हाईटैक महंगाई!

दरअसल यह हाईटैक महंगाई का युग है

Update: 2022-04-28 19:18 GMT

दरअसल यह हाईटैक महंगाई का युग है। सरकार ने हर क्षेत्र को जब हाईटैक कर दिया है तो महंगाई इससे अछूती कैसे रह सकती है? गरीब क्या इस महंगाई में जी नहीं रहा? बल्कि उसका गुजारा पहले से ज्यादा बेहतर ढंग से हो रहा है। एलपीजी में तो जितने सिलेडंर चाहो पूरा दाम देकर आराम से ले लो। डीजल में पांच रुपए प्रति लीटर क्या बढ़ाए कि विपक्ष ने और मीडिया ने महंगाई का बावेला मचाकर 'मार डाला-मार डाला' का नारा ही उछाल दिया है। एक्चुअली महंगाई पर बात करना आज का लेटेस्ट फैशन है। महंगी गाडि़यों में बैठे-बैठे दिखावे का रोना, रोना फैशन हो गया है। अभी छापा मारो करोड़ों का धन मामूली आदमी के पास निकल पडे़गा। रहा सवाल गरीब का तो वह तनिक भी विचलित नहीं है। उसकी आवश्यकताएं सीमित हैं। रोटी-मजदूरी मिल जाए तो उसे किसी से कोई शिकायत नहीं है। यह जो मध्यमवर्गीय लोग हैं न, जो हाईटैक हो गए हैं, महंगाई को बतौर वार्तालाप के काम में लेते हैं।

ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाएगा, माल ढुलाई महंगी होगी और आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ जाएंगे। ये चुनावी चालें हैं वरना गरीब को पूछता कौन है? बड़े आए हैं ये गरीब की खैर-खबर लेने वाले। गरीब इनका वोटर है। चुनाव प्रचार और हाईटैक हो जाएगा। पूरी पार्टी को चुनाव के लिए करोड़ों का बेजा रुपया और चाहिए। पूंजीपति जिंदाबाद, उन्हें और कोई ठेका, परमिट और खान आवंटन होगा और वे सारा चंदा वसूल लेंगे, मिनटों में। न सत्ताधारी कम और न विपक्षी। चोर-चोर मौसेरे भाई। सत्ता के लिए नई-नई चाल और नए से नया समीकरण।
बेमेल गठबंधन, लेकिन चुनाव को सामने देख एक चिलम पी रहे हैं। न्यूज चैनलों का तो हाल और भी बुरा है। एक बात पकड़ी और एक महिने तक तिल का ताड़ बनाते हैं। ज्योंही माल मिला और दूसरा राग अलापना शुरू कर देंगे। महंगाई को हाईटैक करने में इनका सबसे बड़ा हाथ है। मेरी राय में तो दो रुपए वाला पालक बीस रुपए में लाओ तो उसका स्वाद ही बदल जाता है। टनों आलू सड़ जाता है, लेकिन पच्चीस रुपए किलो का आलू लाकर उसके असली घी के परांठे बीस रुपए पाव के दही के साथ कौन खाता है? हम सभी तो खा रहे हैं, फिर यह महंगाई को लेकर हाय-तौबा क्यों? राजनेताओं का तो चरित्र ही दोगला है। जहां जैसे वक्तव्य की आवश्यकता होती है, वैसा ही बकने लगते हैं। सरकार हमें हाईटैक कर रही है और हमें इसमें भी गुरेज है, तो यह कैसे चलेगा? विकास कराना है तो हाईटैक होना ही पडे़गा। दरअसल हाईटैक कल्चर को विपक्ष ने हाईजैक कर लिया है और वह डीजल से अपनी टंकी फुल करके देश को इधर से उधर घुमा रहा है। रहा सवाल सरकार का, उसने तो कारण बता ही दिया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ोतरी होगी तो महंगाई बढ़ेगी ही बढ़ेगी। यदि यह बाजार मूल्य गिर गए तो हम भी हर चीज सस्ती कर देंगे। देखें तो, सरकार का तो दोष है ही नहीं वर्ना चुनाव सामने देखकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ा क्यांे मारती? थोड़ा अपने आप को उठावो, महंगाई का असर अपने आप कम हो जाएगा और जैसा मैेंने कहा कि यह हाईटैक युग की हाईटैक महंगाई है, इसका अपना मजा है, उसे आप जरूर लें।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक


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