सेहत की फिक्र

शहरों-महानगरों की जीवनशैली और रोजमर्रा के खानपान की वजह से अनेक बीमारियों को लेकर लंबे समय से फिक्र जताई जाती रही है। लेकिन इन बीमारियों की वजहों और जड़ों को समय रहते रोकने के लिए अब तक कुछ घोषणाओं से आगे बढ़ कर कोई ठोस पहलकदमी नहीं हुई।

Update: 2022-03-01 03:40 GMT

Written by जनसत्ता: शहरों-महानगरों की जीवनशैली और रोजमर्रा के खानपान की वजह से अनेक बीमारियों को लेकर लंबे समय से फिक्र जताई जाती रही है। लेकिन इन बीमारियों की वजहों और जड़ों को समय रहते रोकने के लिए अब तक कुछ घोषणाओं से आगे बढ़ कर कोई ठोस पहलकदमी नहीं हुई। मसलन, जंक या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के नुकसान को तो स्वीकार किया जाता है, लेकिन उनके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए स्कूल परिसरों में इनकी उपलब्धता प्रतिबंधित या सीमित किए जाने जैसे कुछ प्रतीकात्मक कदम उठाए जाते हैं।

औपचारिक कदमों का कोई बड़ा फायदा नहीं होता है। इस तरह के खानपान के अभ्यस्त हो चुके लोगों या बच्चों के लिए खुला बाजार ऐसे खाद्य पदार्थों से भरा पड़ा है, जो उनके स्वाद के लिए तो अच्छा होता है, लेकिन लंबी अवधि में उनकी सेहत के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है। अब तक इस मसले को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता रहा, इसलिए चुपचाप इस तरह के खानपान के साथ-साथ शरीर में मोटापा और उससे आने वाली ऐसी बीमारियां भी पलती-बढ़ती रहीं, जो समय के साथ एक बड़ी समस्या बन चुकी है।

अब नीति आयोग एक नए प्रस्ताव पर विचार कर रहा है, जिसकी पीछे मकसद मोटापे से होने वाली बीमारियों की रोकथाम है, लेकिन इसके लिए इस स्थिति को पैदा करने वाले कारकों का नियमन किया जाएगा। प्रस्ताव में दर्ज उपायों के तहत चीनी, नमक और वसा की ऊंची मात्रा वाले उत्पादों के विपणन और विज्ञापन के साथ-साथ इनसे तैयार उत्पादों पर कर लगाया जाएगा। इसके अलावा, 'फ्रंट-आफ-द-पैक लेबलिंग' जैसे कदम उठाने पर भी विचार चल रहा है, जिसके जरिये उपभोक्ताओं को अधिक चीनी, नमक और वसा वाले उत्पादों को पहचानने में मदद मिलती है।

दरअसल, सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट में देश की आबादी के बीच मोटापे की बढ़ती समस्या को लेकर चिंता जताई गई है। यह किसी से छिपा नहीं है कि मोटापे की वजह से आज दुनिया भर में लोगों की सेहत के सामने किस तरह की चुनौतियां खड़ी हो चुकी हैं। यह समस्या हमारे देश में ज्यादा जटिल इसलिए है कि मोटापे को लेकर लोग समय रहते नहीं सावधान नहीं होते और इसके प्रति नकारात्मक धारणा आम नहीं पाई जाती है।

विडंबना यह है कि संसाधनों की आसान उपलब्धता के बीच हमें पता भी नहीं चलता कि हमारे खानपान में कब वैसे खाद्य उत्पाद शामिल हो जाते हैं, जिनके मूल तत्त्व शरीर का वजन बढ़ाने के मुख्य कारक होते हैं। वजन बढ़ने के साथ-साथ कई ऐसी बीमारियां भी शरीर में घर बना लेती हैं, जिनका इलाज या तो जटिल होता है या फिर कई बार वे जानलेवा भी होती हैं। खासतौर पर डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में घुले चीनी, नमक और वसा ऐसे स्वरूप में होते हैं, जिनके लगातार सेवन से शरीर का वजन बढ़ने लगता है।

अब सवाल है कि अगर नीति आयोग के प्रस्ताव के मुताबिक ऐसे पदार्थों पर कर लगाए जाते हैं तो लोग इनके उपभोग लेकर किस हद तक हतोत्साहित होंगे। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि जिनके पास धन या संसाधन हैं या फिर किसी को कोई खास चीज खाने-पीने की लत हो चुकी है, वैसे लोगों के लिए वस्तुओं की कीमतें कोई बहुत फर्क नहीं डालती हैं। इसलिए जरूरत इस बात है कि कर बढ़ाने के साथ सेहत के लिहाज से नुकसानदेह खाद्य पदार्थों और उनकी जड़ों में छिपी गंभीर बीमारियों को लेकर जन-जागरूकता के कार्यक्रम चलाए जाएं। इस मसले पर जानकारी और जागरूकता मोटापे जैसी समस्या से पार पाने का एक कारगर रास्ता हो सकती है।


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