आम आदमी पार्टी ने पिछले महीने पंजाब विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद घोषणा की थी कि कई अन्य राज्यों के साथ-साथ हरियाणा में भी वह अपनी जड़ें मजबूत करेगी, ताकि 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनाव को जीत कर वह सरकार बनाने की स्थिति में आ जाए. इरादा सही थी. दिल्ली और पंजाब के बीच हरियाणा पड़ता है. अब अगर दिल्ली और पंजाब में आप की सरकार है तो हरियाणा पर आप की नज़र स्वाभाविक है. 2024 की तैयारी अभी से शुरू भी हो गयी थी. खबर है कि हरियाणा के सभी 80 विधानसभा क्षेत्रों में आप का दफ्तर खुल चुके हैं और अब हरियाणा के हर एक ब्लाक में भी आप का दफ्तर खोलने की प्रक्रिया चल रही है.
हरियाणा कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर को आप में शामिल किया गया है और बीजेपी नेता चौधरी बिरेन्द्र सिंह और IAS ऑफिसर अशोक खेमका से बात चल रही है. आप को उम्मीद है कि यह दोनों भी जल्द ही पार्टी में शामिल हो जाएंगे ताकि हरियाणा में आप की तैयारी को बल मिल सके और उसे एक सीरियस पार्टी के रूप में लोग देखने लगें. पर कहीं चूक हो गयी लगती है. चंडीगढ़ से भी अधिक SYL कनाल का मुद्दा हरियाणा के जन जन में है. हरियाणा में पानी की, खासकर सिंचाई के लिए पानी की भारी किल्लत रहती है, खासकर मेवात, दक्षिण हरियाणा और भिवानी जिले में. पानी का मुद्दा हरियाणा के निवासियों के लिए एक इमोशनल मुद्दा है. अभी तक लोग SYL कनाल के निर्माण के देरी का दोष पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को देते थे पर अब इसका दोष आम आदमी पार्टी के सर पर मढ़ने वाला है. पंजाब में भी पानी की कमी है. कई कमिशनों ने और कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी पंजाब को हरियाणा के हक़ का पानी देने का आदेश दिया था.
अब अगर हरियाणा को पानी दिया तो फिर पंजाब की जनता आम आदमी पार्टी की सरकार से नाराज़ हो जाएगी और अगर हरियाणा को पानी नहीं दिया तो फिर उसे सुप्रीम कोर्ट में मानहानि का दोषी भी करार दिया जा सकता है. अब इस परिस्थिति में आप हरियाणा के चुनाव कैसे जीतेगी कहना काफी कठिन है. उल्टे हरियाणा में आम आदमी पार्टी खलनायक बन सकती है. बहरहाल, भगवंत मान सरकार के बारे में एक ही बात कही जा सकती है कि कहां चड़ीगढ़ लेने चले थे और SYL कनाल विवाद में उलझ गए, यानि मान सरकार पर सर मुंड़ाते ही ओले बरसने की सम्भावना अब बन गयी है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)