अचानक भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया मे सबसे तेज़ रफ़्तार कैसे पकड़ ली, चीन क्यों रह गया पीछे?
भारतीय अर्थव्यवस्था
संयम श्रीवास्तव।
कोरोना महामारी से जितनी तेजी से भारत बाहर आ रहा है, उतनी ही तेज अर्थव्यवस्था में तेजी भी आ रही है. रिपोर्ट्स कहती हैं कि निवेशकों और उद्योग जगत की सकारात्मकता के साथ सरकारी खर्च के चलते भारत वित्त वर्ष 2021-22 में लगभग 10 फ़ीसदी की वृद्धि दर्ज कर सकता है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं ने भी भारत की विकास दर को इसी दायरे में रखा है. अब सवाल उठता है कि आखिरकार भारत की इस बढ़ती अर्थव्यवस्था के पीछे राज क्या है? दरअसल त्योहारों का सीजन शुरू होने से भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर सबसे तेज ग्रोथ करने वाली अर्थव्यवस्था की राह पर लौट आई है.
भारत में त्योहारों का सीजन गणेश चतुर्थी से शुरू होता है और दीपावली तक बना रहता है. इस बीच बाजार में मांग बढ़ जाती है और लोग जमकर खरीदारी करते हैं. धनतेरस और दीपावली जैसे त्योहारों के दिन तो खरीदारी आसमान छूती है. जब मांग बढ़ती है तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी काफी मजबूती देखी जाती है. भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि देश में विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डालर के साथ सर्वकालिक उच्च स्तर पर है. पिछले वित्त वर्ष में 82 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी एक रिकॉर्ड रहा है. एक तरफ जहां भारत की स्थिति बेहतरी की ओर जा रही है, वहीं पड़ोसी देश चीन की आर्थिक स्थिति अब नासाज़ है. चीन के सकल घरेलू उत्पाद में जहां पहली तिमाही में 18.3 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी, लेकिन दूसरी तिमाही में वह घटकर 7.9 फीसदी रह गई है. वहीं तीसरी तिमाही में हालत और खराब हो गई और वह घटकर केवल 4.9 फीसदी रह गई है.
दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था भारत
इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोनावायरस ने भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तोड़ दिया था. लेकिन अब भारत आर्थिक तौर पर तेजी से आगे की ओर बढ़ रहा है. बीते दिनों ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अनुमान लगाया था कि साल 2022 में दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था के रूप में भारत सबसे आगे रहेगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक भारत में यह वृद्धि दर 8.5 फ़ीसदी तक पहुंच सकती है. जबकि अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा, रूस जैसे देशों में यह दर 6 फ़ीसदी से कम रहने का अनुमान है. साल 2020 में कोरोनावायरस की वजह से ही भारत की आर्थिक वृद्धि दर -7.3 फ़ीसदी तक पहुंच गई थी. लेकिन अब साल 2021 में इसके सुधर कर 9.5 फ़ीसदी तक पहुंचने का भी अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ही लगाया है.
इन 3 कारणों से बैठ गई चीन की अर्थव्यवस्था
चीन की अर्थव्यवस्था के पिछड़ने की सबसे बड़ी वजह चीन की नई आर्थिक नीतियों को माना जा रहा है. चीन सरकार के 3 नए नियम बनाए हैं. जिन्होंने उसके निर्माण क्षेत्र के उन तमाम पुराने नीतिगत तरीकों को बदल दिया, जिससे दो दशक में चीन में तेजी से विकास हुआ था. क्या हैं यह तीन नए नियम- पहला- परिसंपत्ति की तुलना में देनदारियों के लिए 70 फ़ीसदी की सीमा तय की गई. इसके साथ ही अनुबंध पर भेजी गई परियोजनाओं के अग्रिम को इससे बाहर रखा गया. दूसरा- इक्विटी पर शुद्ध कर्ज के मामले में 100 फ़ीसदी तक की सीमा तय की गई. तीसरा- नकदी और अल्पावधि की उधारी का अनुपात कम से कम एक रखने की बात कही गई. कहा जा रहा है कि लंबी अवधि में यह चीन के लिए बहुत फायदे पहुंचाने वाला है.
