पाकिस्तान के मूल में ही द्वेष
भारत विभाजन के लगभग तय हो जाने पर न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता हरबर्ट एल मैथ्यूज जिन्ना से मिले
भारत विभाजन के लगभग तय हो जाने पर न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता हरबर्ट एल मैथ्यूज जिन्ना से मिले। बातचीत के क्रम में उन्होंने जिन्ना का ध्यान उन बातों की ओर आकृष्ट किया जिन पर तमाम लोगों का भविष्य निर्भर करता था। उन सबका जिन्हें उन प्रदेशों में रहना था जो पूरे भारत से अलग किए जाते। मैथ्यूज ने इस पर स्पष्ट सवाल किया। तब जिन्ना ने कहा, "अफगानिस्तान गरीब देश है तो भी उसका निर्वाह हो ही जाता है। इराक की भी वही हालत है। यद्यपि इसकी आबादी हमारी सात करोड़ की आबादी का एक छोटा हिस्सा ही है। यदि हम लोग आजाद होकर गरीब ही रहना चाहते हैं तो इसमें हिंदुओं को क्या आपत्ति है? अर्थव्यवस्था अपनी देखभाल स्वयं कर लेगी।"
बहस के लिए इस प्रकार के उदगार भले ही प्रकट किए जा सकते हैं, लेकिन जिस प्रश्न पर सात करोड़ मुसलमानों का सारा भविष्य निर्भर करता हो, उसे इतने अगंभीर ढंग से टाल देना उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। जिन्ना बैरिस्टर थे, लेकिन जब वह इस बात के लिए अडिग थे कि एक राष्ट्र मुसलमानों का हो जो पाकिस्तान के नाम से जाना जाए। उनकी इस जिद ने देश का विभाजन अनिवार्य कर दिया। अंग्रेज तो चाहते ही थे कि भारत पर उसका राज कायम रहे और आजादी ही न मिले। मिले तो कई खंडों में, और नहीं तो कम से कम दो खंडों में तो देश का बँटवारा हो ही जाए। इसीलिए चर्चिल हर जगह यह डींग हाँकता फिरता था कि भारत को चलाने के लिए वहाँ के लोग प्रशिक्षित नहीं हैं। आजादी के बाद यह देश खंड-खंड में बँटकर स्वतः नष्ट हो जाएगा।
क्रेडिट बाय जनसत्ता