प्रदूषण पर पहरा

खासकर दिल्ली में दिवाली के बाद यह समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है। इससे पार पाने के लिए दिल्ली सरकार ने कई उपाय आजमाए, मगर वे कारगर साबित नहीं हो पा रहे।

Update: 2022-11-07 05:10 GMT

Written by जनसत्ता: खासकर दिल्ली में दिवाली के बाद यह समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है। इससे पार पाने के लिए दिल्ली सरकार ने कई उपाय आजमाए, मगर वे कारगर साबित नहीं हो पा रहे। प्रदूषण जानलेवा स्तर तक खतरनाक हो गया है, जिसके चलते स्कूल बंद करने और दिल्ली सरकार के आधे कर्मचारियों को घर से काम करने को कहा गया है।

इसे लेकर दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री ने संयुक्त रूप से प्रेस को संबोधित किया और ईमानदारी से स्वीकार किया कि पराली जलाने के मामले में वे अपेक्षित कमी नहीं ला पाए। हालांकि उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगले साल तक पराली जलाने पर पूरी तरह लगाम लगा ली जाएगी। इससे जुड़े उपायों का विवरण भी उन्होंने दिया है। चूंकि दोनों जगह आम आदमी पार्टी की सरकार है, इसलिए दोनों मुख्यमंत्रियों ने मिल कर इस पर सफाई पेश की। इससे पहले जब पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं थी, तब दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण के लिए पंजाब सरकार को जिम्मेदार ठहराया करती थी। अब वह ऐसा नहीं कर सकती, इसलिए लोगों के सवालों से बचने का यह तरीका निकाला गया।

यह ठीक है कि जब किसी राज्य में पराली या औद्योगिक इकाइयों का धुआं उठता है, तो वह केवल उसी राज्य तक सीमित नहीं रहता। हवा चलती है तो पड़ोसी राज्य भी उससे प्रभावित होते हैं। मगर इस आधार पर कोई सरकार प्रदूषण का दोष दूसरे राज्यों पर डाल कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार को आए अभी छह महीने हुए हैं और धान तथा गेहूं की फसल के बीच मुश्किल से दस-बारह दिन का समय मिलता है, इसलिए किसानों के पास पराली जलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।

उनका दावा है कि उन्होंने पराली निस्तारण के लिए मशीनें खरीदी हैं और संयंत्र लगाया है, जो पराली से गैस आदि का उत्पादन करेगा। सेटेलाइट के जरिए पराली जलाने पर नजर रखी जा रही है। हालांकि पराली जलाने की प्रवृत्ति कोई नई नहीं है। यह पिछले कई सालों से बनी हुई है और हर साल इसमें कुछ बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। पिछले साल दिल्ली सरकार ने पराली को खेत में ही गलाने के लिए एक विशेष प्रकार के घोल का प्रचार किया था। उसका दावा था कि इससे पराली जलाने की समस्या समाप्त हो जाएगी। वह घोल सरकार किसानों को मुफ्त मुहैया करा रही थी। फिर क्या हुआ कि वह घोल इस साल खेतों में नहीं छिड़का गया?

दरअसल, हर साल जब वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर पहुंच जाता है, तो दिल्ली सरकार तदर्थ उपायों से इस पर काबू पाने का प्रयास करती है। पेड़ों पर पानी छिड़कने, निर्माण कार्य रोक देने, वाहनों में सम-विषय योजना लागू करने जैसे उपाय आजमाए जा चुके हैं। इसी तरह स्माग टावर लगा कर दावा किया गया कि इससे प्रदूषण को सोख लिया जाएगा। दिल्ली में बाहर से आने वाले भारी वाहनों का प्रवेश पहले ही वर्जित है, ज्यादातर चार पहिया और सभी तिपहिया वाहनों में सीएनजी इस्तेमाल होता है। फिर भी प्रदूषण का स्तर काबू में नहीं आ रहा, तो इस पर परदा डालने के लिए दिल्ली और पंजाब सरकारें जो भी तर्क दें, पर हकीकत यही है कि लोगों का दम घुट रहा है। अगर वे सचमुच इससे पार पाने को लेकर गंभीर हैं, तो वह व्यावहारिक धरातल पर दिखना चाहिए।


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