National Herald Case में गांधी परिवार पर ED का शिकंजा कितना मजबूत?
पिछले करीब एक दशक से चल रहे नेशनल हेराल्ड केस (National Herald Case) में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर एक बार फिर से शिकंजा कसता दिख रहा है
प्रवीण कुमार |
पिछले करीब एक दशक से चल रहे नेशनल हेराल्ड केस (National Herald Case) में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर एक बार फिर से शिकंजा कसता दिख रहा है. वित्तीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड केस से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में पूछताछ के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को समन जारी किया है. समन जारी होते ही कांग्रेस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. प्रवक्ताओं ने केंद्र सरकार पर हमले करते हुए कहा कि एक डरी हुई तानाशाह सरकार बदले की भावना में अंधी हो गई है.
नेशनल हेराल्ड को आजादी के आंदोलन से जोड़ते हुए कांग्रेस ने मौजूदा सत्ता की तुलना अंग्रेजों की दमन की कार्रवाई से करते हुए कहा कि मोदी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर रही है. विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच इस तरह की नूरा-कुश्ती कोई पहली बार तो हो नहीं रहा है. इसका लंबा इतिहास है और दुनिया के सभी देशों में ऐसा होता है. लेकिन एक बात तो माननी होगी कि पूरे मामले में अनियमितता तो हुई है. हां ये जरूर है कि इसमें प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की एंट्री चौंकाती है. अब ईडी ने गांधी परिवार पर जिस तरह से शिकंजा कसा है उसकी डोर कितनी मजबूत है और आगे यह कितना टिक पाती है यह अपने आपमें बड़ा सवाल है.
पूरे केस को विस्तार से समझने की जरूरत
साल 1938 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना की. अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड यानी एजेएल के पास था जो दो और अखबार हिंदी में नवजीवन और उर्दू में कौमी आवाज प्रकाशित करती थी. 1956 में एजेएल को गैर व्यावसायिक कंपनी के तौर पर स्थापित किया गया और कंपनी एक्ट की धारा 25 से कर मुक्त कर दिया गया था. कंपनी धीरे-धीरे घाटे में चली गई और उसपर 90 करोड़ का कर्ज चढ़ गया. तब कांग्रेस ने एजेएल को पार्टी फंड से बिना ब्याज के 90 करोड़ रुपए का लोन दिया. कांग्रेस पार्टी का कहना है कि एजेएल को कांग्रेस ने लगभग 10 साल के दौरान करीब 100 किश्तों में चेक से अपनी देनदारी के भुगतान के लिए 90 करोड़ रुपए दिए. इसमें से 67 करोड़ रुपए का इस्तेमाल नेशनल हेराल्ड ने अपने कर्मचारियों के देय भुगतान के लिए किया, जबकि बाकी पैसा बिजली भुगतान, किराया, भवन आदि पर खर्च किया गया. गौर करने की बात है कि किसी राजनीतिक दल की ओर से दिया जाने वाला कर्ज न तो अपराध की श्रेणी में आता है और न ही गैरकानूनी है. इस बात की पुष्टि चुनाव आयोग भी अपने 6 नवंबर, 2012 के पत्र में भी की है. करीब 70 साल बाद 2008 में घाटे की वजह से एजेएल के तहत छपने वाले प्रकाशनों को बंद करना पड़ा.
यंग इंडियन बनने के बाद खुला राज
साल 2010 में यंग इंडियन नाम से एक नई कंपनी बनाई जाती है जिसका 76 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के पास और बाकी का शेयर मोतीलाल बोरा और ऑस्कर फर्नांडिस आदि के पास था. चूंकि नेशनल हेराल्ड अखबार आय के अभाव में 90 करोड़ का कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं था, इसलिए कांग्रेस पार्टी ने अपना 90 करोड़ का लोन नई कंपनी यंग इंडियन को ट्रांसफर कर दिया. साथ ही एसोशिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के शेयर यंग इंडियन को दे दिए गए. इसके बदले में यंग इंडियन ने महज 50 लाख रुपये द एसोसिएट जर्नल्स को दिए. यंग इंडियन कानूनी तौर पर एक नॉट फॉर प्रॉफिट कंपनी है लिहाजा यंग इंडियन की प्रबंध समिति के सदस्य मसलन सोनिया गांधी, राहुल गांधी आदि कंपनी से किसी प्रकार का मुनाफा, डिवीडेंड, तनख्वाह या कोई वित्तीय फायदा नहीं ले सकते. यही नहीं, प्रबंध समिति यंग इंडियन के शेयर को भी नहीं बेच सकती. इसका मतलब, यंग इंडियन से ना तो एक पैसे का वित्तीय लाभ लिया जा सकता और न ही इसके शेयर को बेचा जा सकता. कारण साफ है कि नेशनल हेराल्ड, एसोशिएटेड जर्नल्स लिमिटेड और यंग इंडियन को केवल कांग्रेस पार्टी ही नहीं, देश भी इसे धरोहर मानता है.
