यूपी 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी के तीन साल की मेहनत कितना रंग लाएगी?

YouTube की एक खासियत है जो कभी-कभी झल्लाहट का कारण भी बन जाती है

Update: 2021-05-14 09:37 GMT

अजय झा | YouTube की एक खासियत है जो कभी-कभी झल्लाहट का कारण भी बन जाती है. जब तक आप उसे डिसकनेक्ट नहीं कर दें, अपनी मर्ज़ी से वह एक के बाद एक दूसरा वीडियो दिखाता रहता है. कल रात में एक पुराने मित्र का किसान आन्दोलन के बारे में एक टीवी चैनल पर हुआ इंटरव्यू देख रहा था. इसके खत्म होते ही अगला वीडियो, प्रशांत किशोर का इंटरव्यू आने लगा. बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता, लिहाजा उस इंटरव्यू को चलने दिया. यह इंटरव्यू 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व का था और प्रशांत किशोर उन दिनों जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष हुआ करते थे. उनसे एक सवाल किया गया कि जहां बाकी राज्यों में उनकी चुनावी रणनीति सफल रही थी, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वह असफल क्यों हो गए.


बातों के दरम्यान उन्होंने प्रियंका गांधी का ज़िक्र किया. प्रियंका उस समय तक सक्रिय राजनीति में औपचारिक रूप से शामिल हो गयी थीं. प्रशांत किशोर ने कहा कि वह चाहते थे कि प्रियंका 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले ही सक्रिय राजनीति में आ जाएं और अगर ऐसा होता तो कांग्रेस पार्टी की हालत बेहतर होती. चूंकि कांग्रेस पार्टी का उत्तर प्रदेश में कैडर बचा नहीं था, प्रशांत किशोर एक बड़े चेहरे के पीछे ही युवाओं की एक फौज खड़ी करना चाहते थे, और वह बड़ा चेहरा प्रियंका गांधी का ही हो सकता था. खैर उनकी चली नहीं, प्रियंका राजनीति में खुल कर सामने आयी नहीं और राहुल गांधी ने, जैसी कि उनकी आदत है, बिना किसी से सलाह मशविरा किये समाजवादी पार्टी से गठबंधन का ऐलान कर दिया.


प्रशांत किशोर ने प्रियंका गांधी को क्या कहा था
प्रशांत किशोर का मानना था कि प्रियंका गांधी के उस चुनाव में सामने आने से कांग्रेस पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो जाती. उन्होंने ने इंटरव्यू में एक और बात कही कि प्रियंका गांधी की असली परीक्षा 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में होगा, क्योंकि उस समय तक उन्हें राजनीति में आये लगभग तीन साल हो चुका होगा. प्रशांत किशोर की अब तक इतनी हैसियत तो बन ही गयी है कि आप उन्हें पसंद करें या नापसंद, पर उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. पश्चिम बंगाल में उन्होंने ताल ठोक कर कहा था कि तृणमूल कांग्रेस लगातार तीसरी बार चुनाव जीत कर सरकार बनाएगी और बीजेपी 100 सीटों से कम पर ही सिमट जायेगी, और हुआ भी ऐसा ही. लिहाजा प्रशांत किशोर का यह कहना कि प्रियंका गांधी की असली परीक्षा 2022 के विधानसभा चुनाव से होगी, बिलकुल सही प्रतीत होता है.

2019 में कांग्रेस सिर्फ अमेठी जीत पाई थी
2019 लोकसभा चुनाव के थोड़े समय पहले प्रियंका गांधी विधिवत तौर पर सक्रिय राजनीति में शरीक हो गईं. बड़े भाई राहुल गांधी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. प्रियंका की शुरुआत ही बड़े पद, यानि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद पर निक्युक्ति से हुयी. उन्हें पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम उत्तर प्रदेश मिला. प्रियंका ने मेहनत तो की पर कांग्रेस पार्टी की डूबती नाव को बचा नहीं पायीं. प्रियंका ने अमेठी में जम कर प्रचार किया पर राहुल गांधी चुनाव हार गए. रायबरेली ने इज्ज़त बचा ली. उत्तर प्रदेश से कांग्रेस पार्टी के खाते में एकलौती सीट सोनिया गांधी के जीत से नसीब हुई, जहां प्रियंका गांधी की मेहनत रंग लायी.

ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस पार्टी छोड़े हुए एक वर्ष से ऊपर हो चुका है और उसके बाद से प्रियंका गांधी अब पूरे उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं. सवाल है कि क्या उनमें क्षमता और दृढ इच्छाशक्ति है कि वह कांग्रेस पार्टी की राजनीति के दृष्टिकोण से भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में दूसरी या तीसरी सबसे बड़ी पार्टी का दर्ज़ा दिला सकें?

दिल्ली छोड़ कर यूपी की सियासत कैसे करेंगी प्रियंका
प्रियंका गांधी की समस्या यह है कि उनका दिल दिल्ली में होगा, पर उनकी परीक्षा उत्तर प्रदेश में होगी. अब परीक्षा देने के लिए तैयारी तो करनी ही पड़ती है, पर प्रियंका गांधी की तैयारी पूरी नहीं दिख रही है. साल में दो–तीन बार वह प्रदेश का चक्कर लगा आती हैं. जाती वही हैं जहां गरीब या पिछड़ों के साथ अन्याय की खबर आती है. बाकी के समय राहुल गांधी की तरह प्रियंका भी ट्विटर से ही राजनीति करती दिखती हैं. रोज कम से कम एक ट्वीट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ और एक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ करती ही हैं. यह प्रियंका गांधी ही बेहतर जानती होंगी कि जिन गरीब, दलित, पिछड़े और महिलाओं की वह हमदर्द हैं उनमे से कितने ट्विटर से जुड़े हैं और उन्हें क्या पता भी चलता है कि मैडम ने किस मुद्दे पर किस नेता की आलोचना की है? अगर ट्विटर और फेसबुक से ही राजनीती चलती तो अभी तक राहुल गांधी प्रधानमंत्री होते.

यूपी में कांग्रेस को जमीन पर उतर कर काम करना होगा
प्रियंका गांधी को पिछले साल एक स्वर्णिम अवसर मिला था उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा धमाका करने का. मोदी सरकार ने उनसे दिल्ली के लोधी एस्टेट का सरकारी बंगला खाली करने का आदेश जारी किया. खबर आई कि उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ में एक बंगला उनके लिए तैयार किया जा रहा है, जहां वह विधानसभा चुनाव तक रहेंगी. बंगला तो तैयार हो गया पर प्रियंका दिल्ली का मोह नहीं छोड़ पाईं. लिहाजा वह और उनका परिवार हरियाणा के शहर गुरुग्राम स्थित खुद के आलिशान पेंटहाउस में शिफ्ट हो गए, जहां से अब उत्तर प्रदेश की राजनीति होती है.

ज़रुरत थी एक ऐसे नेता कि जो उत्तर प्रदेश में रह कर वहां की जनता के साथ घुलमिल कर मृत्यु सैय्या पर पड़ी कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने की कोशिश करे, पर इसके सामने प्रियंका के बड़े शहर का मोह सामने आ गया. अब प्रियंका वही कर रही हैं जो पूर्व में राहुल गांधी ने किया था जिसका नतीजा सभी ने पूर्व में देखा था. 2014 के लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस पार्टी सिर्फ अमेठी और राय बरेली की सीट जीत पायी, 2017 का विधानसभा चुनाव जिसमें पार्टी मात्र सात सीटों पर सिमट कर रह गयी और फिर 2019 का लोकसभा चुनाव जिसमें राहुल गांधी को अमेठी में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. अब प्रियंका गांधी के ट्विटर की राजनीति और साल में दो-तीन चक्कर प्रदेश के लगा लेने से ही अगर कांग्रेस पार्टी का भला हो सकता है तो फिर 2022 फरवरी-मार्च के महीने में होने वाले चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत पक्की मानी जानी चाहिए, और प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बन जाएंगी.

अगर ऐसा हुआ तो फिर 2024 में माता सोनिया गांधी का सपना साकार हो जाएगा, प्रियंका उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री इससे ज्यादा किसी मां की और क्या चाहत हो सकती है? पर… सपनों में और हकीकत में जमीन आसमान का फर्क होता है, और जमीन-असमान एक करने के लिए जिस लगन और कठोर मेहनत की ज़रुरत होती है उस पर फिलहाल प्रियंका गांधी का प्रदर्शन उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता.


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