उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को बीएसपी के साथ जोड़ने का काम मायावती ने अपने सबसे भरोसेमंद सिपहसालार सतीश चंद्र मिश्रा को सौंपा है, सतीश चंद्र मिश्रा 23 जुलाई से 29 जुलाई तक लगातार छह जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन करेंगे. जिसकी शुरुआत 23 जुलाई को अयोध्या से होगी. बीएसपी अपने इस समीकरण को साधने के लिए कितनी तत्परता दिखा रही है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बीते शुक्रवार को बीएसपी के लखनऊ कार्यालय पर पूरे प्रदेश के लगभग 200 से ज्यादा ब्राह्मण नेता और कार्यकर्ता आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा करने के लिए पहुंचे थे.
बीएसपी के लिए उम्मीद की वजह
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने जब से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कुर्सी सौंपी है ब्राह्मणों को लगता है उनकी उपेक्षा हो रही है. पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी लगातार राजपूत सीएम बनाने, योगी आदित्यनाथ के अलावा यूपी से ही एक और क्षत्रिय नेता राजनाथ सिंह का केंद्र में दूसरे नंबर की स्थित को देखते हुए ब्राह्रणों को लगता है वो राजनीति में पिछड़ रहे हैं. दरअसल यूपी की राजनीति में दशकों से ब्राह्मण वर्सेस राजपूत की दौड़ चलती रहती रही है. इस दौड़ में कांग्रेस के काल में पलड़ा हमेशा ब्राह्मणों का भारी रहा है. यहां तक कि बीएसपी गवर्नमेंट के समय भी प्रदेश स्तरीय पदों में ब्राह्मणों का रुतबा बरकरार रहा. समाजवादी पार्टी ने भी कभी ब्राह्मणों के साथ उपेक्षा का भाव नहीं रखा.
मतलब कि चाहे कोई भी सरकार रही हो ब्राह्मणों का जलवा हर सरकार में रहा है. पर बीजेपी सरकार में चाहे केंद्र हो या राज्य एक नंबर से 5 नंबर तक किसी भी ताकतवर ब्राह्मण का नाम नहीं मिलता है. दूसरे बीजेपी को छोड़ यूपी का हर दल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, यहां तक कि आम आदमी पार्टी भी लगातार यूपी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने या ब्राह्मणों की उपेक्षा करने का आरोप लगा रही है. इसलिए विधानसभा चुनावों तक अभी यह मसला और गंभीर होने वाला है. 3 दशकों से पश्चिमी यूपी की राजनीति कवर कर रहे वरिष्ट पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि इसके बावजूद भी ब्राह्मण बीजेपी का साथ पूरी तरह नहीं छोड़ने वाले हैं. ये हो सकता है कि 2 से 3 परसेंट वोट उन सीटों पर ट्रांसफर हो जाएं जहां विरोधी पार्टियों के ब्राह्मण कैंडिडेट हों. पर ये नहीं कहा जा सकता कि ब्राह्मण थोक के भाव में अपना वोट किसी खास पार्टी को दें. ये सिर्फ बीएसपी के लिए ही नहीं, ये हर उस पार्टी के लिए है जो ब्राह्मण वोट के लिए लुभावने वादे कर रही है. पर भारतीय लोकतंत्र में 2 से 3 परसेंट वोटों का हेरफेर सीटों में बहुत बड़ा उलटफेर कर देता है. इसलिए बीएसपी अगर अपनी कोशिश में आंशिक सफल भी होती है तो यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.
क्या केवल ब्राह्मण वोट बैंक को साधने से काम बन जाएगा
बहुजन समाज पार्टी काफी समय से प्रदेश की राजनीति में उतनी सक्रिय नहीं थी, जितनी की तमाम पार्टियां थीं. लेकिन चुनाव नजदीक आते ही जिस तरह से बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अपनी सियासी बिसात बिछानी शुरू की उसने सबके होश फाख्ता कर दिए. दरअसल इस बार उत्तर प्रदेश में मायावती सूबे के ( अनुमानतः 10 से 13 फीसदी) ब्राह्मण वोट बैंक के साथ-साथ लगभग 50 फीसदी से ज्यादा वोट बैंक वाले ओबीसी समुदाय को भी साधना चाहती हैं. मायावती को पता है कि उनका दलित वोट बैंक किसी भी हाल में उनसे दूर नहीं जाएगा, ब्राह्मण इस वक्त भारतीय जनता पार्टी से नाराज हैं, इसलिए सवर्ण वोट बैंक में से ब्राह्मणों को 2007 की तरह फिर से अपनी तरफ खींचने की कवायद तेज कर दी गई है.
इसके साथ ही मायावती की नजर गैरयादव ओबीसी वोट बैंक पर भी है जिसकी आबादी राज्य में काफी ज्यादा है, माना जा रहा है कि इस बार बीएसपी के टिकट बंटवारे में भी इस समीकरण का पूरा जोर दिखेगा, यानि सबसे ज्यादा टिकट गैर यादव ओबीसी को मिलेगा उसके बाद ब्राह्मणों को और फिर नंबर आएगा दलित और मुसलमानों का. हालांकि चुनावों से पहले ऐसे कई समीकरण हर राजनीतिक दल बनाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर वह समीकरण सफल हो यह जरूरी नहीं है.
क्या पूरा ब्राह्मण समाज 2007 की तर्ज पर 2022 में भी बीएसपी के साथ आएगा
2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने इसी समीकरण के आधार पर 403 में से 206 सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी. लेकिन 2012 के बाद से ही बीएसपी का यह समीकरण टूटने लगा था, क्योंकि जिस ब्राह्मण वोट बैंक के सहारे बीएसपी सत्ता में आई थी वह भारतीय जनता पार्टी की ओर रुख करने लगा था. अब वही हाल बीजेपी के साथ भी हो रहा है, तमाम राजनीतिक पार्टियों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय भारतीय जनता पार्टी से नाराज चल रहा है, इसलिए तमाम राजनीतिक दल अब इस वोट बैंक को अपनी ओर करने की जुगत में लग गए हैं. मायावती को पता है कि सूबे की 10 से 13 फीसदी ब्राह्मण आबादी ( अनुमानतः) अगर उनके पाले में आ जाती है तो यह बीएसपी के लिए गेम चेंजर साबित होगा.
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के वर्चस्व का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 56 सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी, इसमें 44 विधायक भारतीय जनता पार्टी के थे. जाहिर सी बात है जिस समुदाय का उत्तर प्रदेश की राजनीति में इतना असर होगा उस समुदाय को हर राजनीतिक पार्टी अपनी ओर लाने का प्रयास जरूर करेगी.
हालांकि बीजेपी और संघ जिस तरह से चुनाव के दौरान पूरे वोट बैंक को जातिगत आधार से हटाकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ला देते हैं उसे तोड़ पाना बीएसपी और उसके सरीखे तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है. ब्राह्मण फिलहाल भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर किसी और राजनीतिक पार्टी के साथ जाएं जमीनी स्तर पर ऐसा होता हुआ कम ही दिखाई दे रहा है.