जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बुरी खबरों का अभी अंत नहीं हुआ। खासकर कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़ी खबरों ने फिलहाल थोड़ी राहत भले ही दी हो, लेकिन खतरा टला नहीं है, इसके संकेत भी साफ हैं। और जहां तक समाज व अर्थव्यवस्था पर पड़े इसके असर का मामला है, अभी इन सबसे उबरने में काफी वक्त लग सकता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि नवंबर की शुरुआत शुभ समाचारों के साथ हुई है। पहले ही दिन खबर आई कि अक्तूबर का जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपये तक पहंुच गया है, जो कि अर्थव्यवस्था के फिर से पटरी पर लौटने का सबसे बड़ा संकेत माना जा सकता है। सोमवार को जो खबर आई है, वह इससे भी ज्यादा राहत देने वाली है। फैक्टरी उत्पादन का हाल बताने वाला निक्कई परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स अक्तूबर महीने में 58.9 पर पहुंच गया है। यह सितंबर महीने से दो अंक ज्यादा तो है ही, लेकिन इसके साथ ही, ज्यादा बड़ी खबर यह है कि अगर इस सूचकांक के हिसाब से देखें, तो यह पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय का सबसे ऊंचा स्तर है। साथ ही, इंडेक्स का यह स्तर उस पृष्ठभूमि को देखते हुए भी महत्वपूर्ण है कि इस साल की पहली तिमाही में शून्य से लगभग 24 फीसदी नीचे तक गोता लगा गई थी और जिन क्षेत्रों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई थी, उनमें एक मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र भी था।
वैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, इसके संकेत तो हमें सितंबर महीने से ही मिलने लग गए थे। अक्तूबर में तमाम तरह के आंकड़े यह बताने लग गए थे कि बाजार से हताशा के बादल अब छंटने लग गए हैं। खासकर ऑटोमोबाइल क्षेत्र के आंकड़े इतने बेहतर थे कि हैरान कर रहे थे। दुपहिया वाहनों और कारों की बिक्री खासी उम्मीद बंधा रही थी। हालांकि साथ ही, यह भी कहा जा रहा था कि इनकी बिक्री में बढ़त की एक वजह यह है कि सार्वजनिक परिवहन पर रोक और उसके खतरों के चलते लोगों के लिए अब अपने वाहन से यात्रा ही ज्यादा सुविधाजनक हो गया है। लेकिन जीएसटी का संग्रह जिस तरह से बढ़ा है, वह बताता है कि अक्तूबर महीने में कारोबार चौतरफा बढ़ा है। एक दूसरा संकेत मुद्रास्फीति भी दे रही है। यह ठीक है कि मुद्रास्फीति जिस तरह से बढ़ी है, वह अर्थव्यवस्था और खासकर गरीबों के लिए बहुत बुरी है, लेकिन वह यह तो बताती ही है कि बाजार में मांग बढ़ी है। जाहिर है, इसी मांग की आपूर्ति के लिए फैक्टरियों ने उत्पादन भी बढ़ाया है और यह अब सूचकांक से भी जाहिर है।
हालांकि इस क्षेत्र की सारी समस्याएं खत्म हो गई हैं, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। एक तो अभी भी शायद ही यह क्षेत्र अपनी पूरी क्षमता का उपयोग कर पा रहा है। लॉकडाउन के दौरान बंद बहुत सी छोटी इकाइयां अभी भी नहीं खुल सकी हैं। इस क्षेत्र में बेरोजगार हो गए सभी लोगों को रोजगार मिल गया हो, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन फिलहाल का सच यही है कि स्थितियां अब उतनी भी खराब नहीं हैं, जितनी पांच-छह महीने पहले लग रही थीं। कोरोना संक्रमण के सच को स्वीकार करते हुए देश ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, लेकिन लंबा रास्ता अभी बाकी है। यह ठीक है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आई है, लेकिन जरूरी है, उसका इन पटरियों पर रफ्तार पकड़कर मंजिल की ओर बढ़ना। हमारी सरकारों और वित्तीय संस्थाओं को अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए।