Vijay Garg: प्लस्टिक के स्टिक के सूक्ष्म कणों (माइक्रोप्लास्टिक) से दुनिया भर में एक नया खतरा पैदा हो गया है। वैज्ञानिकों को समुद्र की गहराइयों से लेकर माउंट एवरेस्ट पर भी इनकी मौजूदगी के सबूत मिले हैं। ये सूक्ष्म कण भोजन, पानी और हवा में भी घुल चुके हैं। अब एक नए शोध में सामने आया है कि इन सूक्ष्म कणों के कारण मौसम प्रणाली में भी बाधा पैदा हो रही है। इनकी वजह से बादल बनने की प्रक्रिया बाधित हो रही है। इसके प्रभाव को जलवायु परिवर्तन के एक कारक के रूप में भी देखा जा रहा है।
पोसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए इस नए अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक के ये कण बादलों के निर्माण से लेकर बारिश और यहां तक की जलवायु व मौसम प्रणाली को भी प्रभावित कर सकते हैं। पहली बार जापानी वैज्ञानिकों को बादलों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की मौजूदगी के सबूत मिले थे। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलाजीः एयर में प्रकाशित हुए हैं। शोध से पता चला है कि प्लास्टिक के यह महीन कण बर्फ के नाभिकीय कणों के रूप में व्यवहार करते देखे गए हैं।
बर्फ के ये नाभिकीय कण बेहद महीन एरोसोल होते हैं, जो बादलों में बर्फ के क्रिस्टल के निर्माण में सहायता करते हैं। अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर मिरियम फ्रीडमैन ने इस बात को रेखांकित किया है कि वातावरण में मौजूद बर्फ के जो क्रिस्टल बादलों का निर्माण करते हैं, उन्हें प्लास्टिक के सूक्ष्म के कण कैसे प्रभावित कर सकते हैं। ये सूक्ष्म कण बादलों के निर्माण ही नहीं, बल्कि बारिश के क्रम, मौसम पूर्वानुमान और यहां तक कि विमानों की सुरक्षा पर भी असर डाल सकते हैं। फ्रीडमैन के मुताबिक, पिछले दो दशकों के दौरान किए शोधों से पता चला है कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हर जगह मौजूद हैं। वहीं, नए अध्ययन में यह साबित हो चुका है कि ये कण बादलों के निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं।
ऐसे में अब यह समझने की आवश्यकता है कि ये कण हमारी जलवायु प्रणाली के साथ कैसे प्रतिक्रिया कर रहे हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने चार प्रकार के सूक्ष्म प्लास्टिक कणों की जांच की, ताकि यह समझा जा सके कि वे बर्फ के जमने को किस तरह से प्रभावित करते हैं। इनमें कम घनत्व वाली पालीइथिलीन, पालीप्रोपाइलीन, पालीविनाइल क्लोराइड और पालीइथिलीन टेरेपथेलेट शामिल हैं। प्रयोग के दौरान शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों को पानी की बूंदों में लटकाया और बर्फ बनने का अध्ययन करने के लिए उन्हें धीरे-धीरे ठंडा किया। नतीजे से पता चला कि जिस औसत तापमान पर बूंदें जमीं, वह प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों से रहित बूंदों की तुलना में पांच से दस डिग्री ज्यादा गर्म था ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब