अच्छी दोस्ती : भारत और अमेरिका के रिश्ते का अमृत वर्ष, हर दौर में देखे कई उतार चढ़ाव
संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और सहयोग के क्षेत्र को व्यापक बनाने के लिए काम करना चाहिए। भारत-अमेरिकी संबंध दीर्घायु हो!
जब अमेरिकी प्रकृतिवादी, कवि और दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो ने 1849 में अपना प्रसिद्ध निबंध सविनय अवज्ञा लिखा, तो उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि यह छह दशक बाद एक भारतीय वकील मोहनदास करमचंद गांधी को प्रेरित करेगा और वह दक्षिण अफ्रीका में इसे प्रतिध्वनित करेंगे, जिन्होंने भारत लौटने के बाद अपने सत्याग्रह से ब्रिटिश राज को हिलाकर रख दिया तथा भारत को स्वतंत्रता पाने में मदद की। दिलचस्प बात यह है कि गांधी को भी यह नहीं पता था कि ब्रिटिश ज्यादतियों के खिलाफ उनका अहिंसक प्रतिरोध अमेरिकी अश्वेत नागरिक अधिकार नेता, डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर को प्रेरित करेगा, जो अपने घर और कार्यालय में गांधी की तस्वीर लटकाकर रखते थे।
करीब पचास वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद ने सितंबर, 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद को संबोधित कर अपने प्रसिद्ध भाषण से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। अंग्रेजी कविता के कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि टी. एस. इलियट के वेस्टलैंड पर भगवद्गीता का प्रभाव झलकता है। भारत के लोग अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट का आभार जताते हैं, जिन्होंने 1943 में कासाब्लांका कॉन्फ्रेंस में भारत की आजादी के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से बातचीत की थी।
भारत और अमेरिका एक जैसे मूल्य साझा करते हैं-लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून का राज, धार्मिक सहिष्णुता और उनका बहुजातीय, बहुनस्लीय, बहुभाषी, बहु-धार्मिक और बहुलतावादी समाज। दिलचस्प है कि इन समानताओं ने उन्हें अच्छा दोस्त नहीं बनाया। दो सैन्य संगठनों-1954 में दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन (सीटो) और 1955 में केंद्रीय संधि संगठन (सेन्टो) में पाकिस्तान को शामिल करने को लेकर भारत को आशंकाएं थीं। शीतयुद्ध के दौर में भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के बावजूद उसके सोवियत संघ के करीब होने की अमेरिकी धारणा के चलते अमेरिका और भारत अलग-अलग रहे।
भारत यह भी नहीं भूल सकता था कि जब पाकिस्तान की आक्रामकता का शिकार होकर वह संयुक्त राष्ट्र में जम्मू और कश्मीर के मुद्दे को लेकर गया था, तो ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका द्वारा पाकिस्तान का समर्थन किए जाने के कारण दांव उल्टा पड़ गया था। भारत की यात्रा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर थे। उन्होंने दिसंबर, 1959 में भारत की सफल यात्रा की। हैरानी की बात है कि नवंबर, 1961 में भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अमेरिका की यात्रा सफल नहीं रही। नेहरू और जॉन एफ कैनेडी व्यक्तिगत सामंजस्य नहीं बिठा सके।
हालांकि, यह कैनेडी ही थे, जो 1962 में चीन द्वारा आक्रमण करने पर भारत को जरूरी रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिए आगे आए। फिर जब भारत को अन्न संकट का सामना करना पड़ा, तो अमेरिका ने चर्चित पीएल 480 कानून के तहत गेहूं की आपूर्ति की। माना जाता है कि कुछ अमेरिकी कृषि वैज्ञानिकों ने डॉ एमएस स्वामीनाथन की मदद की, जिन्होंने हरित क्रांति की शुरुआत की और भारत को अनाज उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। फोर्ड फाउंडेशन और कई अमेरिकी शैक्षणिक संस्थानों ने आईआईटी, कानपुर की स्थापना में सहायता की।
अभी करीब चार लाख भारतीय छात्र अमेरिका में पढ़ रहे हैं। अमेरिका के आधा दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूल आज भारतवंशी शिक्षाविदों के नेतृत्व में चल रहे हैं। वर्ष 1971 में भारत-अमेरिकी संबंधी खराब हो गए, जब राष्ट्रपति निक्सन ने बेशर्मी से पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह याह्या खान का समर्थन किया। सोवियत संघ के पतन और आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के बाद दोनों देशों के लिए एक-दूसरे पर नए सिरे से विचार करने और सहयोग के रास्ते तलाशने की स्थिति पैदा हुई।
हालांकि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इस बात के लिए अमेरिका में सराहना की गई, कि भारत-अमेरिका स्वाभाविक सहयोगी हैं, लेकिन मई, 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किया, तो राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत पर सबसे गंभीर प्रतिबंध लगाए। मार्च, 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की यात्रा ने विविध और सहयोगी संबंधों के लिए संस्थागत बुनियादी ढांचे का निर्माण किया। वर्ष 2006 में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश और प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में शानदार बदलाव आया।
राष्ट्रपति बराक ओबामा दो बार भारत आए। ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में विविधता आई। ट्रंप ने एशिया और प्रशांत महासागर के लिए संयुक्त दृष्टिकोण को इंडो-पैसिफिक के रूप में वर्णित कर भारत के महत्व को रेखांकित किया था। भारत-अमेरिका संबंध अब तक के सबसे अच्छे दौर से गुजर रहा है। भारत अमेरिका का रणनीतिक साझेदार एवं प्रमुख रक्षा भागीदार है और इसे एसटीए-1 का दर्जा दिया गया है, जो उसे संवेदनशील प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिए अमेरिका के नाटो सहयोगियों के बराबर दर्जा देता है।
अमेरिकी रक्षा निर्यात 20 अरब डॉलर को पार कर गया है, जो बढ़ते रक्षा सहयोग को रेखांकित करता है। पहली बार भारत ने अमेरिका से 14 अरब डॉलर का गैस एवं तेल आयात किया है। वर्ष 2021-22 में अमेरिका चीन को पछाड़कर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। द्विपक्षीय व्यापार 119.42 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वर्ष 2000 से मार्च, 2022 तक अमेरिकी कंपनियों ने कुल 54.1 अरब डॉलर का निवेश किया है। भारत के समक्ष चीन की आक्रामक एवं मुखर चुनौती है। ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच कोविड वैक्सीन आपूर्ति, जलवायु परिवर्तन, नई तकनीकों, वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाओं, इंडो-पैसिफिक, इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क, क्वाड और अब आई2यू2 में सहयोग महत्वपूर्ण है।
तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ करीबी रिश्ता रखने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बदलाव का नेतृत्व किया है। ईरान, रूस, चीन, अफगानिस्तान, यूक्रेन और व्यापार संबंधी मतभेदों के बावजूद भारत और अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों के व्यापक दृष्टिकोण का अनुसरण करते हैं। दोनों देशों को एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और सहयोग के क्षेत्र को व्यापक बनाने के लिए काम करना चाहिए। भारत-अमेरिकी संबंध दीर्घायु हो!
सोर्स: अमर उजाला