वैक्सीन पर कितना भरोसा?
जब अमेरिका में यह हाल है, तो अपने यहां क्या होगा, यह समझा जा सकता है। भारत में तो खैर अभी दूसरा डोज ही मुश्किल से साढ़े आठ फीसदी लोगों को लगा है।
जब अमेरिका में यह हाल है, तो अपने यहां क्या होगा, यह समझा जा सकता है। भारत में तो खैर अभी दूसरा डोज ही मुश्किल से साढ़े आठ फीसदी लोगों को लगा है। ऐसे में बूस्टर डोज की अभी चर्चा नहीं है। ये चर्चा हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे वैक्सीन के असर को लेकर सवाल खड़े होते हैँ।
कोरोना वैक्सीन के दो डोज पूरे बचाव में सक्षम नहीं हैं, ये बात अब लगभग पूरी दुनिया में मान ली गई है। तो अब चर्चा बूस्टर डोज यानी दो के बाद एक तीसरा डोज लगवाने पर आ टिकी है। लेकिन इस बारे में भी जो भ्रम है, वह लोगों में अब अविश्वास पैदा कर रहा है। कंपनियां सचमुच बूस्टर डोज से लोगों के बचाव की आशा कर रही हैं, या उनका मकसद और टीका बेचना है, ये सवाल उठ खड़ा हुआ है। अमेरिका से आई ये खबर गौरतलब है कि वैक्सीन निर्माता कंपनी मॉडेरना के अंतर्विरोधी बयानों से भ्रम फैल गया है। मॉडेरना ने कहा है कि ठंड का मौसम आने से पहले बूस्टर डोज लगवाने की जरूरत पड़ सकती है।
लेकिन साथ ही उसने यह भी कहा है डेल्टा सहित दूसरे वैरिएंट के मामलों में वैक्सीन कितना प्रभावी है, सामने आए आंकड़े इस बारे में चिंता पैदा कर रहे हैँ। उसी खबर में बताया गया है कि आम अमेरिकी इस बारे में भ्रम में है। जानकारों ने भी कहा है कि फाइजर और मॉडेरन जैसी कंपनियों का वैक्सीन बेचने में फायदा है। साथ ही उन्होंने अपने बयानों से भ्रम और बढ़ाया है। जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी के वैक्सीन की हालत और भी भ्रामक है। दरअसल, बताया गया है कि अमेरिका में डेल्टा वैरिएंट से बचाव की चिंता सबसे ज्यादा उन लोगों में ही है, जिन्होंने जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी का वैक्सीन लिया। इस वैक्सीन का सिर्फ एक डोज लगता है।
इसके बूस्टर डोज से कितना लाभ होता है, इस बारे में अभी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। तो कुल मिल कर स्थिति भ्रामक है। और जब अमेरिका में यह हाल है, तो अपने यहां क्या होगा, यह समझा जा सकता है। भारत में तो खैर अभी दूसरा डोज ही मुश्किल से साढ़े आठ फीसदी लोगों को लगा है। ऐसे में बूस्टर डोज की अभी चर्चा नहीं है। ये चर्चा हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे वैक्सीन के असर को लेकर सवाल खड़े होते हैँ। अमेरिकी विशेषज्ञों ने कहा है कि अभी तीसरे डोज की जरूरत सिर्फ 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और अस्पताल कर्मियों को है। लेकिन आखिरकार सबको तीसरा डोज लेना ही होगा। तो भारत में बचाव और महामारी पर काबू को लेकर कितने आश्वस्त हो सकते हैं? जाहिर है, फिलहाल सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरी सावधानियां ही अकेला उपाय हैँ।