पर वर्तमान में चीन के बड़े व्यापारी फिलहाल इन नए नियमों के पालन करने की स्थिति में नहीं हैं और उनकी इसी अक्षमता के कारण देश में नया निवेश नहीं आ रहा है. शी जिनपिंग के यह तीन नए नियम ऐसे हैं जैसे वह जानबूझकर अपने बड़े एसेट्स को बर्बाद करने पर तुले हैं. चीन की आर्थिक नीति में यह नए बदलाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी काफी असर डालेंगे. कई वर्षों से चीन की आर्थिक वृद्धि ने वैश्विक आर्थिक वृद्धि में लगभग 30 फ़ीसदी का योगदान दिया है. अगर चीन की सरकार अपने इन नए नीतियों के साथ आगे बढ़ती है तो आने वाले समय में चीनी अर्थव्यवस्था का धीमापन भारत सहित दुनिया को चोट पहुंचा सकता है.
भारतीय बाजार में मांग बढ़ी है
भारत में इस वक्त डिमांड तेजी से बढ़ रही है. चाहे वह रोजमर्रा के सामान की डिमांड हो या फिर गाड़ियों की सब में बढ़ोतरी देखी जा रही है. भारतीय बाजार में गाड़ियों की जबरदस्त मांग बनी हुई है. जबकि चिप की कमी के कारण कुछ कंपनियों ने अपने प्रोडक्शन में कमी कर दी है. इस वजह से भारतीय बाजार में एसयूवी गाड़ियों की मांग को देखते हुए कुछ मॉडलों की वेटिंग पीरियड 1 साल से भी ज्यादा हो गई है.
जब डिमांड बढ़ती है तो सप्लाई भी बढ़ानी पड़ती है और सप्लाई का बढ़ना मतलब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी. बीते महीने ही मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर के कम्पोजिट परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) ने लगातार दूसरे महीने भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बढ़ोतरी दिखाई थी. सबसे बड़ी बात है कि यह बढ़त कंपनियों की इनपुट लागत बढ़ने और कच्चे माल की कमी के बावजूद भी बनी हुई है.
अगस्त में अगर इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन देखें तो इसमें 11.9 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जबकि इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंडेक्स में 40 फ़ीसदी हिस्सेदारी वाले इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर का आउटपुट 11.6 फ़ीसदी तक बढ़ा है. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में जब खरीफ की फसल उतरेगी तो इसके बाद ग्रामीण आय और मांग तेजी से बढ़ेगी.
निर्यात के साथ-साथ बैंकों की क्रेडिट में भी बढ़ोतरी देखी गई है
भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के पीछे तेजी से बढ़ते निर्यात का भी हाथ है. सितंबर महीने में भारत का एक्सपोर्ट 23 फ़ीसदी तक बढ़ गया. इसकी अगर अगस्त के आंकड़ों से तुलना करें तो इसमें 1.6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट भारत से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, कॉफी, इंजीनियरिंग के सामान और रत्न एवं जवाहरात हुए हैं.
जबकि वहीं भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के पीछे बैंकों की क्रेडिट में बढ़ोतरी भी एक वजह है. बीते महीने ही बैंक क्रेडिट में 6.5 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इससे पहले अगस्त के महीने में भी बैंकों ने जमकर लोन बांटा था. यही वजह रही की अगस्त महीने में बाजार में जरूरत से ज्यादा लिक्विडिटी बनी रही. बैंक क्रेडिट में सुधार को देखकर लगता है कि आने वाले त्योहारों के समय भी बैंक लोन वितरण करने में पूरी तरह से सक्षम हैं.
राजकोषीय घाटा तेजी से घटा है
अप्रैल और अगस्त में राजकोषीय घाटा पिछले साल के मुकाबले 8.7 लाख करोड़ से घटकर 4.68 लाख करोड़ तक पहुंच गया है. सरकारी खर्च के कारण कैपिटल एक्सपेंडिचर में 28 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है. जाहिर सी बात है राजकोषीय घाटे की प्रवृत्ति सरकारी खर्च पर ही निर्भर करेगी अगर सरकार ज्यादा खर्च करती है तो खपत और विकासदर में वृद्धि होगी. यानि कि अंत में आर्थिक विकास दर में भी तेजी आएगी.
इसके साथ ही कर संग्रह भी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. अप्रैल से अगस्त तक के महीने में सकल कर संग्रह पिछले साल के 5.4 लाख करोड़ के मुकाबले 8.5 लाख करोड़ रुपए रहा. यानि कि पिछले साल के मुकाबले इस साल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में 70 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.