बेबसी और लाचारी
यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया के सामने एक बार फिर बहुत बड़ा संकट पैदा कर दिया है। यूक्रेन झुकने को तैयार नहीं और रूस युद्धोन्माद में पिछले दस दिनों से बमबारी किए जा रहा है।
Written by जनसत्ता: यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया के सामने एक बार फिर बहुत बड़ा संकट पैदा कर दिया है। यूक्रेन झुकने को तैयार नहीं और रूस युद्धोन्माद में पिछले दस दिनों से बमबारी किए जा रहा है। यूक्रेन में हालात ऐसे हो गए हैं कि सब कुछ ठप पड़ा है। कई शहर वीरान हो चुके हैं। न जाने कितनी बस्तियां ध्वस्त हो चुकी हैं। अब तक कितने लोग मारे जा चुके हैं, सही-सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लोगों में भय समाया हुआ है कि अगर रूस ने किसी परमाणु संयंत्र पर बम बरसा दिया, तो न जाने कितनी तबाही मचेगी।
डर यह भी है कि जंग लंबी खिंची और इसमें कुछ और ताकतवर देश शामिल हो गए तो क्या पता परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हो और पूरा यूक्रेन ही तबाह हो जाए। इस भय से लोग अपना वतन छोड़ कर दूसरे देशों में शरण पाने निकल पड़े हैं। बताया जा रहा है कि अब तक करीब दस लाख लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं। दूसरे देशों के नागरिकों को वहां से निकालने की भगदड़ मची हुई है। मगर उन बेबस और लाचार लोगों का क्या, जो न तो अपना वतन छोड़ना चाहते हैं और चाहें भी तो नहीं छोड़ सकते हैं। उनके पास देश से बाहर निकलने के साधन नहीं।
जिन लोगों ने बड़े जतन से पाई-पाई जोड़ कर अपने सपनों के घर बनाए थे, उन्हें रूसी बमों से ध्वस्त होते अपनी आंखों से देख रहे हैं। युद्ध के इस माहौल में न तो दुकानें खुल पा रही हैं न बाहर से आवश्यक वस्तुओं की पहुंच सुनिश्चित हो पा रही है। लोग भूख-प्यास से तड़पने को मजबूर हैं। अस्पतालों का कामकाज भी ठप्प है। इस तरह गोलाबारी में घायल हुए लोगों को इलाज भी नहीं मिल पा रहा। न जाने कितने बच्चों ने अपने मां-बाप खो दिए होंगे। रूस और यूक्रेन के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है, मगर बेनतीजा।
किसी को समझ नहीं आ रहा कि यह जंग अभी और कितना खिंचेगी। इस तरह अभी और कितनी तबाही होगी। जिन देशों से इस युद्ध को रोकने की पहल करने की उम्मीद लगाई जा रही थे, वे यूक्रेन को आर्थिक मदद तो कर रहे हैं, पर युद्ध रोकने की कोई कारगर पहल नहीं दिखाई दे रही। झगड़ा केवल इतना है कि यूक्रेन अपने ढंग से अपनी व्यवस्था लागू करना चाहता है, वह अपने मन का साथी चुनना चाहता है, मगर रूस को यही बर्दाश्त नहीं। उसे यूक्रेन की आजादी पसंद नहीं। उसे वह अपने अधीन देखना चाहता है।
हर युद्ध इसी तरह तबाही के मंजर छोड़ जाता है। सनक में कोई जंग छेड़ तो देता है, अपनी ताकत प्रदर्शित करने के लिए गोले बरसाना तो शुरू कर देता है, पर खुद उसे भी नहीं पता होता कि जंग रुकेगी कब। जब एक बार युद्ध शुरू हो जाता है तो उसमें हारना कोई नहीं चाहता, किसी न किसी तरह उसे विजय ही चाहिए होती है।
इस सनक में वह अपने खतरनाक और घातक हथियार का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। वह इतना सोच सकने का विवेक भी नहीं बचा पाता कि उसकी वजह से मानवता को कितने घाव मिल रहे हैं। रूस तब तक पीछे नहीं हटेगा, जब तक कि यूक्रेन पीछे न हटे या उसे दबाने वाली दूसरी शक्तियां न मैदान में कूद पड़ें। मगर इस सनक में जो जानें चली गर्इं, इंसानियत को जो जख्म मिले, उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी।