सेहत का सवाल
एक बार फिर शिद्दत से विश्व स्वास्थ्य संगठन के ढांचे में बदलाव की जरूरत महसूस की जाने लगी है।
एक बार फिर शिद्दत से विश्व स्वास्थ्य संगठन के ढांचे में बदलाव की जरूरत महसूस की जाने लगी है। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने शंघाई सहयोग संगठन देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में इस जरूरत को रेखांकित किया। कोरोना से उपजे वैश्विक संकट ने सभी देशों को सोचने पर मजबूर किया है कि भविष्य में अगर इस तरह की महामारियां पैदा होंगी, तो उनसे निपटने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं। शंघाई सहयोग संगठन देशों के स्वास्थ्य मंत्री भी इसी विषय पर विचार-विमर्श को जुटे थे। वैश्वीकरण के इस दौर में दुनिया की दूरियां मिट गई हैं। वाणिज्य, व्यापार, पर्यटन, विकास कार्यों से जुड़ी गतिविधियों आदि के चलते दुनिया के सभी देशों में परस्पर आवाजाही बढ़ी है।
ऐसे में अगर कोई खतरनाक विषाणु पैर पसारता है, तो देखते-देखते दुनिया भर में उसका प्रभाव नजर आने लगता है। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई विषाणुओं के प्रभाव दुनिया भर में देखे गए। उनमें कोरोना विषाणु ने सबसे अधिक तबाही मचाई। इसके चलते पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है। अभी उस पर काबू नहीं पाया जा सका है। उसके बदलते स्वरूप दुनिया के सामने चुनौती बने हुए हैं। इससे निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की अहम भूमिका हो सकती है, मगर उसकी नीतियां सभी देशों के लिए समान न होने के कारण उसकी भूमिका प्रभावी नहीं हो पाती। इसलिए उसके वर्तमान ढांचे को बदलने की जरूरत रेखांकित की जा रही है।
सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संगठन इसीलिए प्रभावी भूमिका निभा पाते हैं कि उनके पास शक्तियां अधिक हैं और उनकी नीतियां सभी सदस्य देशों के लिए समान रूप से लागू हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी इन संस्थाओं की तरह शक्तिशाली बनाने की मांग की जाती रही है। कोरोना महामारी के बाद इस संगठन की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे। दरअसल, कोरोना विषाणु के चीन की वुहान प्रयोगशाला से फैलने का तथ्य उजागर है। मगर चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोप हैं कि उन्होंने दुनिया के देशों को इस विषाणु की प्रकृति और उससे पैदा होने वाले खतरों के बारे में समय रहते आगाह नहीं कराया। स्वास्थ्य संगठन को चाहिए था कि वह फौरन एहतियाती कदम उठाता और दुनिया भर में इससे बचाव संबंधी अभियान छेड़ने की हिदायत देता, मगर वह काफी समय तक चुप्पी साधे रखा। इसलिए उस पर शक जाहिर किया जाने लगा कि वह चीन का साथ दे रहा था। इस पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो सख्त कदम भी उठाए थे। अमेरिका की तरफ से मिलने वाले उसके कोष बंद कर दिए थे।
कहने को विश्व स्वास्थ्य संगठन का गठन दुनिया के तमाम सदस्य देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर बनाने के मकसद से किया गया था, मगर हकीकत यही है कि इसके लिए उसके पास पर्याप्त शक्तियां नहीं हैं। मसलन, अगर कोई देश अपने यहां का स्वास्थ्य संबंधी कोई तथ्य छिपाता या उसे विश्लेषण के लिए उपलब्ध कराने से इनकार करता है, तो वह उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता। इसी तरह उसके अन्य अधिकारों में भी बढ़ोतरी की जरूरत है। सभी सदस्य देशों के लिए उसकी नीतियां समान रूप से लागू होनी चाहिए, तभी वह कोरोना या भविष्य की महामारियों से लड़ने के लिए व्यावहारिक रणनीति पर काम कर सकता है। अज भी दुनिया की बड़ी आबादी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर है और महामारी के समय सबसे अधिक मार उसी पर पड़ती है। उस अबादी तक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान ढांचे में बदलाव की जरूरत है।