Health care in rural India: कोविड की दूसरी लहर के बीच गांवों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास
Health care in rural India
अमृत सागर मित्तल। Health care in rural India कोविड की दूसरी लहर ने देश में सुनामी की तरह दस्तक देते हुए हमें जैसे सुप्तावस्था में ही धर लिया। विश्वभर से संकेत मिल रहे थे कि कोरोना एक आक्रांता के रूप में वापस आ रहा है, परंतु ये अनुमान किसी को न था कि हम भी इससे इतनी बुरी तरह प्रभावित हो जाएंगे। अप्रैल के आखिरी काल से देश में कोरोना के प्रतिदिन साढ़े तीन से चार लाख के बीच मामले आ रहे हैं, वह भी तब जब हमारी कोरोना परीक्षण की व्यवस्था ज्यादा विस्तृत नहीं है।
उल्लेखनीय है कि कृषि प्रधान पंजाब और हरियाणा की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इन राज्यों में भी कोरोना के मामलों में निरंतर वृद्धि हुई है। इस संबंध में जारी किए जा रहे तमाम आंकड़ों को देखें तो कोविड के दैनिक बुलेटिन में ग्रामीण और शहरी मामलों को अलग-अलग करके नहीं दर्शाया जा रहा। यह तब हो रहा है जब कोविड मामलों के लिए राज्य सरकारें अस्पतालों और परीक्षण प्रयोगशालाओं पर निर्भर हैं, जो मामलों का संकलन करके इसकी रिपोर्ट नोडल एजेंसियों से साझा करती हैं और एजेंसी इसे आगे सरकार को देती है। दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग केवल आपातकालीन स्थिति में ही अस्पतालों में पहुंच रहे हैं।
अधिकांश राज्यों को आभास ही नहीं हुआ कि उनके ग्रामीण इलाकों में यह संकट बढ़ रहा है। प्रचार और राजनीतिक रूप से हटकर देखें तो कोरोना वायरस ने हमें लिटमस टेस्ट में धकेल दिया है जिसमें हमें किसी भी कीमत पर पास होना होगा। हम परीक्षण और उपचार के लिए अपने लोगों को पीड़ित होते, मरते हुए नहीं देख सकते। केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह सही समय है कि वे अपना ध्यान ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वायरस के प्रबंधन और उसे काबू करने पर केंद्रित करें। अगर ग्रामीण भारत कोरोना के मकड़जाल में फंस गया तो यह हमारी कृषि अर्थव्यवस्था के लिए भी विनाशकारी होगा।
यदि राज्य सरकारें ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी परीक्षण सुविधाओं का विस्तार कर दें, तो उनसे कोरोना संक्रमण के मामलों के जो आंकड़े सामने आएंगे वो कई गुना अधिक और काफी चिंताजनक हो सकते हैं। मौजूदा संसाधनों का यदि ठीक से उपयोग किया जाता है, तो भी ये ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड संकट को कम करने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। इस संबंध में 23 जुलाई, 2019 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा को लिखित जवाब में सूचित किया था कि भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 25,743 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं, जबकि जरूरत 29,337 केंद्रों की है। ऐसे में आज इन पीएचसी को कोविड महामारी के चलते ग्रामीण लोगों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए तुरंत अपग्रेड करने की जरूरत है। दरअसल महामारी के समय प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र ही वो जगह हैं जहां आकर ग्रामीण लोग सबसे पहले रिपोर्ट करते हैं।
एक पीएचसी का अपग्रेड होना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि चिंता और बेचैनी में हड़बड़ा कर जिला या सब-डिवीजन स्तर के अस्पतालों की ओर भाग रहे लोगों को रोका जा सके। वैसे भी शहरों के अस्पताल पहले ही क्षमता से अधिक भार से दबे हुए हैं। गांव में जांच के लिए शिविरों का आयोजन कर सकते हैं। इन केंद्रों के प्रयासों को आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से भी जोड़ा जा सकता है। इनका उपयोग अन्य बीमारियों से पीड़ित उन लोगों की पहचान करने में भी किया जा सकता है जो महामारी के दौरान और ज्यादा कमजोर हो जाते हैं। शहरों की तरह वे ग्रामीण क्षेत्रों में एकांतवास और थमिक चिकित्सा सुविधाओं के बारे में जागरूकता कैंप लगा सकते हैं।
प्राय: देखा गया है कि आज भी ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बिना शारीरिक तापमान की जांच किए और बिना हाथ सेनिटाइज किए सुबह और शाम की प्रार्थना के लिए लोग र्धािमक स्थलों में इकट्ठे हो जाते हैं। कुछ राज्यों के ग्रामीण इलाकों में तो अब भी ताश खेलते लोगों के झुंड देखे जा सकते हैं, लेकिन उन्हें यह बताने की सख्त जरूरत है कि आपसी दूरी बनाने और मास्क पहनने से कोविड के विरुद्ध जारी हमारी जंग सफल हो सकती है। तापमान को मापना, शारीरिक दूरी बरकरार रखना, मास्क का उपयोग करना और सार्वजनिक स्थानों पर सफाई रखने जैसे सरल उपायों से ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड के खिलाफ हमारी लड़ाई को बल मिलेगा।
हमारे अधिकांश जिला अस्पतालों में भी स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है। इसमें भी हर राज्य की स्थिति अलग अलग है। मात्र एक इच्छाशक्ति की जरूरत है जो कोरोना संकट में लोगों की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को कम कर सके। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कोरोना टेस्ट की जरूरत है। इसके लिए पीएचसी और मोबाइल परीक्षण वैन कारगर सिद्ध होंगे। रैपिड एंटीजन टेस्ट कोरोना पॉजिटिव व्यक्तियों को तुरंत अलग करने और दवा देने में मददगार सिद्ध होगा। स्कूलों परिसरों को आक्सीजन की सुविधा वाले कोविड आइसोलेशन केंद्रों में परिर्वितत किया जा सकता है।
आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, होमगार्ड और यहां तक कि स्कूल के शिक्षकों को पीएचसी और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य कोविड केंद्रों में फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में तैनात किया जा सकता है। मोबाइल वैन के माध्यम से बड़े पैमाने पर टीकाकरण किया जा सकता है। ग्राम पंचायत को परीक्षण, आइसोलेशन, दवा और टीकाकरण के अभियान में शामिल किया जा सकता है। राज्य सरकार उद्योगपतियों से उनके सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) फंड के तहत वित्तीय मदद ले सकती है। इन तमाम एकीकृत प्रयासों से ही हम ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि करते हुए कोरोना के कहर को नियंत्रित कर सकती हैं। साथ ही, संभावित तीसरी लहर से बचाव की तैयारी भी कर सकते हैं।
[वाइस चेयरमैन, पंजाब राज्य योजना बोर्ड और चेयरमैन, सोनालीका ग्रुप]