8 साल में एक दूसरे के कितना नज़दीक आए पीएम मोदी और मुसलमान?

केंद्र में मोदी सरकार (Modi Government) को बने हुए 8 साल पूरे हो चुके हैं. इस उपलब्धि का जश्न देश भर में मनाया जा रहा है

Update: 2022-05-26 08:34 GMT
यूसुफ़ अंसारी | 
केंद्र में मोदी सरकार (Modi Government) को बने हुए 8 साल पूरे हो चुके हैं. इस उपलब्धि का जश्न देश भर में मनाया जा रहा है. देश में विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाली मोदी सरकार पर मुसलमानों (Muslim Community) के साथ सौतेला बर्ताव के भी आरोप लग रहे हैं. ऐसे में इस बात का विश्लेषण करना भी ज़रूरी हो गया है कि पिछले आठ साल में पीएम मोदी और मुसलमानों के बीच की दूरी कितनी कम हुई है और उनके बीच नज़दीकियां कितनी बढ़ीं हैं दरअसल साल 2014 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देकर सत्ता में आए थे. यूं तो बहुत हुई भ्रष्टाचार की मार, अबकी बार मोदी सरकार, 'बहुत हुआ महिलाओं पर अत्याचार, जैसे और भी कई मुद्दे प्रमुखता से उठे थे.
लेकिन पूरा चुनाव 'सबका साथ, सबका विकास' नारे को केंद्र में रखकर ही लड़ा गया था. ये राजनीतिक रूप से बहुत आकर्षक नारा था. इसने उम्मीद जगाई थी कि मोदी समाज के सब वर्गों को साथ लेकर चलेंगे. पांच साल बाद 2019 में दोबारा सत्ता में आने पर नरेंद्र मोदी ने अपने इस पुराने नारे में 'सबका विश्वास, सब का प्रयास' जोड़ दिया था. उस समय केंद्र की मोदी सरकार के सामने मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने की बड़ी चुनौती थी.
मुसलमानों के खिलाफ बन रहा है माहौल
आज जब मोदी सरकार अपनी आठवीं वर्षगांठ के मौके पर देश भर में जश्न मनाने की तैयारियों में जुटी हुई है तो वाराणसी की ज्ञानवापी और मथुरा की शाही ईदगाह से लेकर कई और मस्जिदों पर हिंदू संगठन अपना दावा ठोक रहे हैं. ताजमहल और कुतुब मीनार जैसी ऐतिहासिक महत्व की इमारतें भी इनके निशाने पर हैं. पिछले कुछ महीनों में देश के कई हिस्सों में हुई धर्मसभा में मुसलमानों के कत्लेआम के लिए लोगों को उकसाया गया. अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों के मानवाधिकार संगठन भारत में मुसलमानों की सुरक्षा और उनके भविष्य को लेकर लेकर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. इन हालातों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से एक बार भी ऐसा बयान नहीं आया जो देश के सबसे बड़े धार्मिक समुदाय की सुरक्षा को लेकर भरोसा देता हो. ऐसे हालात में मुस्लिम समाज की चिंताएं और उनके निवारण पर भी बात करना ज़रूरी हो जाता है.
सरकार में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व
मोदी सरकार में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व ना के बराबर है. सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हैं. उनके पास अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय है. हालांकि मोदी के 8 साल के कार्यकाल में बहुत थोड़े समय के लिए 3 मुस्लिम मंत्री रहे हैं. क़रीब डेढ़ साल तक दो मुस्लिम मंत्री रहे. लेकिन पिछले 4 साल से मुख्तार अब्बास नक़वी मोदी सरकार में अकेले मुस्लिम मंत्री हैं. 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने नजमा हेपतुल्ला को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया था. तब वो मोदी सरकार में अकेली मुस्लिम मंत्री थीं. 2 साल पूरे होने के बाद जुलाई 2016 में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में एमजे अकबर को भी राज्य मंत्री बनाया गया. लेकिन क़रीब महीने भर बाद ही नजमा हेपतुल्ला को मणिपुर का राज्यपाल बना दिया गया. उसके बाद मोदी सरकार में दो मुस्लिम मंत्री रह गए थे. 2018 में मी टू अभियान के तहत कई महिला पत्रकारों ने एमजे अकबर पर यौन शोषण के आरोप लगाए. आरोपों से घिरने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. तब से मुख्तार अब्बास नक़वी मोदी सरकार में अकेले मुस्लिम मंत्री हैं.
संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व
हाल ही के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद और विधानसभाओं में बीजेपी की ताक़त का आंकड़ा पेश किया है. इसके मुताबिक़ देशभर में बीजेपी के करीब 400 सांसद और 1300 से ज़्यादा विधायक हैं. इस हिसाब से देखें तो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद और विधानसभाओं में मुसलमानों की ताकत घटी है. 2014 और 2019 में बीजेपी के टिकट पर एक भी मुस्लिम सांसद जीतकर लोकसभा में नहीं पहुंचा. इससे पहले 1998 से लेकर 2009 तक कम से कम एक मुस्लिम सांसद बीजेपी के टिकट पर जीतता रहा था. 1998 में यूपी के रामपुर से मुख्तार अब्बास नकवी जीते थे, तो 1999 में शाहनवाज हुसैन बिहार के किशनगंज से जीते थे. 2004 में शाहनवाज हुसैन हार गए थे. लेकिन 2006 में वो भागलपुर से उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. 2009 में भी वह वहीं से जीते, लेकिन 2014 में हार गए. 2019 में उन्हें टिकट ही नहीं दिया गया. उस चुनाव में यूं तो बीजेपी ने 8 मुसलमानों को टिकट दिया था. लेकिन इनमें जीतने वाला कोई नहीं था. सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले मोदी मुसलमानों को टिकट देने में अपने ही नारे को भूल गए. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी ने किसी भी राज्य की विधानसभा चुनाव में किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया.
धार्मिक मामलों में दखलंदाजी का आरोप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मुस्लिम समाज के बड़े तबके की तरफ से उनके धार्मिक मामलों में गैरजरूरी दखलंदाजी का आरोप लगाया जाता रहा है. मसलन ट्रिपल तलाक के खिलाफ बने कानून को इसी नजर से देखा जाता है. हालांकि ट्रिपल तलाक को मुस्लिम समाज में ही ग़लत और कुरान के खिलाफ माना जाता है. ऐसे में मुस्लिम समाज के धार्मिक रहनुमाओं की जिम्मेदारी इसे खत्म करने की थी, लेकिन वो इसे ख़त्म करने में नाकाम रहे. कुछ मुस्लिम महिलाओं के सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद सरकार को इसमें दखल देना पड़ा. मुस्लमि समाज के बड़े तबके की तरफ से इसका स्वागत किया गया. लाउडस्पीकर से अज़ान के मामले में भी देशभर में माहौल गरमाया. लेकिन इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से मुस्लिम समाज में गलत संदेश गया.
मुसलमानों की लिंचिंग पर चुप्पी
2016 में केरल के कोझिकोड़ में हुई भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मुसलमानों से नफरत न की जाए, बल्कि उन्हें भी बराबरी का सम्मान और दर्जा दिया जाए. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यही नीति थी. ठीक इसके अगले दिन उत्तर प्रदेश के दादरी के एक गांव में घर में गोमांस रखे जाने के शक में अखलाख की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. उसके बाद इसी तरह की खबरें देश के कई हिस्सों से आईं. झारखंड में तो लिंचिंग के दोषियों को ज़मानत मिलने पर केंद्रीय मंत्री ने आरोपियों का फूल मालाएं पहनाकर स्वागत किया. दादरी कांड के एक आरोपी की मौत के बाद उसके शव को तिरंगे में लपेटकर अंतिम संस्कार किया गया. हाल ही में हरिद्वार रायपुर और दिल्ली में धर्म संसद के नाम पर कई तथाकथित साधु-संतों ने मुसलमानों के नरसंहार के लिए लोगों को उकसाने वाले भाषण दिए लेकिन इन सब पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक शब्द भी नहीं कहा. इसको लेकर उनकी तीखी आलोचना भी हुई है.
कैसा मुसलमान चाहते हैं मोदी?
