बर्मिंघम में हिमाचली गबरू को रजत

अंतरराष्ट्रीय मैत्री व भाईचारे के लिए शुरू की गई ओलंपिक खेलों के बाद फिर महाद्वीप स्तर पर भी चार साल के अंतराल पर एशियाई, यूरोपियन व अफ्रीकी आदि हर महाद्वीप ने अपनी-अपनी खेलों का आयोजन शुरू किया

Update: 2022-08-04 19:02 GMT

अंतरराष्ट्रीय मैत्री व भाईचारे के लिए शुरू की गई ओलंपिक खेलों के बाद फिर महाद्वीप स्तर पर भी चार साल के अंतराल पर एशियाई, यूरोपियन व अफ्रीकी आदि हर महाद्वीप ने अपनी-अपनी खेलों का आयोजन शुरू किया। अंग्रेजों के गुलाम रहे देशों ने भी चार साल के अंतराल वाली राष्ट्रमडल खेलों का आयोजन बहुत पहले 1930 में कनाडा के शहर हैमिल्टन से शुरू कर दिया था। पहले हैमिल्टन खेलों में छह देशों के 400 खिलाडिय़ों ने 59 स्पर्धाओं में अपना दमखम दिखाया था। विश्व युद्ध के कारण 1942 व 1946 के खेल आयोजित नहीं करवाए जा सके थे। 1930 से 1950 तक इन खेलों को ब्रिटिश एंपायर गेम्स, 1954 से 1966 तक ब्रिटिश एंपायर एंड कामनवैल्थ गेम्स, 1970 से 1974 तक ब्रिटिश कामनवैल्थ गेम्स तथा अब इन खेलों को कामनवैल्थ गेम्स या राष्ट्रमंडल खेलों के नाम से जाना जाता है। इन खेलों का मुख्यालय ब्रिटिश संयुक्त राजशाही है। 2022 खेलों से दो बार पहले भी बर्मिंघम शहर राष्ट्रमंडल खेलों का सभफल आयोजन कर चुका है। ओलंपिक, एशियाई व राष्ट्रमडल खेलों में जीते गए पदकों को विश्व एशियाई व राष्ट्रमंडल प्रतियोगिताओं के पदकों से अधिक ईनाम व सम्मान मिलता है क्योंकि गेम्स चार साल बाद व इनकी चैंपियनशिप दो साल बाद होती हैं। बर्मिंघम में चल रहे राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की भारोत्तोलन टीम ने पदक पर पदक जीतते हुए पदक तालिका में भारत को सम्मानजनक स्थिति में पहुंचा दिया है।

इसी टीम के सदस्य हमीरपुर जिला के पटनौंण गांव के विकास ठाकुर ने 96 किलोग्राम वर्ग में कुल 346 किलोग्राम वजन जिसमें स्नैच में 155 किलोग्राम व क्लीन व जर्क में 191 किलोग्राम उठा कर देश के लिए रजत पदक जीत कर भारत का शीष गर्व से और ऊंचा किया है। विकास के पिताजी ने पंजाब के लुधियाना में नौकरी करते हुए घर भी बना लिया है। विकास ठाकुर अपने पिता जी के साथ लुधियाना में बचपन से ही साथ रहे हैं। लुधियाना में भारोत्तोलन के गुर सीखकर बहुत कम उम्र में अपना पहला राष्ट्रमंडल खेलों का पदक 2014 में ही जीत लिया था। उसके बाद 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में एक बार फिर विकास ठाकुर ने भारत की झोली में एक और पदक डाला। उम्र के साथ-साथ शरीर में थड़े से बढ़े वजन को अवसर बना कर 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में एक बार फिर रजत पदक विजेता बनकर तीसरी बार अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध किया है। हमेशा हंसमुख चेहरा विकास ठाकुर की पहचान है। तनाव मुक्त ट्रेनिंग व प्रतियोगिता में भाग लेने वाला यह सफल खिलाड़ी युवाओं के लिए प्रेरणा देता है। कठिनाई में भी मजाकिया अंदाज में रहने वाले विकास ठाकुर ने भारोत्तोलन जैसे कठिन खेल को अपने लिए आसान बना दिया है। भारत की वायुसेना में वारंट आफिसर पद पर कार्यरत यह हंसमुख भारोत्तोलक अपने प्रदेश की सरकार से अपनों के बीच रह कर नौकरी चाहता है।
क्या हिमाचल प्रदेश सरकार देर बाद ही सही, विकास ठाकुर को सम्मानजनक नौकरी देने जा रही है। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर स्टार खिलाडिय़ों के साथ हिमाचल का नाम नहीं है। अपने ही प्रदेश में उन्हें न परिचय मिला न प्रश्रय। अच्छा नहीं लगता है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता बनने पर हमारे गबरू की पैरवी हिमाचल प्रदेश न करके कोई पड़ोसी राज्य करता है। पंजाब सरकार ने विकास ठाकुर को पचास लाख रुपए नगद ईनाम देने की घोषणा कर दी है। हिमाचल प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह अपनी नई खेल नीति को कागजों से नीचे धरातल पर उतार कर उस पर अमल भी करना होगा। तभी हम प्रतिभा पलायन को रोक सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के विद्यालयों व महाविद्यालयों में अच्छी खेल सुविधाओं के साथ-साथ ज्ञानवान प्रशिक्षक व पौष्टिक आहार का भी प्रबंध करना पड़ेगा। नौकरी में आने के बाद खिलाड़ी को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं की तैयारियों के लिए लगे प्रशिक्षण शिविरों को बिना टालमटोल के नियमों में बनती विशेष छुट्टियां ही समय पर हिमाचल के सरकारी विभाग दे दें तो भी हिमाचल प्रदेश की खेलों को गति मिल सकती है। विकास ठाकुर ने लगातार तीन राष्ट्रमंडल खेलों में अपना श्रेष्ठतम देते हुए अपना कर्म पूरा कर दिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार को भी चाहिए कि वह अपने सपूत के इस अद्भुत कारनामे पर सम्मानित करते हुए उसे हिमाचल प्रदेश में राजपत्रित अधिकारी की नौकरी दे। हिमाचल प्रदेश के लोग अपने पदक विजेता की जीत का जश्न मनाते हुए विकास ठाकुर, उनके प्रशिक्षक व परिवार को हार्दिक बधाई तथा आगामी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए शुभकामनाएं देते हैं। प्रदेश के अन्य खिलाड़ी भी विकास ठाकुर से सीख लेकर कड़ी मेहनत करते हुए शिखर को छू सकते हैं। सरकार का भी फर्ज है कि वह प्रदेश से खिलाडिय़ों के पलायन को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करे। अगर खिलाडिय़ों को प्रदेश में ही हर तरह की सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाएं, तो खिलाड़ी प्रदेश से पलायन नहीं करेंगे। हिमाचल के लिए यह अच्छा होगा।
भूपिंद्र सिंह
अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com

By: divyahimachal

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