हमीरपुर ने लिखे आजादी के शब्द

भारत में 19वीं व 20वीं शताब्दी में विदेशी साम्राज्य के समय शासन

Update: 2021-08-17 05:26 GMT

आजाद हिंद फौज के दलीप सिंह ठाकुर भोटा से थे जिन्होंने 6 मास की सजा काटी। महान स्वाधीनता सेनानी इंद्रपाल हुए जिन्होंने सन् 1922 से लाहौर मिंटगुमरी में पत्रकारिता शुरू की और समाचार पत्र के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन चलाते रहे…

भारत में 19वीं व 20वीं शताब्दी में विदेशी साम्राज्य के समय शासन, प्रशासन की सेवाओं में कमियों के कारण समाज में असंतोष, सरकार का विरोध, समाज में भय व क्रूरता ने आम लोगों को स्वाधीनता संघर्ष के लिए विवश किया। समाज सुधारकों रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, सर सैयद अहमद खां, गुरु रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद चैटर्जी ने अपने ढंग से मानवता को जागृत किया। स्वतंत्रता आंदोलन के लिए महात्मा गांधी, लाला लाजपतराय, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, यशपाल, धर्मपाल, इंद्रपाल, भगवतीचरण वोहरा, दुर्गा भावी, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां आदि असंख्य नेताओं ने देश के लोगों को प्रेरित कर शामिल किया। इस आंदोलन का प्रभाव पंजाब तथा बंगाल में ज्यादा हुआ क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी तथा पुरानी राजधनी कलकत्ता थी। दोनों प्रदेशों में हिंदू व मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी, इसलिए नेताओं ने इन दो प्रदेशों में स्वतंत्रता आंदोलन को ज्यादा गति दी। पंजाब के नेताओं की बैठकें दिल्ली या शिमला में होती थीं, इसलिए नेताओं का व जनता का आंदोलन में ज्यादा संख्या में शामिल होना स्वाभाविक था। इसीलिए पंजाब के कांगड़ा जिला से लोग शामिल हुए। बाबा कांशी राम इस आंदोलन के पहले नेता थे जो काले कपड़े पहनकर गीत, कविताएं लिखकर लोगों को स्वाधीनता आंदोलन का प्रचार करते थे।
उनके साथ हमीरपुर के पं. दुर्गादास शास्त्री थे जो हारमोनियम बजाकर इन गीतों व भजन कीर्तन से लोगों को प्रेरित करते थे। बाबा कांशीराम डाडासीबा, बड्डल ठोर, प्रागपुर, अंब, मुकेरियां, टांडा, उरमर, गुलेर आदि क्षेत्रों में पैदल चलकर स्वतंत्रता आंदोलन चलाते रहे। पं. दुर्गादास शास्त्री भागवत कथा, भजन करते थे और अंब, प्रागपुर से धनेटा, हमीरपुर तथा बड़सर तक प्रचार करते थे। पं. दुर्गादास स्वतंत्रता सेनानी गांव बकारटी, तहसील हमीरपुर के रहने वाले थे। इसी प्रकार हमीरपुर तहसील के गांव धनेटा निवासी रामकिशन नंदा कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता थे। नादौन में एक दुकान पर बात करते हुए पकड़े गए। कांग्रेस पार्टी अवैध घोषित की थी, इसलिए मुकदमा चलाया गया। धर्मशाला के मुनसिफ प्रथम दर्जा ने एक साल तीन महीने की सजा दी। वे धर्मशाला जेल में रहे। नादौन से नगाइया मल, सरनदास, रैल गांव से इच्छापूर्ण, हमीरपुर से हजारा सिंह वकील, परस राम, हरवंश सुजानपुरी, पं. अमीचंद भरेड़ी तथा अन्य सैंकड़ों लोगों ने स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। इस क्षेत्र के नादौन के यशपाल, भाई धर्मपाल, पत्नी प्रकाशवती, पं. इंद्रपाल जो शहीद भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद के साथी थे, सभी पंजाब व दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद आदि क्षेत्रों में संघर्षरत रहे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक संघर्षरत रहे।
