दुनिया अब चीन से व्यापार को लेकर सतर्क
दुनिया अब चीन से व्यापार को लेकर सतर्क है। तमाम देश व्यापार और उत्पादन के नए-नए तरीके ढूंढ रहे हैं। पश्चिम के ताकतवर देश चीन को छोड़ दूसरे साझीदारों की गंभीरता से तलाश कर रहे हैं। यही अवसर है जब भारत 'ग्लोबल लीडर' यानी विश्व गुरु के रूप में उभर सकता है। दरअसल इन विकट परिस्थितियों में भी भारत ने कुछ नया करने का दृढ़संकल्प दिखाया है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन के साथ भारत ही ऐसा देश है जिसने एक कारगर कोविड-19 रोधी वैक्सीन बनाई। करीब एक वर्ष पहले हमारे पास अपने लिए पीपीई किट और मास्क बनाने तक की सुविधा नहीं थी। हम कहीं से भी उनके आयात के प्रयास में थे। तब भारत ने अपने आप को बदला। देश ने आज मास्क के आयातक से खुद को सबसे बड़े वैक्सीन निर्यातक के रूप में खड़ा किया है, जिसकी वैक्सीन 85 देशों तक पहुंची।
1991 में भारत और चीन का जीडीपी एक ही था, भारत को पछाड़ते हुए चीन आगे निकल गया
वर्ष 1991 में भारत ने जब अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण किया, तब भारत और चीन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिहाज से लगभग एक ही पायदान पर थे। विशुद्ध रूप से कम-लागत वाले उत्पादन की बदौलत चीन हमें तेजी से पछाड़ते हुए आगे निकल गया, जो अक्सर शोषणवादी श्रम कानूनों की कीमत पर होता है। सस्ते उपभोक्ता सामान के नशे में दुनिया ने चीन के इस आक्रामक विकास मॉडल के खतरों को अनदेखा कर दिया। अब कोविड-19 ने एक सबक सिखाया है कि अनैतिकता और अन्याय से कभी स्थायी विकास संभव नहीं है। इस उभरती वैश्विक अर्थव्यवस्था को लागत की इस स्पर्धा से आगे जाना होगा। इसे विश्वास और मानवता पर आधारित होना चाहिए। इस नए सूर्योदय में भारत के पास एशिया का पावरहाउस बनने का दमदार अवसर है। कई बातें हैं, जो हमारे पक्ष में हैं। पहली, लोक केंद्रित लोकतंत्र की हमारी शैली और खुली आलोचना पारदर्शिता के सूचक हैं। भारतीय कानून और उनके कार्यान्वयन की समीक्षा कोई भी कर सकता है। हमने जैविक हथियार बनाने के नापाक मंसूबे कभी नहीं पाले। बर्बरता से विपक्ष को कुचलने वाले चीन की एकदलीय व्यवस्था के मुकाबले हमारे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कहीं अधिक विश्वसनीय हैं। दूसरी, हमारे शिक्षित और तकनीकी रूप से प्रशिक्षित युवा विश्व की नई अर्थव्यवस्था के निर्माण की रीढ़ हैं। आज जो भी सेक्टर दुनिया में स्वयं को फिर से खड़ा करना चाहता है, वह इसके लिए भारतीय युवाओं की सहायता ले सकता है। तीसरी, उपभोक्ता देश के रूप में भी हम शक्तिशाली हैं। कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी हमारे बड़े बाजार को हाथ से नहीं जाने दे सकती। हमारे पास अवसर है कि हमारे स्थानीय उद्यम बड़ी वैश्विक कंपनियों से सीखें, साझेदारी करें और आगे एक दशक में और भी बड़े बाजार पर व्यापार करें।
भारत को कुछ प्रमुख क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है
हालांकि इसके लिए हमें कुछ प्रमुख क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है। सबसे पहले हमें अपने ग्रामीण विकास के ढांचे पर गौर करना होगा। भारत के छह लाख गांव आर्थिक बोझ नहीं, बल्कि शक्तिपुंज हैं, जिनकी संभावनाओं का पता लगाने की आवश्यकता है। वे अवसरों का भंडार और एक विशाल उपभोक्ता बाजार हैं। उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने वाले और ऑटोमोबाइल उद्योग लगभग 45 प्रतिशत सामान ग्रामीण भारत में बेचते हैं। अब बिजली और इंटरनेट की पहुंच गांव-गांव तक है। लिहाजा ऐसे ग्रामीण भारत में हमें सिर्फ खेती को ही नहीं, उससे आगे भी देखना होगा। वे उन्नत उद्योग, तकनीकी शोध और स्वास्थ्य सेवा केंद्रों के गढ़ बन सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक जिला-एक उत्पाद (ओडीओपी) की शुरुआत की है, ताकि स्थानीय क्षमता के आधार पर प्रत्येक जिले में एक लक्षित उद्योग लगाया जा सके। इस प्रकार की तरकीबों को उद्योग जगत के समर्थन और व्यापक स्तर पर लागू करने की जरूरत है। फिर हमें इन तरकीबों और युवाओं की ऊर्जा पर पूंजी लगाने की आवश्यकता है। युवाओं के पास जबरदस्त आइडिया हैं, लेकिन उन्हें पूर्ण रूप से साकार करने में छोटे से निवेश के लिए भी वे बरसों से भटक रहे हैं। भारत के 80 प्रतिशत स्टार्ट-अप को 30 साल से कम उम्र के युवाओं ने शुरू किया है। यही नहीं, नए जमाने के बड़े से बड़े ब्रांड की शुरुआत भी बेहद कम आयु के संस्थापकों ने की थी। यदि हम चाहते हैं कि ऐसे युवा भारत के नए युग के आर्थिक विकास का नेतृत्व करें तो हमें उनकी मदद के लिए एक मजबूत ढांचे का निर्माण करना चाहिए।
देशभक्ति की भावना ने राष्ट्रवाद को नई ऊंचाई दी, आज तकनीकी राष्ट्रवाद आवश्यक है
वास्तव में देशभक्ति की भावना ने हमारे राष्ट्रवाद को नई ऊंचाई दी है। आज तकनीकी राष्ट्रवाद आवश्यक है। 21वीं सदी के राष्ट्रवाद में हमें अपने युवाओं को उस सहृदय तकनीक के पथ पर चलने की शिक्षा देनी होगी, जिससे मातृभूमि की सेवा की जा सके। हालांकि कई लोगों को संदेह है कि भारत इतने कम समय में इतना कुछ कैसे प्राप्त कर सकता है? तो शुभ संकेत यह है कि इतिहास ने हमें दिखाया है कि वैश्विक व्यवस्था को राह बदलने में अधिक समय नहीं लगता। 1995 में चीन तीन प्रतिशत विश्व व्यापार के साथ दुनिया में कहीं भी नहीं था। वहां से मात्र दो दशक बाद वह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारी देश बन गया है। भारत के पास आज उससे भी बेहतर अवसर हैं, क्योंकि दुनिया कोविड-19 के बाद के युग में एशिया में नए शक्तिशाली कारोबारी साझीदार ढूंढ रही है। हमें इस मौके को किसी हाल में नहीं छोड़ना चाहिए।
( पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)