अब फैसला निरीह जनता को करना है कि वह या तो सदन के भीतर अपने यथार्थ को चूम ले या अपने इर्द-गिर्द मसलों के साथ विपक्ष के साथ झूम ले, लेकिन उसे हर आवाज सुननी पड़ेगी। जनता के लिए सरकार का प्रदर्शन कई मायने रखता है और इन्हीं आशाओं के साथ वह अभिभाषण को अपने भविष्य का सूत्र मानती है, तो विपक्ष की कठोर वाणी में परिवर्तन की जमीन ढूंढनी है। न सरकारें थकती हंै, न ही विपक्ष और न थकने की कसम खाकर जनता भी निहारती रहती है अपने लोकतंत्र की मूल भावना को। इसी द्वंद्व में बजट सत्र का आगाज किसे भ्रमित करता है। क्या लोकतंत्र सदन के भीतर राज्यपाल के अभिभाषण की मलाई में था या विपक्ष की आवाज में सदन के बाहर था। सरकार ने चार साल जनता को दिए हैं और इसी के जिक्र में लिपटा अभिभाषण याद दिला रहा था कि इस दौरान कितने चांद तोड़ कर जनता को दिए हैं। विपक्ष इससे असहमत हो सकता है, लेकिन इस असहमति को जनता की मंजूरी चाहिए, इसलिए उसका जनता के करीब रहना अति लाजिमी है। जनता सदा आक्रोश में रहती है या जब जनता ही विरोध में होती है, तो विरोधी पक्ष आगे हो जाता है।
इसलिए बजट सत्र के भीतर और बाहर कई 'बनाम' खड़े हैं। ये बनाम तथ्यपरक हो सकते हैं या तमाम विवशताओं, मजबूरियों और विभक्त आशाओं को पनाह दे सकते हैं। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री की प्रेस कान्फ्रेंस भी एक 'बनाम' पैदा करके राज्यपाल के अभिभाषण में मीन मेख निकाल सकती है। वह जनता के जवाब में प्रश्नमंच खड़ा करके कई यतीम मुद्दों को पनाह देते हैं। प्रदेश में बढ़ता कर्ज, सिमटता रोजगार का आधार, सरकारी नौकरी के चोर दरवाजे, माफिया राज और कर्मचारियों के मुद्दों की बिसात बिछा कर विपक्ष अपनी आवाज का जादूगर बनना चाहता है, लेकिन बहस तो सदन की मर्यादा के भीतर भी संभव है। विपक्ष के विषय ऊंचे स्वर में बोल सकते हैं और इनकी जरूरत को पूरा करता लोकतंत्र हमेशा जनता की नुमाइंदगी करता है, लेकिन हम चाहते हैं विधानसभा सत्र पूरी तरह चले और इसकी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष पर भी है। प्रदेश की वर्तमान बहस को बांछित बहस में परिवर्तित करने के लिए यह जरूरी है कि सत्ता और विपक्ष आर्थिक विषयों की हाजिरी लगाएं। नौकरी को सरकारी नौकरी से हटा कर रोजगार या स्वरोजगार से जोड़ने की तैयारी में विकल्प सामने रखें। प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ फिजूलखर्ची के आलेप से कैसे बचाएं, इस पर मतैक्य बनाएं। हिमाचल में सरकारी कार्यसंस्कृति को कर्मचारियों के वेतन भत्तों के बरअक्स तौलें। प्रदेश की राजनीति को कई कथाकार, प्रचारक और संबोधनकर्ता मिल गए, लेकिन अर्थशास्त्री के रूप में हर सत्ता और विपक्ष को सामने आना है ताकि बजट की बात केवल उधार की रात न बन जाए।