यानि साफ शब्दों में आप यह कह सकते हैं कि चीनी सरकार द्वारा कारोबारी नियमों में सख्ती की वजह से वहां से विदेशी कंपनियां बाहर निकल रही हैं. पिछले हफ्ते ही हांगकांग स्थित ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन में नियमों के लगातार बदलाव की वजह से लंबे समय की वृद्धि और मुद्रास्फीति पर उसके प्रभाव का आकलन करना कठिन हो गया है. वहीं दूसरी ओर कॉरपोरेट सेक्टर के लिए कड़े नियमों की व्यवस्था भी इसके लिए जिम्मेदार है. आपको बता दें चीन और हांगकांग का एमएससीआई ईएम सूचकांक में लगभग 40 फ़ीसदी का योगदान है. वहीं भारत का इसमें तकरीबन 11 फ़ीसदी का योगदान है.
चीन में सरकारी कंपनियों के दबदबे की वजह से खराब हुआ उसका प्रदर्शन
चीन की रैंकिंग घटने के पीछे चीनी सरकार के सख्त नियम तो हैं ही लेकिन उसके साथ-साथ चीन में सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों का दबदबा भी इसके लिए एक बड़ी वजह है. बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सीएलएसए के आंकड़े कहते हैं कि कई उद्योगों में चीन की सबसे बड़ी कंपनियां एसओई हैं जो चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियां कहलाती हैं. इसे ऐसे समझिए की फार्च्यून ग्लोबल 500 में शामिल 124 कंपनियों में से 91 कंपनियां सरकारी स्वामित्व वाली हैं. एक से दो वर्ष की समय सीमा में चीन के शीर्ष सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों में 11 से 18 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. वहीं दूसरी तरफ अगर हम निजी क्षेत्र के कंपनियों पर नजर डालें तो उनमें 42 से 233 फ़ीसदी की तेजी दर्ज की गई है. इसके अलावा शीर्ष के 50 कंपनियों में एसओई और गैर एसओई के बीच बाजार पूंजीकरण का अंतर 45 और 55 फ़ीसदी है.
निजी क्षेत्र की कंपनियों के प्रदर्शन से भारतीय घरेलू बाजार को मजबूती मिली है
अगर हम भारत की बात करें तो यहां के बाजार पूंजीकरण में सरकारी कंपनियों का 10 फ़ीसदी योगदान है. जबकि निजी कंपनियों का 90 फ़ीसदी योगदान है. मौजूदा समय में भारत ईएम के 4 सबसे बड़े बाजारों में एकमात्र बाजार है जहां फंडों ने ओवरटेक रुख अपनाया है. बाजार के रुख को समझने वाले जानकारों का मानना है कि भारत की 20 से 30 सबसे बड़ी जिनमें ज्यादातर निजी क्षेत्र की कंपनियां हैं उनके प्रदर्शन की वजह से घरेलू बाजार को काफी मजबूती मिली है. यही नहीं मार्शल इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी सौरव मुखर्जी मीडिया से बात करते हुए कहते हैं कि मौजूदा समय में करीब 15 से 20 कंपनियों का भारत की 90 फ़ीसदी मुनाफा वृद्धि में बड़ा योगदान है और यह कंपनियां लगातार 20 फीसदी की दर से इस लाभ को आगे बढ़ा रही हैं.
भारत निवेश के लिए पहले से ज्यादा तैयार
जहां एक तरफ चीन से विदेशी कंपनियां बाहर निकल रही हैं वहीं भारत विदेशी निवेश के लिए पहले से ज्यादा बेहतर तरीके से तैयार है. अंतरराष्ट्रीय सलाहकार कंपनी डेलाय की तरफ से पिछले हफ्ते मंगलवार को एक रिपोर्ट जारी की गई जिसमें कहा गया कि अमेरिका और ब्रिटेन की कंपनियां सिंगापुर और जापान के मुकाबले भारत के बाजार को ज्यादा बेहतर मानती हैं. इस रिपोर्ट का डाटा भारत के साथ सबसे मजबूत कारोबारी रिश्ते रखने वाले 4 देशों, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर और जापान शामिल है के 1280 बिजनेस लीडरों के बीच सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया गया है. यह बिजनेस लीडर्स मैन्युफैक्चरिंग, सेवा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, वित्तीय सेवा, रियल स्टेट क्षेत्र और तकनीकी कंपनियों के प्रतिनिधि हैं.
चीन के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ रही है भारतीय अर्थव्यवस्था
बीते दिनों राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की एक रिपोर्ट आई थी जिसके आंकड़े बता रहे थे कि वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी रिकॉर्ड तोड़ 20.1 फ़ीसदी की दर से बढ़ी है. वहीं दूसरी ओर चीन की वृद्धि दर 2021 की अप्रैल-जून तिमाही में 7.9 फ़ीसदी रही यानि चीन के मुकाबले भारतीय अर्थव्यवस्था पहली तिमाही में दोगुने से अधिक तेजी से बढ़ी है. अगर इसी तरह स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में भारत फिर से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगी. कोरोनावायरस महामारी के बाद भी भारत की बेहतर आर्थिक स्थिति बताती है की मौजूदा सरकार की नीतियां और नियम सही दिशा में कार्यरत हैं.