जबसे राम जन्म भूमि आंदोलन की शुरुआत हुई है, देश में एक माहौल मुसलमानों के खिलाफ बना है। मुसलमानों पर संदेह किया जाने लगा। ऐसी बात नहीं है कि यह पहले नहीं था। परंतु अब वह भावना उभर कर सार्वजनिक चर्चा में आने लगी है और आज एक खाई के रूप में परिवर्तित होती नजर आ रही है। इसमें हमारे दो धार्मिक सीरियलों महाभारत व रामायण का भी प्रभाव है। मैंने स्वयं देखा है लोग जूते-चप्पल उतार कर यह सीरियल देखते थे। इस आंदोलन का राजनीतिक लाभ जिन्हें उठाना था उन्होंने भरपूर उठाया। इस आंदोलन से उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी का यह भ्रम भी टूट चुका है कि आप अल्पसंख्यक समुदाय की उपेक्षा करेंगे तो देश हिंसा में डूब जाएगा इत्यादि-इत्यादि और आप सत्ता में नहीं आ सकते। आज के सत्तारूढ़ दल ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया, फिर भी 543 लोकसभा सीटों में से 303 सीटें जीता है जो इसका प्रणाम है। परंतु आज जो हम देख रहे हैं लाउडस्पीकर विवाद, हनुमान चालीसा का पाठ, ज्ञानवापी मस्जिद तो कहीं अज़ान के समय शोर-गुल, बुलडोज़र इत्यादि-इत्यादि कार्यवाहियों से वातावरण बनाया जा रहा है, विशेषकर उन राज्यों में जहां केन्द्र की सत्तारूढ़ सरकार की पार्टी नहीं है। हम पहले भारतीय हैं, फिर हमारा धर्म, पंथ या विचारधारा आती है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली