EAC की नेक सलाह

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में आया यह सुझाव महत्वपूर्ण है कि देश में आय की जबर्दस्त विषमता को कम करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम और शहरी रोजगार गांरटी योजनाएं शुरू की जाएं।

Update: 2022-05-21 03:54 GMT

नवभारत टाइम्स: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में आया यह सुझाव महत्वपूर्ण है कि देश में आय की जबर्दस्त विषमता को कम करने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम और शहरी रोजगार गांरटी योजनाएं शुरू की जाएं। रिपोर्ट में यह बात रेखांकित की गई है कि देश में आय वितरण की पहले से ही असंतुलित स्थिति धीरे-धीरे और बदतर होती जा रही है। हालांकि रिपोर्ट में जिन आंकड़ों के सहारे यह बात कही गई है, उनसे तस्वीर ज्यादा असंतुलित नहीं नजर आती। मिसाल के तौर पर, इसमें पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) के तीन दौर के रिजल्ट्स के हवाले से बताया गया है कि 2017-18 से 2019-20 तक के तीन सालों में कुल कमाई में आबादी के टॉप 1 फीसदी का हिस्सा 6-7 प्रतिशत था। ज्यादा सटीकता से कहा जाए तो यह हिस्सा तीन वर्षों में 6.14 फीसदी से बढ़कर 6.82 फीसदी हुआ था। अगर कमाई में बढ़ोतरी की बात करें तो इन तीन वर्षों में आबादी के टॉप 1 फीसदी हिस्से की आय 15 फीसदी बढ़ी जबकि आबादी के सबसे निचले 10 फीसदी हिस्से की आय में 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

इन आंकड़ों के बरक्स हम पिछले साल दिसंबर में जारी वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2022 को रखें तो हालात कहीं ज्यादा गंभीर नजर आते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में देश में कुल आमदनी का 22 फीसदी हिस्सा टॉप एक फीसदी आबादी के खाते में था। टॉप 10 फीसदी आबादी कुल आमदनी के 57 फीसदी हिस्से पर काबिज थी। नीचे की 50 फीसदी आबादी को राष्ट्रीय आय के महज 13 फीसदी हिस्से पर संतोष करना पड़ रहा था। आश्चर्य नहीं कि इस वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट में भारत को दौलतमंद इलीट वाला गरीब और बेहद असमान देश बताया गया था। बहरहाल, ब्योरे में जो भी फर्क हो, निष्कर्ष में कोई अंतर नहीं है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने भी स्थिति को गंभीर मानते हुए तत्काल आवश्यक कदम उठाने की बात कही है। हालांकि यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना शुरू करने की बात कोई नई नहीं है।

वित्त वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वे में तत्कालीन मुख्य वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन की यह सलाह दर्ज की गई थी कि सब्सिडी के लंबे चौड़े खर्च के बदले यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना शुरू की जाए ताकि हर व्यक्ति के लिए कुछ न कुछ आमदनी सुनिश्चित की जा सके। बाद में आईएमएफ ने भी फूड और फ्यूल सब्सिडी के बदले यूनिवर्सल इनकम स्कीम शुरू करने के सुझाव पर जोर दिया था। इससे कहीं न कहीं यह आशंका भी बनती है कि प्रस्तावित स्कीम लोगों की आमदनी में अंतर घटाने के बजाय सब्सिडी से छुटकारा दिलाने के उद्देश्यों तक सीमित न रह जाए। मगर मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार गारंटी योजना जरूर समय की जरूरत है। इससे जहां असंगठित क्षेत्र के जरूरतमंद लोगों को आजीविका मिलेगी, वहीं इकॉनमी में डिमांड बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है।


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