यशपाल फरार हो गए तो धर्मपाल गिरफ्तार कर लिए गए। यशपाल जेल में थे तो प्रकाशवती भी गिरफ्तार कर ली गई और दोनों की शादी जेल में हुई। यशपाल ने साहित्य लिखकर जन जीवन, ऊंच-नीच, नारी व्यवस्था, गरीब किसान, मजदूर की स्थिति को दर्शाकर प्रशासन व नेताओं को सुधार करने पर विवश किया। उन्होंने लगभग पांच सौ पुस्तकें लिखकर देश के उच्च कोटि के साहित्यकारों में शामिल हुए। प्रकाशवती ने वेश बदलकर नादौन से देसी बम, बारूद आदि ले जाकर लाहौर व दिल्ली पहुंचाया और स्वतंत्रता सेनानियों को सहायता दी। हमीरपुर के ही ठाकुर गंगा राम गांव डाक नालटी पं. इन्द्रपाल के साथ रहे। 1906 में जन्म हुआ। 3 मास वोस्टन जेल व 3 साल की सजा हुई। वे स्वतंत्रता सेनानी हरदयाल के साथी थे। पं. दुर्गादास बकारटी के डाक नाल्टी भी उसी समय के हैं। सत्यपाल नादौन के थे। गजना राम गांव धनेड खटवीं के थे, 1933 में कैद हुई। गोपाल दास गांव भरेड़ी एक साल की सजा हुई। अमरनाथ शर्मा गांव जाहू भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हुए। अमीचंद 1934 में क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हुए। 1934, 37, 1942 में कुल आठ वर्ष की सजा काटी। 19.5.76 को निधन हो गया, वे 1967 से 1972 तक विधायक व उपाध्यक्ष रहे। कालीदास हमीरपुर को 1942 में सजा हुई। चत्तर सिंह अणू हमीरपुर 1909 से 1983 तक रहे, सन् 1940, 42, 1948 में सजा काटी। सियालकोट जेल से 1948 में रिहा हुए। दलीप सिंह ठाकुर हमीरपुर से 1935 में आंदोलन में शामिल हुए। 1939, 41 में 6 साल कैद काटी, विधायक रहे। लाभा राम जाहू से स्वतंत्रता सेनानी रहे, उन्होंने बिलासपुर प्रजामंडल में भाग लिया। हरी चंद टिबी कुठेड़ा ने ढाई साल 1942 में जेल काटी, शंकरदास भूंपल से थे। शमशेर चंद टिक्कर खतरियां से थे। सर्वमित्रा अवस्थी नादौन से थे। 1922 में एक वर्ष सजा काटी। सत्यपाल कपिल नादौन के थे, सीताराम जैन नादौन से थे, 9 मास जेल धर्मशाला में रहे। ज्ञानचंद जालग से थे, एक साल जेल काटी।
देवी दास गुलजार नादौन से थे, 1942 में जेल में रहे। ध्यान सिंह ध्यानपुरी हमीरपुर से थे। कैप्टन ध्यान सिंह एम.एल.ए. भोटा से थे। आजाद हिंद फौज के दलीप सिंह ठाकुर भोटा से थे जिन्होंने 6 मास की सजा काटी। महान स्वाधीनता सेनानी इंद्रपाल हुए जिन्होंने सन् 1922 से लाहौर मिंटगुमरी में पत्रकारिता शुरू की और समाचार पत्र के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन चलाते रहे। उन्होंने वेष बदल कर दिल्ली में पेड़ के नीचे झोंपड़ी में धूना लगाया और भजन-कीर्तन कर लोगों की सेवा करते रहे और यहीं पर यशपाल से मिलकर वायसराय की गाड़ी को बम से उड़ाने का प्रयास किया। इसी मामले में दोनों को सजा हुई। 1944 में अंग्रेज सरकार ने प्रधानमंत्री एटली के आदेश पर स्वतंत्रता सेनानियों को छोड़ दिया, तभी इन्द्रपाल जेल से छूटे। वे लाहौर से नादौन अपने पैतृक घर आ गए और फिर दिल्ली चले गए। जेल की सजा के कारण शरीर में बीमारी (पैरालाइसिस) हो गई और वे दिल्ली में ही 15 अप्रैल, 1948 को स्वर्ग सिधार गए। उनके नाम पर नादौन में इन्द्रपाल चौक बना है। नादौन के पास रियोड़ी गांव डाकघर जलाड़ी के निवासी पं. मिलखी राम लाहौर में मोटर ड्राइविंग सीख रहे थे। उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। इनके अलावा भी अनेक नाम हैं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान किया। इस प्रकार जिला हमीरपुर का योगदान सराहनीय है।
डा. ओपी शर्मा
लेखक शिमला से हैं
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