मंडी जमावड़े में कितनी आप
मंडी शहर की भीड़ में आम आदमी पार्टी थी या आप की भीड़ में मंडी समाहित हो गई, यह चर्चा सेरी मंच से राजनीति का इतिहास पूछ रहा है
By: divyahimachal .
मंडी शहर की भीड़ में आम आदमी पार्टी थी या आप की भीड़ में मंडी समाहित हो गई, यह चर्चा सेरी मंच से राजनीति का इतिहास पूछ रहा है। क्या आम आदमी पार्टी में शामिल होने वालों का कोई रेला था या रैली में आए राजनीतिक क्षुब्ध लोगों का यह मात्र पोस्टर कैंपेन था। सवाल इसलिए भी उठेंगे क्योंकि सेरी मंच को हमेशा जमावड़ों की आदत है और यह मंच भीड़ में अपने और परायों के बीच हिमाचल की संस्कृति की खबर रखता है। कम से कम आप की मंडी रैली ऐसी अनूठी नहीं मानी जा सकती कि प्रदेश की सियासत इसकी अंगूठी पहनकर सगाई कर ले या यह एतबार कर ले कि जो आज तक हिमाचल में नहीं हुआ, उसे यह पार्टी कर लेगी। इसकी वजह दो मुख्यमंत्रियों के आगमन और आश्वासन में अंतर को देखते हुए कहा जा सकता है। प्रारंभिक तौर पर आप के श्रीगणेश को एक विकल्प के रूप में देखने वालों को यह समझना होगा कि पार्टी का रोड मैप क्या है। हम भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के भाषणों से न तो कोई नया नारा सुन रहे हैं और न ही उद्घोष। भाषणों में किसी तरह की ताजगी का न तो एहसास होता है और न ही प्रदेश के सामने वैकल्पिक राजनीति के मुद्दे आए हैं।
मंडी रैली में केजरीवाल ने जाहिर तौर पर खुद को समझाने और हिमाचल के सामने अपना परिचय जरूर रखा। यह परिचय एक वर्ग को लुभा सकता है या उस अंसतोष को बटोर सकता है जो किसी न किसी कारण भाजपा और कांग्रेस से खफा रहा है, लेकिन केजरीवाल को समझने मात्र से तीसरा मोर्चा खड़ा नहीं होता। जनता ने केजरीवाल के नाम पर एकत्रित भीड़ तो देखी, लेकिन हिमाचल का ऐसा कोई चेहरा नहीं देखा, जो हक हकूक की बात करे। अभी कांग्रेस-भाजपा की टूट फूट से निकले लोगों के जमावड़े से यह आश्वासन नहीं मिलता कि प्रदेश को कुशल नेतृत्व देने की कोई क्रांति हो रही है। भले ही 'मेरा रंग दे बसंती चोला' की धुन में देशभक्ति की राह दिखाते हुए केजरीवाल भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प दोहराते हैं या यह दावा भी कर देते हैं कि पंजाब में उनकी सत्ता ने मात्र बीस दिनों में भ्रष्टाचार का सारा गूदड़ हटा दिया, लेकिन हिमाचल को वह संबोधित नहीं कर पाए। हिमाचल का दर्द वैयक्तिक न होकर सामूहिक वेदना के प्रश्नों से मुखातिब होता है। यह हिमाचल के अस्तित्व की बात है, जो छोटी-छोटी रियासतों से उभर कर पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ संगठित होती है। हिमाचल की पृष्ठभूमि केवल जमीन या भौगोलिक संरचना नहीं, पहाड़ी अस्मिता के जज्बात हैं। यहां भूतपूर्व सैनिकों, पेंशनरों व कर्मचारियों की संवेदना बसती है, तो युवाओं की महत्त्वाकांक्षाएं व आधुनिक हिमाचल के संकल्प थिरकते हैं। क्या केजरीवाल की अदायगी ने इस संवेदना को छुआ या कोई पेशकश करते हुए यह बताया कि पंजाब को बड़े भाई की हैसियत का अनुसरण करके पहाड़ी राज्य को नया क्या हासिल होगा। दरअसल हिमाचल के मंच आप के लिए उतना खुला वातावरण या आकाश नहीं दे सकते, जितना पार्टी को पंजाब मंे हासिल हुआ।
मंडी रैली में महिलाओं की गिनती अगर कम रही, तो संगठनात्मक तौर पर आप के लिए हर कूचे तक पहंुचना इतना भी आसान नहीं। सेरी मंच का कलात्मक पक्ष अपना आशीर्वाद दे सकता है या यहां से ऊंची बात कहीं जा सकती है, लेकिन हिमाचल के मूड और मौसम को समझने के लिए सिरमौर से भरमौर और चिनौर से किन्नौर तक की भाषा, भूगोल, संस्कृति, इतिहास और मनोवृत्तियों को पढ़ने के लिए संगठन चाहिए। भीड़ तो तपोवन व शिमला के विधानसभा परिसरों तक भी आती है। इस बार सवर्ण आयोग के समर्थकों का विधानसभा सत्रों के दौरान, रैली मंे दर्ज आवेश कहीं सियासी उलटफेर की चुनौती तक जा पहुंचा था, लेकिन एक चुनावी गर्जना या नई पार्टी की घोषणा ने पूरे जमावड़े को तितर-बितर कर दिया। इसलिए सेरी मंच के जमावड़े में आप को ढूंढना अभी बाकी है। प्रदेश में जातिवाद, क्षेत्रवाद और परिवारवाद के कई नकारात्मक पक्ष हैं और जिनसे जनता निजात चाहती है। जनता अपने नेताओं, जनप्रतिनिधियों और सरकारों के सियासी व प्रशासनिक रवैये से दूर नया विकल्प भी चाहती है। प्रदेश के सरकारी ढांचे से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में आप जैसी पार्टी को आजमा सकती है, लेकिन मंडी की रैली में आम आदमी पार्टी के संबोधन से फिलहाल जनता की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो रही हैं।