थाली पर मार: कोरोना संकट के दौर में महंगाई की चोट

त्योहारों से पहले खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल उपभोक्ताओं की बड़ी चिंता के रूप में सामने आया है।

Update: 2020-11-05 05:09 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। त्योहारों से पहले खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल उपभोक्ताओं की बड़ी चिंता के रूप में सामने आया है। खासकर आलू-प्याज के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि परेशान करने वाली है जो कि गरीब व निम्न-मध्यवर्गीय परिवारों में न्यूनतम पोषण का जरिया रहा है। यह माना जाता है कि बाजार में सब्जियों के दाम पहुंच में न हों तो आलू-प्याज से काम चलाया जा सकता है लेकिन ये गरीब की थाली से दूर हो रहे हैं। आखिर बेलगाम होती कीमतों की असली वजह क्या है? निस्संदेह कुछ प्याज उत्पादक राज्यों में बारिश से फसलें प्रभावित हुई हैं, मगर कीमतों में बड़ा उछाल इसकी तार्किक व्याख्या नहीं करता। बताते हैं कि बीते एक साल में आलू के दामों में बयानवे फीसदी और प्याज के दामों में चवालीस फीसदी उछाल आया है।

कमोबेश गेहूं को छोड़कर तमाम खाद्य वस्तुओं के फुटकर दामों में खासी तेजी देखी गई है। चिंता का विषय यह है कि यह महंगाई ऐसे समय में बढ़ी है जब देश की अर्थव्यवस्था कोरोना संकट से उबर नहीं पायी है। करोड़ों लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा हुआ। बेरोजगारी की दर अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। ऐसे कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ी है, जिनके वेतन में कटौती की गई या उनकी नौकरियों चली गईं। कुल मिलाकर आम उपभोक्ता की क्रय शक्ति में गिरावट आई है। पूर्णबंदी के बाद बाजार खुल तो गये हैं लेकिन कारोबार में मंदी है।


लोग या तो पैसा खर्च करने में कतरा रहे हैं या उनकी आय का संकुचन हुआ है। ऐसे में आलू-प्याज जैसे आम आदमी की उपभोग की वस्तु की कीमतों में असामान्य उछाल दुश्वारियां बढ़ा रहा है। खासकर गरीबी तबके और निम्न-मध्यवर्गीय लोगों की मुसीबतों में इजाफा हो रहा है। हाल के वैश्विक आंकड़ों में भूख-कुपोषण की सूची में देश की जो शर्मनाक स्थिति नजर आयी थी, महंगाई उसमें इजाफा ही करेगी जो निश्चित रूप से हमारे नीति-नियंताओं की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। किसी सरकार के लिये ऊंची खाद्य मुद्रास्फीति एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आती है। यह समस्या तब जटिल हो जाती है जब अर्थव्यवस्था में पहले ही मंदी चल रही हो। सवाल है कि इस महंगाई की असल वजह क्या है? क्या मांग और आपूर्ति का असंतुलन है या फिर जमाखोरी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही है? दरअसल, आलू-प्याज ही नहीं, अन्य सब्जियां और खाद्य पदार्थों के दामों में भी तेजी देखी जा रही है। ठंड की दस्तक के साथ जिन सब्जियों के दामों में गिरावट आती थी, वह इस बार नजर नहीं आ रही है। जिससे आम आदमी की थाली में न्यूनतम पोषक तत्वों का संकट पैदा होने का खतरा बढ़ गया है। सरकार के आर्थिक सलाहकार कह रहे हैं कि सब्जी व खाद्यान्न की आपूर्ति सामान्य होने पर कीमतें फिर सामान्य हो जायेंगी। लेकिन आम लोगों की चिंता यह है कि जब किसान को उसके उत्पादों का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है और उपभोक्ता को बाजार में ऊंचे दामों पर सब्जियां व अनाज खरीदने पड़ रहे हैं तो फायदा किसको हो रहा है? क्या बाजार का नियामक तंत्र अपने दायित्व निभाने में विफल हो रहा है? क्यों सरकार पहले प्याज के निर्यात की अनुमति देती है और फिर उसे स्थगित करती है? क्यों केंद्र सरकार को प्याज भंडारण का थोक व खुदरा स्टाक फिर से निर्धारित करना पड़ा है? क्यों दैनिक उपभोग की वस्तुओं और आलू-प्याज से आवश्यक वस्तु संग्रहण अधिनियम का कवच हटाया गया? संग्रहण के स्टॉक की सीमा निर्धारित करने का मकसद साफ है कि जमाखोरी पर लगाम लगाने की कोशिश की गई है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम हटते ही सक्षम भंडारण वाले संपन्न लोगों द्वारा इन खाद्य पदार्थों का संग्रहण शुरू हो गया। यदि ऐसा है तो आने वाले दिनों में गरीब व निम्न- मध्यवर्गीय तबके की थाली पर संकट की आशंका बलवती होगी, जिसके बाबत सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा।

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