सुर्खियां बनाम हकीकत

केंद्र सरकार उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन मुहैया करा आम लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने में सफल रही है- ये खुद उसका दावा है।

Update: 2021-03-16 02:36 GMT

केंद्र सरकार उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन मुहैया करा आम लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने में सफल रही है- ये खुद उसका दावा है। साथ ही उसका दावा है कि उसकी इस योजना पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई है। लेकिन हकीकत क्या है? सच यह है कि शहरों में झुग्गियों बस्तियों के सारे घरों के पास एलपीजी नहीं है। ये बात काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के एक ताजा सर्वेक्षण से सामने आई है। सर्वे से पता चला कि छह भारतीय राज्यों में शहरी झुग्गियों में रहने वाले परिवारों में से लगभग आधे ही एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों की तस्वीर का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। ये बात सही है कि इन शहरी झुग्गियों में 86 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन है। लेकिन दूसरी असलियत है कि सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत कनेक्शन मुहैया कर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। इस बात की निगरानी का कोई ठोस तंत्र विकसित नहीं हो सका है कि लोग दोबारा सिलिंडर रीफिल कराएं। वे ऐसा करा रहे हैं या नहीं, इसे पूछने कोई नहीं जाता।

गौरतलब है कि भारत की झुग्गी बस्तियों में रहने वाली कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा इन्हीं छह राज्यों में रहता है। वहां के 16 प्रतिशत घरों में आज भी प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। वहां खाना पकाने के लिए लकड़ी, गोबर के उपले और केरोसिन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। इससे घर के अंदर प्रदूषण बढ़ जाता है और उसमें रहने वाले लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने पर मजबूर हैं। लोग सिलिंडर रीफिल क्यों नहीं करवाते? इस सवाल का जवाब भी सर्वे रिपोर्ट से मिला है। इसमें कहा गया है कि इन बस्तियों मं जिन 86 फीसदी घरों में एलपीजी कनेक्शन है, उनमें से 37 फीसदी घरों को समय पर रीफिल की डिलीवरी नहीं मिलती। सिलिंडर की महंगाई एक और बड़ी वजह है। सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इन बस्तियों में रहने वाले सिर्फ आधे परिवारों में महिलाएं तय करती हैं कि एलपीजी रीफिल कब खरीदा जाए और खरीदा भी जाए या नहीं। इससे पता चलता है कि निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी सीमित है। यह नहीं कहा जा सकता कि उज्ज्वला योजना का लाभ नहीं हुआ है। लेकिन यह साफ है कि यह उतना भी नहीं है, जितना सरकार दावा करती है।


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