बढ़ता खतरा

कोरोना के फिर से बढ़ते मामलों ने नींद उड़ा दी है। कुछ दिन पहले रोजाना संक्रमण के मामले पच्चीस हजार से भी नीचे आ गए थे।

Update: 2021-08-31 02:45 GMT

कोरोना के फिर से बढ़ते मामलों ने नींद उड़ा दी है। कुछ दिन पहले रोजाना संक्रमण के मामले पच्चीस हजार से भी नीचे आ गए थे। तब लगने लगा था कि अब हम महामारी से मुक्ति की ओर हैं। पर अब जब रोजाना संक्रमण के मामले जब पैंतालीस हजार से ऊपर देखने को मिल रहे हैं तो माथे पर चिंता की लकीरें आना लाजिमी है। और सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात तो यह है कि महामारी से निपटने में जिस केरल राज्य को एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा था, वहीं आज हालात सबसे ज्यादा खराब हैं। पिछले कुछ दिनों से केरल में संक्रमण के रोजाना तीस हजार से ज्यादा मामले मिलना गंभीर स्थिति का संकेत है। इससे तो लग रहा है कि राज्य में महामारी ने फिर से पैर पसार लिए हैं। हालांकि महाराष्ट्र, मिजोरम, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी स्थिति कोई अच्छी नहीं है। महाराष्ट्र में तो रोजाना संक्रमितों की संख्या पांच हजार के आसपास चल रही है। इसलिए महामारी को जरा भी हल्के में लिया गया तो फिर से गंभीर संकट में पड़ने में जरा देर नहीं लगने वाली।

ऐसा नहीं है कि केरल के हालात कोई अचानक बिगड़े हों। राज्य सरकार ने पिछले महीने ईद और ओणम के मौके पर लोगों और व्यापारियों के दबाव में बंदिशों में ढील देकर संकट को न्योता दे डाला था। तब बाजारों में जिस तरह भीड़ बढ़ी, जो कि स्वाभाविक भी था, उसने आग में घी का काम किया। राज्य सरकार के इस फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर चिंता जताई थी और उसे आड़े हाथों भी लिया था। तभी विशेषज्ञों ने आगाह कर दिया था कि आने वाले दिनों में संक्रमण एक बार फिर विस्फोटक रूप ले सकता है। और आज वही सब सामने आ रहा है। डेढ़ साल के दौरान हमने यह देखा है कि अगर एक बार संक्रमण फैलना शुरू हो जाए तो थोड़े ही समय में हालात किस कदर गंभीर हो जाते हैं। इस साल बीस अप्रैल को केरल में उन्नीस हजार मामले एक दिन में दर्ज हुए थे और दो हफ्ते बाद यह आंकड़ा इकतालीस हजार के पार निकल गया था। इसलिए महामारी के मामले में केरल अब सबसे ज्यादा चिंता वाला राज्य बन गया है। केरल वैसे भी सबसे ज्यादा संक्रमण दर वाले राज्यों में शीर्ष पर था, जहां संक्रमण दर बारह फीसद बनी हुई थी। जाहिर है, केरल के मौजूदा हालात के पीछे सबसे बड़ा कारण सरकार से लेकर लोगों की लापरवाही रहा।
हकीकत तो यह है कि दूसरी लहर गई नहीं है। तीसरी का खतरा सामने है। विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि सितंबर-अक्तूबर में तीसरी लहर जोरों पर होगी और रोजाना संक्रमितों का आंकड़ा तीन-साढ़े लाख तक पहुंच जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। केरल, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर राज्यों की अभी जो स्थिति है, उससे तो लगता है कि लोगों की बेरोकटोक आवाजाही देश में तीसरी लहर का कारण आसानी से बन सकती है। इसके अलावा बाजारों में भीड़ से लेकर जन आशीर्वाद यात्रा जैसे राजनीतिक आयोजनों तक में कोरोना व्यवहार के नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। ऐसे में संक्रमण को फैलने से कौन रोक पाएगा? संक्रमण बढ़ने का एक बड़ा कारण टीकाकरण की अपेक्षित रफ्तार में कमी भी है। कहने को अब तक तिरसठ करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। पर आबादी की तुलना में टीकों की उपलब्धता के हिसाब से यह कोई बड़ा आंकड़ा नहीं कहा जा सकता। महामारी से बचाव के लिए पूरी आबादी को दोनों खुराक देने की जरूरत है और कड़वी सच्चाई यह है कि इस लक्ष्य से हम अभी काफी दूर हैं। ऐसे में महामारी से निपटना कोई मामूली काम नहीं है।


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