कमलनाथ के नेतृत्व में कितनी मुश्किल है कांग्रेस की राह, राहुल गांधी की टीम सदस्य भी हो रहे हैं उपेक्षा का शिकार
राहुल गांधी की टीम सदस्य भी हो रहे हैं उपेक्षा का शिकार
दिनेश गुप्ता।
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) हिन्दी पट्टी के उन चुनिंदा राज्यों में एक है, जहां कांग्रेस पार्टी (Congress) की सत्ता में वापसी की संभावनाएं मौजूद रहती हैं. उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के परिणामों की धमक मध्यप्रदेश में भी सुनाई दे रही है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी (MP Congress) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) का नेतृत्व भी निशाने पर है. राज्य में कमलनाथ का नेतृत्व इतना लोकप्रिय नहीं है कि कांग्रेस अकेले उनके दम पर सत्ता में वापसी कर सके. युवा नेतृत्व भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित दिखाई दे रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्द्धन सिंह ने नसीहत देते हुए कहा कि अब जरूरत अठारह घंटे काम करने की है.
राज्य में पिछले चार दशक की कांग्रेस की राजनीति को देखा जाए तो दिग्विजय सिंह और कमलनाथ लगातार इसके केन्द्र में बने हुए हैं. मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की वजह भी ये दोनों ही नेता रहे. इन दोनों नेताओं के चलते ही माधवराव सिंधिया राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे. साल 2018 के विधानसभा चुनाव प्रचार में सिंधिया बड़ा चेहरा थे. वोटरों को यह उम्मीद भी थी कि कांग्रेस को बहुमत मिला तो राहुल गांधी अपने सबसे करीबी साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही राज्य के मुख्यमंत्री की कमान सौंपेगें. लेकिन, मुख्यमंत्री बन गए कमलनाथ. पंद्रह माह में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से नेताओं और वोटरों का मोह भंग हो गया. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ अपने बेटे नकुल नाथ को बड़ी मुश्किल से चुनाव जीता पाए थे.
जयवर्द्धन- नकुल से रेस में पिछड़ रहा युवा नेतृत्व
मार्च 2020 के राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अल्पमत में आ गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के 28 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे. सिंधिया के भाजपा में चले जाने के बाद कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं बचा जो वोटर को पार्टी के पक्ष में ला पाए. कमलनाथ राज्य की राजनीति में साल 2018 से ही सक्रिय हुए. इससे पहले वे दिल्ली से ही राजनीति करते थे. राज्य में कांग्रेस की राजनीति में परिवारवाद भी बड़ी समस्या है. सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी तो इसके पीछे दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्द्धन सिंह और कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ भी एक वजह माने गए. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ही 75 साल के हो चुके हैं. कांग्रेस की तुलना में भारतीय जनता पार्टी में नए नेतृत्व को लगातार अवसर मिल रहा है. लेकिन, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बेटों के चलते कांग्रेस में युवा नेतृत्व को लगातार हाशिए पर डालने के प्रयास चल रहे है.
पिछले दिनों विधायक जीतू पटवारी ने राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार किया तो विधानसभा के भीतर कमलनाथ ने उनका बचाव नहीं किया. कमलनाथ सत्ता पक्ष के साथ खड़े नजर आ रहे थे. अगले ही दिन जयवर्द्धन सिंह को सर्वश्रेष्ठ विधायक से सम्मानित किया गया तो आदिवासी वर्ग से आने वाले विधायक उमंग सिंघार ने कटाक्ष भरे अंदाज में ट्वीट पर बधाई दी. स्थितयां लगातार इस बात की ओर इशारा कर रहीं हैं कि कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर भारी असंतोष है. कमलनाथ एक साथ दो पद अपने पास रखे हुए हैं. वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के अलावा विधानसभा कांग्रेस विधायक दल के नेता भी हैं.
राहुल के टीम मेंबर हो रहे हैं उपेक्षा का शिकार
मध्यप्रदेश की राजनीति दो दलीय व्यवस्था पर आधारित है. कोई तीसरा दल अब तक उभर सामने नहीं आ पाया है. बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे दलों ने कांग्रेस के वोट काटने का काम कर सिर्फ भाजपा की राह आसान की. साल 2003 के बाद कांग्रेस लगातार पंद्रह साल तक सरकार से बाहर रही. साल 2018 में सरकार मिली तो अंतर्विरोधों के कारण चल नहीं सकी. संख्या बल के लिहाज से कांग्रेस बेहतर स्थिति में है, लेकिन नेतृत्व के रवैये के कारण दलबदल का खतरा अभी भी बना हुआ है. कांग्रेस में दूसरी पंक्ति के जो नेता हैं, उन्हें अपने क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया है. कांग्रेस के पूर्व राहुल गांधी की टीम के सदस्य माने जाने वाले विधायक मसलन जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल और उमंग सिंघार जैसे युवा चेहरे अपने आपको उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
कमलनाथ उन नेताओं पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं, जो कांग्रेस के किसी दूसरे नेता के करीब नहीं हैं. दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच भी दूरी दिखाई पड़ रही है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा समय न दिए जाने पर दिग्विजय सिंह जब धरने पर बैठे तो कमलनाथ ने उनका साथ नहीं दिया. उल्टे उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री से मिलने का समय उनसे पूछकर मांगना चाहिए था.
उप चुनाव में कमजोर रहा कांग्रेस का प्रदर्शन
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे अरुण यादव से भी कमलनाथ की दूरी बनी हुई है. खंडवा लोकसभा के उपचुनाव में कमलनाथ की जिद के चलते ही यादव को टिकट नहीं मिला था. टिकट कटने की वजह बताई गई सर्वे में जीत की संभावना नगण्य आई है. कांग्रेस पार्टी ने राजनारायण पूनिया को टिकट दया. वे भी हार गए. मार्च 2020 के बाद राज्य में 31 विधानसभा सीटों के उप चुनाव हुए. कांग्रेस सिर्फ दस सीट ही जीत पाई. एक लोकसभा के उपचुनाव के नतीजे भी भाजपा के पक्ष में गए. विपरीत स्थितियों के बाद भी कमलनाथ को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का समर्थन है. राहुल-प्रियंका इस कारण ही मध्यप्रदेश के मामले में दखल नहीं देते. कमलनाथ की पहचान इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र के रूप में रही है.