2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने कार्यक्रम में कहा था कि वो भारतीय मुसलमानों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर देखना चाहते हैं. उनके इस बयान की तब काफी तारीफ हुई थी. तब उम्मीद की जी रही थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद शायद मोदी मुसलमानों और बीजेपी के बीच पहले से चली आ रही खाई को पाटने की कोशिश करेंगे. लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद इस विषय में कोई चर्चा ही नहीं हुई. मोदी सरकार के दौरान पद्म सम्मान हासिल करने वालों की फेहरिस्त में मुसलमानों की संख्या बढ़ी है. समाज में बेहतरीन करने वाले कई ऐसे गुमनाम लोगों को इन सम्मानों से नवाजा गया है, जिन्हें सम्मान मिलने से पहले लोग जानते तक नहीं थे. अपने मन की बात कार्यक्रम में भी मोदी ने कई बार मुस्लिम प्रतिभाओं का ज़िक्र करके उन्हें मान सम्मान के साथ उनके हुनर को भी बढ़ावा दिया है. हाल ही में गुजरात के एक मुस्लिम लाभार्थी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बात करते हुए मोदी काफी भावुक हो गए थे.
मुसलमानों के विकास में अल्पसंख्यक मंत्रालय की भूमिका
देश में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए 2006 में यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय का गठन किया था. केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद इस मंत्रालय ने अल्पसंख्यक समुदाय के विकास में अहम भूमिका निभाई है. नजमा हेपतुल्ला के मंत्री रहते यह मंत्रालय मोदी और मुसलमानों के बीच एक सेतु की तरह काम कर रहा था. उस समय मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को रोजगार से जोड़ने के लिए विशेष योजना चलाने के लिए मंत्रालय की तरफ से नजमा हेपतुल्ला ने प्रधानमंत्री से 1000 करोड़ रुपए का बजट मांगा था. तब मोदी ने इस योजना के लिए 1500 करोड़ रुपए दिए थे. बाद में इस योजना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तारीफ हुई. उनके हटने के बाद मुख्तार अब्बास नकवी ने भी इस योजना को आगे बढ़ाया. मदरसों के आधुनिकीकरण के साथ ही इनमें पढ़ने वाले बच्चों को रोज़गार से जोड़ने के लिए 'सीखो और कमाओ' और उस्ताद जैसी योजना शुरू हुई. साथ ही मुस्लिम लड़कियों में नेतृत्व क्षमता पैदा करने के लिए 'नई रोशनी' नाम से एक योजना भी शुरू की गई.
'हुनर हाट' ने दी दस्तकारों को संजीवनी
देश में किसानों के बाद दस्तकार सबसे बड़ी संख्या में हैं. तेजी से बदलती तकनीक की वजह से भारतीय दस्तकारों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हुई है. अपने दम पर नई तकनीक के साथ कदमताल ना मिला पाने की वजह से इनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया था. ऐस में मोदी सरकार ने हुनर हाट नाम से देश भर में मेलों का आयोजन किया. इनके ज़रिए गांव देहात में रहने वाले दस्तकारों को उनके बनाए सामान के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार मुहैया कराया.
दस्तकारों में मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है. इस लिहाज से देखा जाए तो मध्यम और निम्न मध्यमवर्गीय दस्तकारों को सरकार की इस योजना से बहुत फायदा हुआ है. इससे मुस्लिम समाज के दस्तकारों को संजीवनी मिली है. लकड़ी की नक्काशी का काम हो या मिट्टी के बर्तन बनाने का या फिर बेंत का फर्नीचर या फिर इन जैसे तमाम काम करने वाले लोगों को मोदी सरकार की हुनर हाट योजना से नई जिंदगी और नए आसमान में उड़ान भरने का हौसला मिला है.
इस विश्लेषण से पता चलता है कि हिंदूवादी संगठनों के मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे बयानों की वजह से मुस्लमि समाज में डर का माहौल बना है. वहीं सरकार की योजनाओं से मुस्लिम समाज के बड़े हिस्से को फायदा भी पहुंचा है. लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार और मुस्लिम समाज के बीच एक खाई लगातार बनी हुई है. इस खाई को पाटने की कोशिश नहीं हो रही है. न सरकार की तरफ से और न ही मुस्लिम समाज की तरफ से. ऐस में अहम सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार और मुस्लिम समाज नदी के दो किनारों की तरह हमेशा एक दूसरे से दूर रहेंगे या फिर इनके बीच की दूरी को कम करने के लिए एक पुल बनाने की कोशिश होगी? उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार के दूसर कार्यकाल के बाकी बचे दो साल में इस दिशा में कोई ठोस पहल होगी.

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