क्या मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनता है?
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 1 नवंबर 2012 को दिल्ली की एक अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड ने केवल 50 लाख रुपये में 90 करोड़ वसूलने का उपाय निकाला जो नियमों के खिलाफ है. स्वामी ने इस मामले में केस दर्ज कराया जिसमें सोनिया और राहुल के अलावा मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडिस, सुमन दुबे और सैम पित्रोदा आरोपी बनाए गए. 26 जून 2014 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने सोनिया-राहुल समेत सभी आरोपियों के खिलाफ समन जारी किया. 1 अगस्त 2014 को इस केस में ईडी की एंट्री होती है और मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया. मई 2019 में इस केस से जुड़ी 64 करोड़ की संपत्ति को ईडी ने जब्त किया. इस बीच 19 दिसंबर 2015 को इस केस में सोनिया, राहुल समेत सभी आरोपियों को दिल्ली पटियाला कोर्ट ने जमानत दे दी. 9 सितंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में सोनिया और राहुल को झटका देते हुए आयकर विभाग के नोटिस के खिलाफ याचिका खारिज कर दी थी. कांग्रेस ने इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी, लेकिन 4 दिसंबर 2018 को कोर्ट ने कहा कि आयकर की जांच जारी रहेगी. इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे अहम बात यह है कि इस केस में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनता नहीं है. और जब मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनता नहीं है तो फिर ईडी को क्यों लगाया गया?
पूरे मामले में कांग्रेस पार्टी का कहना है
पूरे मामले में कांग्रेस पार्टी का साफ कहना है कि यह केस पिछले 7-8 सालों से चल रहा है और इसमें अब तक एजेंसी को कुछ नहीं मिला है. कंपनी को मजबूत करने के लिए और लोन खत्म करने की वजह से इक्विटी में परिवर्तन किया गया. इस इक्विटी से जो पैसा आया वह श्रमिकों को दिया गया और इसे पूरी पारदर्शिता के साथ किया गया. जहां तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ईडी के समन का सवाल है तो 7 साल बाद लोगों का ध्यान मोड़ने के लिए यह सब किया जा रहा है. ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स का दुरुपयोग कर विपक्षी पार्टियों को डराया जा रहा है. मतलब कांग्रेस इस पूरे मामले में आश्वस्त है कि ईडी के शिकंजा बेहद कमजोर है और देर-सबेर मामला रफा-दफा हो जाएगा.
यहां यह समझने की जरूरत है कि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी मौजूदा वक्त में फेरा 1973 और फेमा 1999 के तहत काम करता है. ईडी फेमा के प्रावधानों के संदिग्ध उल्लंघन की जांच करता है. इसमें निर्यात मूल्य को अधिक आंकना और आयात मूल्य को कम आंकना, हवाला लेन-देन, विदेशों में संपत्ति की खरीद, विदेशी मुद्रा का अवैध व्यापार, विदेशी विनिमय नियमों का उल्लंघन और फेमा के तहत अन्य प्रकार उल्लंघन आदि की जांच शामिल है. नेशनल हेराल्ड केस में इस तरह का कोई मामला नहीं है, लिहाजा ईडी की इस केस में दखलंदाजी यह बताने और जताने के लिए काफी है कि जांच बहुत आगे नहीं जाने वाली. गांधी परिवार पर ईडी के शिकंजे की डोर इतनी मजबूत नहीं कि उन्हें कोई हानि हो.
बहुत हद तक संभव है यह सरकार की विपक्ष को अपनी जांच एजेंसी के टूल्स से कंट्रोल करने की रणनीति हो. क्योंकि वाकई अगर इस केस में अनियमितता हुई है और इसमें मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनता है तो बीते 8 वर्षों में आरोप साबित हो जाना चाहिए था और दोषियों को जेल में होना चाहिए था. ऐसे भी मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की उपलब्धि बेहद खराब है. देश में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 में लागू हुआ था. तब से मार्च 2022 तक कुल 5,422 केस दर्ज हुए हैं और करीब 1.04 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति अटैच की गई है. इन मामलों में कुल 400 लोगों को गिरफ्तार किया गया और सिर्फ 25 लोगों को दोषी ठहराया गया है.
सोर्स- tv9hindi.com